अटलजी : भारतीय राजनीति के ‘अजातशत्रु’

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एम. वेंकैया नायडु

टलजी आखिर चले गए और यह लड़ाई हार गए। वे अदृश्य क्षितिज की ओर अपनी यात्रा पर चल दिए। यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे अब तक कोई नहीं जीत पाया है और अटलजी भी अपवाद नहीं हैं। लेकिन जो चीज उन्हें अपनी पीढ़ी के अन्य लोगों से बेहद अलग बनाती है वे हैं अनेक लड़ाइयां, जो उन्होंने अपने जीते जी बुनियादी मूल्यों और प्रतिबद्धता के साथ ‘अटल’ रहते हुए लड़ीं। वे अपने पूरे जीवन में ‘अटल’ और ‘बिहारी’ (पथिक या स्वप्नदर्शी) दोनों रहे। लेकिन नए भारत का सपना देखते हुए भी उन्होंने अपनी जड़ों को नहीं छोड़ा।

अटलजी से मेरी पहली मुलाकात साठ के दशक के उत्तरार्ध में हुई थी, जब मैं नेल्लोर शहर में एक टांगा में बैठकर उनके दौरे पर आने की घोषणा करता था। तब मैंने शायद ही यह कल्पना की थी कि एक दिन मुझे पार्टी अध्यक्ष बनने का और वाजपेयीजी तथा आडवाणीजी के बीच बैठने का सौभाग्य प्राप्त होगा। तब से, मुझे बहुतायत में उनका प्यार, स्नेह, मार्गदर्शन और संरक्षण पाने का सौभाग्य मिलता रहा। मैं इसे एक दुर्लभ सम्मान मानता हूं कि ऐसे गुणवान व्यक्ति का मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मुझे मिला। आमतौर पर कहा जाता है कि किसी के भी चेहरे पर उसके भीतरी तत्वों की छाप होती है। अटलजी इसका एक अच्छा उदाहरण थे। उनके विचारों की स्पष्टता, मजबूत प्रतिबद्धता, देश के लिए विजन और उनकी अमिट मुस्कान, मेरे विचार में, अटलजी के इन भीतरी तत्वों की स्पष्ट अभिव्यक्ति हैं।

2009 तक के अपने 65 वर्षों के सक्रिय जीवन में, अटलजी 56 वर्ष विपक्ष में रहे और सिर्फ नौ साल सत्ता में रहे। वे लोकसभा के लिए दस बार निर्वाचित हुए और राज्यसभा के लिए दो बार। वे मोरारजी देसाई मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री रहे और बाद में तीन बार प्रधानमंत्री बने। लेकिन चाहे वे विपक्ष में रहे हों या सत्ता में, अटलजी ने आजादी के बाद से ही देश के विकास में मौलिक योगदान दिया। अटलजी सार्वजनिक वक्ता के रूप में अग्रगण्य थे और संसद से लेकर राजनीतिक क्षेत्र तक की उन्होंने व्यापक प्रशंसा हासिल की, जिसमें जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे। कोई कह सकता है कि सत्ता की जिम्मेदारी के बिना बड़ी-बड़ी बातें करना आसान है। लेकिन अटलजी ने पहले विदेश मंत्री रहते हुए और बाद में इस विशाल देश के प्रधानमंत्री के रूप में संबोधित करते हुए ऐसे संदेहों को निर्मूल साबित किया। उन्होंने हमारे पड़ोसियों के साथ ठंडे पड़े संबंधों में सुधार करने के लिए थोड़े समय में ही नई जमीन तोड़ी जिसने हमारी कूटनीति के लिए एक नया परिप्रेक्ष्य प्रदान किया।

प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने देश को परेशान करने वाली समस्याओं को समझने और उनके निराकरण के लिए उल्लेखनीय क्षमता का प्रदर्शन किया। उन्होंने निर्णायक रूप से दिखा दिया कि वे केवल ऐसे वक्ता नहीं हैं, जो विपक्ष में रहने के दौरान कल्पना की उड़ान की स्वतंत्रता का आनंद ले रहे थे, बल्कि जब देश की समस्याओं को हल करने का अवसर हो तो एक निर्णायक नेता भी हैं। उन्होंने विपक्षी नेता के रूप में कई लड़ाइयां जीतीं, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में उससे भी ज्यादा लड़ाइयों में जीत हासिल की। प्रधानमंत्री के रूप में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘मिशन कनेक्ट इंडिया’ का नेतृत्व किया, जिसमें उन्होंने दूरसंचार, राष्ट्रीय राजमार्गों सहित बुनियादी ढांचे, ग्रामीण सड़कों, हवाई अड्डों और बंदरगाहों, निजी क्षेत्रों की भागीदारी, विनिवेश जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों की एक नई रूपरेखा बनाई। उन्होंने अपने को एक उत्कृष्ट सुधारक साबित किया जिनकी बुद्धिमत्ता का लाभांश देश को आज तक हासिल हो रहा है। अटलजी ने शास्त्रीजी के नारे ‘जय जवान-जय किसान’ में ‘जय विज्ञान’ जोड़ा, जो वर्तमान समय में ज्ञान के महत्व को समझने की उनकी भावना को रेखांकित करता है।

वाजपेयीजी नरमदिल होने के साथ सख्त भी थे। उनकी पहली विशेषता जहां लंबे समय तक देखी गई, वहीं उनकी सख्ती तब देखने को मिली जब पोखरण-2 आयोजित किया गया और बाद में कारगिल की ऊंचाई से जिस तरह हमलावरों को पीछे हटने पर मजबूर किया गया। राजनीतिक क्षेत्र में उनका लोगों के साथ जिस तरह का व्यवहार था और केंद्र में नाजुक समय में जिस तरह से उन्होंने गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया, उससे उनके व्यक्तित्व की कोमलता स्पष्ट झलकती थी। अपने विशिष्ट गुणों की वजह से ही श्री वाजपेयी ऐसे पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। वे तीन बार प्रधानमंत्री बने। उन्होंने एक वैकल्पिक राजनीतिक सोच प्रदान की और सत्तारूढ़ पार्टी के लिए एक वास्तविक विकल्प दिया। उन्होंने सफलतापूर्वक 23 दलों वाले गठबंधन का नेतृत्व करते हुए साबित किया कि वे ऐसे नेता थे जो स्थिर सरकार प्रदान करने में समर्थ थे। वाजपेयीजी ने भारतीय राजनीति में कई तरह से योगदान दिया। उन्होंने हमारे संविधान में स्थापित आदर्शों की वास्तविक भावना के अनुसार लोकतंत्र को मजबूत बनाने में बड़ा योगदान किया।

इतिहास में उनका नाम देश में सुशासन के समानार्थी के रूप में लिखा जाएगा। आम आदमी और राजनीतिक वर्ग दोनों ही उनकी सौम्यता, चरित्र और आचरण से प्रभावित थे। जिस चीज ने श्री वाजपेयी को सारे देश का चहेता बनाया था, वह थी उनकी खुद को समाज के विभिन्न वर्गों से जोड़ने की भावना। यह उनके लिए संभव था, क्योंकि वे भारत के लिए जैसा बोलते थे और जिन बुनियादी मूल्यों में विश्वास रखते थे, उनमें कोई विरोधाभास नहीं था। यह इसलिए था क्योंकि वे एक सच्चे भारतीय बने रहे, जो सभी भारतीयों को आकर्षित करते थे। यह अटलजी की विशेषता थी। इस प्रक्रिया में, उन्होंने मेरे जैसे लाखों लोगों को सच्ची राष्ट्रवादी विचारधारा का पालन करने के लिए मंत्रमुग्ध और प्रेरित किया। वे राष्ट्रीय प्रतीक थे और सच्चे ‘अजातशत्रु’ थे, जिनका कोई दुश्मन नहीं था।

अपने शुरुआती दिनों में हम अटलजी को प्यार से ‘तरुण हृदय सम्राट’ कहा करते थे। बीमारी की चपेट में आने तक वे ऐसे ही बने रहे और उनकी संक्रामक मुस्कान हमेशा बनी रही। भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व, वक्तृत्व, कर्तृत्व, मित्रत्व की उत्कृष्टता सब उनके नेतृत्व में समाहित था, जिसे लंबे समय तक याद किया जाएगा। वे ‘दार्शनिक राजा’ के सांचे में ढले थे। एक राजा जिसने सभी भारतीयों के दिलों पर अपने शब्दों और कार्यों से राज किया। ऐसे दूरदर्शी राजनेता इस दुनिया में कभी कभार ही होते हैं। उनकी विरासत को आगे बढ़ाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

            (लेखक भारत के उपराष्ट्रपति हैं)