सभी शर्मनाक संसदीय वाकये कांग्रेस से जुड़े हुए हैं: रवि शंकर प्रसाद

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भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री रवि शंकर प्रसाद ने आज पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित एक प्रेस वार्ता को संबोधित किया और संसद की कार्यवाही न चलने देने के लिए कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों पर जम कर प्रहार किया।

श्री प्रसाद ने कहा कि ऐसा अनुमान है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष की मनमानी और लोकतंत्र का अपमान किये जाने के कारण मानसून सत्र के दौरान लगातार व्यवधानों से सरकारी खजाने को 130 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार के सात वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन अहंकार और प्रपंच के घातक कॉकटेल ने भारत की ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस को अब तक नहीं छोड़ा है। 1947 के बाद से सबसे लंबे समय तक देश पर शासन करने के बावजूद यह विडंबना ही है कि कांग्रेस के आचरण में संसदीय लोकाचार और कार्यवाही के लिए सम्मान बिलकुल भी नहीं है। इसका कारण यह है कि कांग्रेस एक राजनीतिक दल की तुलना में एक निजी फर्म की तरह अधिक कार्य कर रही है, जिसका एकमात्र उद्देश्य एक वंश के हितों की रक्षा करना है।

वर्तमान स्थिति पर चर्चा करने से पहले हमें एक बार अतीत में अवश्य झाँक लेना चाहिए। कांग्रेस द्वारा संसदीय प्रणाली व्यवस्था का दमन कोई नई बात नहीं है। कांग्रेस द्वारा संसदीय व्यवस्था और संसद के सम्मान पर कुठाराघात 1975 में तब चरम पर पहुंच गया था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की कुर्सी अदालत के निर्णय से खतरे में थी लेकिन तमाम लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्वस्त करते हुए और अदालत के आदेश को धता बताते हुए श्रीमती गाँधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया था। 2008 का विश्वास मत भी हमारे संसदीय इतिहास के सबसे काले क्षणों में से एक है। 

हमारे संसदीय इतिहास ने एक अलग पैटर्न देखा है- जब तक एक राजवंश के हितों की की जाती है, तब तक संसद को काम करने की “अनुमति” दी जाती है – यही कांग्रेस की कार्यसंस्कृति है। संसदीय राजनीति संवाद के आधार पर चलती है – राजनीतिक दुश्मनी का मतलब कभी भी व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं था लेकिन कांग्रेस ने उस भावना का कभी पालन ही नहीं किया। 1999 में, कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव में एक अनैतिक कदम पर जोर दिया, यह अच्छी तरह से जानते हुए भी कि यह संसदीय लोकाचार के अनुरूप नहीं था। राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में “हमारे पास 272” के घमंड भरे दावे बताते हैं कि कांग्रेस ने लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार को अस्थिर करने के लिए हर संभव कोशिश क्यों की थी। 

2001 में, कांग्रेस ने एक नया ड्रामा शुरू किया था – श्री जॉर्ज फर्नांडीस जब भी संसद में उठते थे तो कांग्रेस उनका बहिष्कार करने लगती थी, बॉयकॉट करती थी। यह कोई संयोग नहीं था कि श्री फर्नांडीस अब तक के सबसे कट्टर कांग्रेस विरोधी नेताओं में से एक बने रहे। हमारे संसदीय इतिहास में ऐसा ‘मैन-टू-मैन मार्किंग’ अनसुना-सा था। 

अब वर्तमान में आते हैं – संसदीय सत्र के दौरान कांग्रेस का शर्मनाक आचरण दो आशंकाओं से उपजा है: 

  • पहला- माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में चलने वाली भारतीय जनता पार्टी के हाथों बार-बार चुनावी हार की थाह लेने में असमर्थता, और 
  • दूसरा- अन्य विपक्षी दलों के साये में आने का डर। 

इस तरह का अस्तित्व-संकट, कांग्रेस नेतृत्व को बचकाने और अपरिपक्व कदम उठाने की ओर ले जा रहा है जो उनके संसदीय आचरण में परिलक्षित हो रहा है। ट्रेजरी बेंच ने साफ तौर पर कहा है कि वे सभी विषयों पर चर्चा करने को तैयार हैं। फिर भी, कांग्रेस के शीर्ष-नेतृत्व ने व्यवधान के मार्ग को चुनते हुए निम्नतम स्तर तक जाना पसंद किया है। 

यह एक निर्विवाद सत्य है कि मोदी सरकार के दोनों कार्यकालों में संसदीय उत्पादकता लगातार उच्च रही है। इसमें राज्यसभा भी शामिल है, जहां सरकार के पास अपने कार्यकाल के शुरुआती दिनों में संख्याबल का अभाव था। फिर भी, सरकार ने फ्लोर लीडर्स के साथ मिलकर काम किया और सुचारू सत्र सुनिश्चित किया। 

कांग्रेस के माफी मांगने वालों ने सदन में व्यवधान को सुनवाई के साधन के रूप में उचित ठहराने वाले भाजपा नेताओं के पिछले बयानों का हवाला देते हुए आधा-अधूरा तर्क दिया है। ऐसी समानता तथ्यों पर आधारित नहीं है। तत्कालीन यूपीए सरकार 2जी घोटाले को मानने के लिए ही तैयार नहीं थी। भारत के सबसे शर्मनाक भ्रष्टाचार के घोटालों में से एक का वर्णन करने के लिए “जीरो लॉस” जैसे कथित सिद्धांतों का उपयोग करना पसंद करती थी। इसके विपरीत, मोदी सरकार हर राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस करने के लिए तैयार रही है। चाहे सीमा मुद्दों पर चर्चा की बात हो या स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों पर, एनडीए ने व्यापक सर्वदलीय बैठकें बुलाई हैं। इन दोनों बैठकों में प्रधानमंत्री जी स्वयं उपस्थित रहे और उन्होंने वक्तव्य भी दिए। ताज्जुब की बात यह है कि कांग्रेस द्वारा COVID-19 जैसे संवेदनशील मुद्दे पर चर्चा के लिए आहूत बैठक का बहिष्कार केवल क्षुद्र राजनीतिक विचारों के कारण किया गया। यहां तक कि लोगों की जिंदगी भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के राजनीतिक हिसाब से दूसरे नंबर पर आती है। 

अपने कार्यकाल के दौरान, कांग्रेस-नीत यूपीए ने संसद की कार्यवाही को बाधित करने के लिए संख्याबल के नाम पर ‘रचनात्मक रूप से विनाशकारी’ तरीके अपनाए थे। कांग्रेस-प्रभुत्व वाली लोकसभा में कांग्रेस सांसद द्वारा काली मिर्च के छिड़काव को कौन भूल सकता है। यूपीए-2 के दौरान अंतिम कुछ सत्रों को हमेशा यूपीए सदस्यों द्वारा उत्पन्न व्यवधानों के लिए याद किया जाएगा। कई बार मैत्रीपूर्ण पार्टियों का इस्तेमाल अराजकता फैलाने के लिए किया गया। लोकपाल डिबेट के दौरान भी ऐसा देखने को मिला था। 

गौरतलब है कि सत्ता में रहते हुए यूपीए ने दर्जनों विधेयकों को या तो बिना बहस के या हंगामे के साथ पारित कर दिया। इसमें प्रतिस्पर्धा (संशोधन) विधेयक 2007, सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का निषेध और व्यापार और वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का विनियमन) संशोधन विधेयक 2007, अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान, विज्ञान और स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (संशोधन) अधिनियम, 2007 आदि कई विधेयक ऐसे ही पारित कर दिए गए थे।

कांग्रेस नेताओं के मन में संसद के प्रति सम्मान, सत्र के दौरान उनके आचरण में देखा जा सकता है। गम्भीर चर्चाओं के बजाय वे आंख मारने और जबरदस्ती गले पड़ने जैसी हरकतों में लिप्त हो जाते हैं। संसद सत्र के बीच से ही गायब हो जाने के साथ-साथ सदन में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का उपस्थिति रिकॉर्ड भी काफी निराशाजनक है। 

आज देश की नजर हमारे सांसदों पर है। कड़ी मेहनत से कमाए गए करदाताओं के पैसे उन पर कानून बनाने, बहस करने और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को उठाने के लिए खर्च किये जाते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से, ‘राष्ट्रीय’ और ‘हित’ ये दो शब्द हमारे कांग्रेस नेताओं के दिमाग में नहीं हैं। अभी भी समय है- उनके पास देश को यह दिखाने के लिए कि वे चर्चा और मर्यादा में रुचि रखते हैं। उनके पास कई मुद्दों को उठाने का अवसर है, उसी तरह सरकार को भी विपक्ष के असत्य को उजागर करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए। यही बात संसदीय लोकतंत्र को जीवंत बनाती है। उम्मीद है कि कांग्रेस को नियंत्रित करने वाले सुन रहे होंगे…