अमर शहीद बाबू हित अभिलाषी : निःस्वार्थ सेवा की कहानी

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जन्मदिन : 8 अप्रैल, 1923, सक्रिय वर्ष: 1951-1988, स्थान : राज्य/ जिला : बुढलाडा, पंजाब और चंडीगढ़

मर शहीद बाबू हित अभिलाषी जी 16 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए और 1945 में ओ.टी.सी प्रशिक्षण शिविर, खंडवा, मध्य प्रदेश में एक महीने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। बाद में स्नातक स्तर की पढ़ाई पूर्ण करने के बाद वह लोगों की सेवा करने के लिए पंजाब के मोगा से बठिंडा जिले के बुढलाडा चले गए। बहुत जल्द वे पूरे मालवा क्षेत्र और पेप्सू रियासतों के लोगों के लिए ‘बाबूजी’ बन गए।

वे लगातार 14 साल तक बुढलाडा नगरपालिका के लोकप्रिय अध्यक्ष रहे। उनके कार्यकाल के दौरान बुढलाडा नगरपालिका को निवासियों की सेवा करने में पूरे पंजाब में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। 1966 में उन्हें पंजाब में जनसंघ कैडर को संगठित करने और बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने इसके लिए

एक महान राजनेता होने के अलावा बाबूजी एक प्रसिद्ध शिक्षाविद, एक प्रतिष्ठित समाज सुधारक और सबसे बढ़कर मानवतावादी थे। शिक्षा उनकी रुचि का क्षेत्र था, वे सर्वहितकारी एजुकेशन सोसाइटी के संस्थापक सदस्य, देव समाज कॉलेज फॉर वूमेन, चंडीगढ़ के संस्थापक अध्यक्ष, नेहरू मेमोरियल कॉलेज, मनसा के संस्थापक अध्यक्ष और गुरु गोबिंद सिंह फाउंडेशन के संस्थापक सदस्य थे

कई बार प्रदेश का दौरा किया और प्रदेश इकाई के अध्यक्ष पद पर प्रोन्नत होने से पहले कई वर्षों उन्होंने महामंत्री सहित अन्य विभिन्न क्षमताओं में पार्टी की सेवा करते हुए पार्टी कैडर के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित किया और भाजपा के अस्तित्व में आने तक उन्होंने अपने दायित्व को निभाने का कार्य किया। वह पहली बार 1967 में पंजाब विधान परिषद् के लिए चुने गए और सदन की कई समितियों और उप-समितियों के सदस्य रहे।

इस दौरान पार्टी ने उन्हें दो समाचार पत्रों—प्रदीप और जनप्रदीप के प्रकाशन का प्रभार सौंपा। 1975 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया और बड़ी संख्या में विपक्षी दल के नेताओं को जेल जाना पड़ा। उन दिनों लोकतंत्र के सेनानी बाबूजी को भी मीसा के तहत कैद में रखा गया। वह पंजाब की विभिन्न जेलों में 19 महीने तक कैद रहे। आपातकाल के बाद वह पंजाब विधानसभा के सदस्य के रूप में चुने गए। उन्होंने 1977 में बठिंडा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और मंत्रिमंडल में भी शामिल हुए। 1988 में उन्हें पंजाब भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई थी। उस समय कांग्रेस की स्वार्थी और नासमझ नीतियों ने पंजाब को आतंकवाद के काले युग में धकेल दिया था। लोगों को एक साथ रखना और हिंदू-सिख एकता बनाए रखना आवश्यक हो गया। इसके लिए अभिलाषी जी आगे आए और शांति सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश भर की यात्रा को जारी रखा। उन्हें लगातार धमकियां मिल रही थीं, लेकिन उन्होंने आतंकवाद एवं प्रदेश और देश में बेगुनाहों की हत्या के खिलाफ निडरता से बात की। नतीजतन, उन्हें अलगाववादियों और पाकिस्तानी एजेंटों के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा के रूप में देखा गया, जिन्होंने उनकी हत्या करने का मन बना लिया था।

19 सितंबर, 1988 को सुबह लगभग 11.00 बजे जब वह चंडीगढ़ के सेक्टर 11 में अपने पार्टी कार्यालय से पंजाब राजभवन जा रहे थे, तो उसी समय उन पर आतंकवादियों ने घात लगाकर हमला किया और उनकी हत्या कर दी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक लोगों की सेवा करते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया। एक महान राजनेता होने के अलावा बाबूजी एक प्रसिद्ध शिक्षाविद, एक प्रतिष्ठित समाज सुधारक और सबसे बढ़कर मानवतावादी थे। शिक्षा उनकी रुचि का क्षेत्र था, वे सर्वहितकारी एजुकेशन सोसाइटी के संस्थापक सदस्य, देव समाज कॉलेज फॉर वूमेन, चंडीगढ़ के संस्थापक अध्यक्ष, नेहरू मेमोरियल कॉलेज, मनसा के संस्थापक अध्यक्ष और गुरु गोबिंद सिंह फाउंडेशन के संस्थापक सदस्य थे।

वह पंजाबी विश्वविद्यालय के निर्माण और गुरु नानक देव विश्वविद्यालय एवं पंजाब कृषि विश्वविद्यालय से भी जुड़े थे। शिक्षा उनका जुनून था और वह हर क्षण इसको देना चाहते थे। भारत माता को ऐसे सुयोग्य सपूतों की आवश्यकता है, जो अपने प्राण न्योछावर कर दें, पर अपने ध्येय के साथ समझौता न करे।