राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के अग्रदूत

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स्वामी विवेकानंद युवा, गतिशीलता और जीवंतता के प्रतीक हैं। स्वामी जी का जीवन और आदर्श हमारे राष्ट्र के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। 39 वर्ष के संक्षिप्त जीवन में इस महान व्यक्ति ने अपने संदेश के साथ पूरे विश्व को जीत लिया। भारत और विश्व के कई महान व्यक्ति स्वामी जी से अत्यंत प्रभावित रहे।

स्वामी जी के लेखों से अनेक पाठक का मन प्रज्जवलित हुआ है। किसी ने यह बात ठीक ही जताई है कि यदि आप औंधे लेटे हों और उनके लेख पढ़ रहे हों तो आप खड़े हो जाएंगे और यदि आप खड़े होकर उनके लेख पढ़ रहे हो तो आप तुरंत ही उनके मिशन पर चलना शुरू कर देंगे। यह और कुछ नहीं, बल्कि स्वामी विवेकानंद के जीवंत संदेश का प्रभाव है। कोई भी व्यक्ति जो उनके प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आया हो तो उसके जीवन में विशाल बदलाव देखने में आता है।

जीवन का प्रयोजन

स्वामी जी का सदैव यह मानना रहा है कि किसी व्यक्ति का वास्तविक जीवन तभी शुरू होता है जब उसके जीवन का प्रयोजन सिद्ध होता है। वह मानते थे कि जिस व्यक्ति के पास कोई प्रयोजन नहीं होता है, तो वह तो एक जीता-जागता मात्र शव बना रहता है। जब तक प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है तब तक उसका जीवन अत्यंत निरर्थक होता है।

हमारे युवाओं को तय करना चाहिए कि वे अपने जीवन में क्या बनना चाहते हैं। बचपन से ही निरंतर कैरियर के विचारों से बंधे होते हैं या हम क्या बनना चाहते हैं और इस प्रक्रिया में हम जीवन में हम अच्छे पहलुओं की तरफ देखना भूल जाते हैं।

यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम किसी संकीर्ण उद्देश्य के साथ बनने की प्रक्रिया से जीवन की प्रक्रिया को तय न करें। न बनने की बात को कभी न सोचें और इस प्रक्रिया में आप कुछ न कुछ बन ही जाएंगे। एक बार जीवन का प्रयोजन सिद्ध हो जाए तो जीवन के सभी कार्य उसी प्रयोजन से संचालित होते रहेंगे।

आत्मविश्वास

जीवन में कुछ भी अनुमान लगाना ही आत्म-विश्वास का द्योतक है। स्वामी विवेकानंद ईश्वर में श्रद्धा रखने से भी अधिक आत्मविश्वास को महत्व देते थे। वह कहते थे कि नास्तिक वह होता है जिसे स्वयं पर भरोसा नहीं होता है। प्राचीन धर्म कहता है कि वह नास्तिक होता है, जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता है। नया धर्म कहता है कि वह नास्तिक है, जो स्वयं में विश्वास नहीं करता है। दुर्भाग्य से हम अपनी क्षमताओं को जाने बिना ही अपने को सीमित कर लेते हैं। कई बार हम महसूस करते हैं कि हम तो ‘इतना भर’ ही कर सकते हैं, जबकि हमारे पास कहीं अधिक करने की क्षमता होती है। यदि हमारे युवाजन निश्चय कर लें तो ऐसा विश्व में कुछ नहीं है जिस पर हम पार नहीं पा सकते हैं, परन्तु इसके लिए हमारे पास आत्मविश्वास होना चाहिए। स्वामी जी सदैव यह मानते थे कि हमारे पास जो कुछ भी हो रहा है, चाहे वह छोटा, बड़ा, सकारात्मक या नकारात्मक जो भी हो वह हमारे अन्तरतम के सामर्थ्य की अनुभूति व्यक्त करता है।

समर्पण

सफलता के शिखर पर पहुंचने के लिए समर्पण अत्यंत आवश्यक है। स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि ‘सफलता के लिए आपके पास अत्यंत धैर्य आवश्यक है।’’ धैर्यशाली आत्मा का कहना है कि मैं पूरा सागर पी सकता हूं, मेरी इच्छा होगी तो पहाड़ भी चरमरा कर गिर पड़ेंगे। आपके पास इतनी ऊर्जा होनी चाहिए, आप में वैसी ही इच्छा, परिश्रम और उस लक्ष्य तक पहुंचने की इच्छा होनी चाहिए।’’

टीमवर्क

आज का युग संगठन और टीमवर्क का है। विज्ञान, व्यापारिक, टेक्नाॅलाजी, टीमवर्क से एक मजबूत अधारशिला बनती है, जिसके माध्यम से हम वांछित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका में थे तो वे टीमवर्क से प्रभावित थे और वह चाहते थे कि भारत में भी टीमवर्क का भाव पुनर्शक्तिमान बन सके। इसी उदाहरण को सामने रख कर उन्हांेने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की और राष्ट्र निर्माण के कार्य में जुट गए।