प्रमुख समाचार पत्रों की टिप्पणियां

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एक और सख्त संदेश

पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान की बहानेबाजी को देखते हुए यह आवश्यक हो गया था कि उसे न केवल सबक सिखाया जाए, बल्कि यह संदेश भी दिया जाए कि भारत अब उसकी चालबाजी में आने वाला नहीं है। यह वक्त बताएगा कि पाकिस्तान कोई सही सबक सीखता है या नहीं, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने उसकी सीमा में घुसकर जैश-ए-मोहम्मद के सबसे बड़े आतंकी अड्डे पर हमला करके यह बता दिया कि भारत के सहने की एक सीमा है। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हमारे लड़ाकू विमानों ने नियंत्रण रेखा के साथ पाकिस्तान की मूल सीमा रेखा भी पार कर एक तरह से उसके मर्म पर प्रहार किया। बालाकोट पाकिस्तान के सैन्य मुख्यालय रावलपिंडी से ज्यादा दूर नहीं है। पाकिस्तान को यह समझ आ जाना चाहिए कि अगर भारत के लड़ाकू विमान बिना किसी बाधा बालाकोट तक पहुंच सकते हैं तो वे रावलपिंडी भी पहुंच सकते हैं। उसे यह भी समझ आना चाहिए कि परमाणु बम के इस्तेमाल की उसकी धमकियां अब काम आने वाली नहीं है।

संपादकीय: दैनिक जागरण

बड़े सबक के बाद

रात जब पूरा देश गहरी नींद सो रहा था, तो ग्वालियर से उड़े 12 मिराज-2000 लड़ाकू विमानों ने हमें एक नई सुबह देने की भूमिका लिख दी। इतना ही नहीं, पाक अधिकृत कश्मीर के पार खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बालाकोट में गिराए गए एक हजार किलो के बमों ने उस पाकिस्तान की चेतना को बुरी तरह झझकोर दिया, जिसे अपने अस्तित्व को बरकरार रखने का एकमात्र फार्मूला आतंकवाद में ही नजर आता है। भारतीय बमवर्षकों का निशाना बालाकोट के वे आतंकी शिविर थे, जिन्हें मसूद अजहर का संगठन जैश-ए-मोहम्मद संचालित करता है। कुल कितने बम गिराए गए, यह संख्या अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन एक हजार किलो के बम का अर्थ यह तो है ही कि इनकी मार का क्षेत्र बहुत बड़ा होगा। कुछ अपुष्ट खबरों में बताया गया है कि हमले में दो से तीन सौ आतंकवादी मारे गए हैं।

भारत ने मंगलवार के ऑपरेशन को नॉन मिलेटरी प्रिवेंटिव स्ट्राइक यानी गैर सैन्य रक्षात्मक अभियान कहा है। इसे आम भाषा में सर्जिकल स्ट्राइक कहा जा रहा है, उसकी सही परिभाषा भी शायद यही है। यह सैनिक अभियान नहीं था, क्योंकि इसमें न सेनाओं को निशाना बनाया गया और न ही सैनिक ठिकानों को। इसमें किसी सैनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी नुकसान नहीं पहंुचाया गया। इसका निशाना सिर्फ आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर थे। इनमें जैश-ए-मोहम्मद की अगुवाई में वे आतंकवादी प्रशिक्षण पा रहे थे, जिन्हें भारत पर हमला बोलने के लिए तैयार किया जा रहा था। इस अर्थ में भारत की यह कार्रवाई रक्षात्मक भी है। यह कुछ इस तरह से की गई है कि पाकिस्तान के पास जवाब में कुछ करने की गुंजाइश नहीं बची। इसीलिए वह एक तरफ तो इसका जरा भी असर पड़ने से इनकार कर रहा है, तो दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र में जाने का राग भी अलाप रहा है।

संपादकीय: हिंदुस्तान

आतंकवाद पर प्रहार

पुलवामा में आतंकी हमले के बाद से भारत ने ही नहीं पूरी दुनिया ने पाकिस्तान से आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा, लेकिन पाकिस्तान ने जबानी जमाखर्च के सिवाय कुछ नहीं किया। पिछले कुछ वर्षों से भारत आतंकी कार्रवाइयों से आजिज आ चुका है। उसने बार-बार पाकिस्तान को सबूत दिए, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह मुद्दा उठाया, मसले को कूटनीतिक तरीके से सुलझाने की कोशिश भी की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। बार-बार विभिन्न स्रोतों से ऐसी खबरें आती रहीं कि पाकिस्तान के कई इलाकों में अनेक आतंकी संगठन बाकायदा अपने कैंप चला रहे हैं। कई देशों की खुफिया रिपोर्टों और अध्ययनों में यह बात भी सामने आई कि इन संगठनों को पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का समर्थन हासिल है। शायद यही वजह थी कि उन संगठनों के कई नेता खुलेआम वहां भारत के खिलाफ जहर उगलते नजर आते हैं। इन स्थितियों में भारत के पास एक सख्त संदेश देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था।

पुलवामा हमले के बाद अमेरिका और अन्य कई देशों ने हमारे पक्ष का समर्थन किया और स्पष्ट कहा कि भारत को आत्मरक्षा का अधिकार है। अमेरिका खुद भी पाकिस्तान की सीमा में गहराई तक घुसकर आतंकवाद के विरुद्ध इस तरह के कदम उठा चुका है। भारत ने साफ किया है कि यह हमला पाकिस्तान और पाकिस्तानियों के खिलाफ नहीं है। भारतीय वायुसेना ने केवल जैश-ए-मोहम्मद के उन ठिकानों को निशाना बनाया जो नागरिक इलाकों से दूर घने जंगल में पहाड़ियों पर थे। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का कहना है कि पाकिस्तान माकूल समय पर इसका जवाब देगा। बेहतर होगा कि पाकिस्तान हालात को समझे। भारतीय कार्रवाई आतंकियों के खिलाफ है जिनसे खुद पाकिस्तान के लोग भी परेशान हैं।

संपादकीय: नवभारत टाइम्स