पराजित हुई कांग्रेस की विभाजनकारी राजनीति

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गुजरात एवं हिमाचल की जनता ने अपना जनादेश दे दिया है। यह ऐसा जनादेश है जो जनता को गुमराह करने के अथक प्रयासों के बीच आया है। कांग्रेस का जातिवादी राजनीति के प्यादों के बल पर चुनाव जीतने का सपना धरा रह गया। जनता के स्पष्ट जनादेश से उन लोगों को गहरा झटका लगा है जो वंशवाद, जातिवाद एवं सांप्रदायिकता को चुनावों में अब भी प्रासंगिक मानते हैं। कांग्रेस का सोचना कि विकास का मजाक उड़ाने से लोग उसके कुशासन एवं भ्रष्टाचार को भूल जायेंगे, उस पर भारी पड़ी। येन–केन–प्रकारेण सत्ता पर काबिज होने की जल्दी कांग्रेस को हमेशा सिद्धांतहीन एवं समझौतावादी राजनीति की ओर धकेलती रही है। अपने संगठन को चुस्त-दुरुस्त बनाने तथा रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने की जगह कांग्रेस ने जातिवादी राजनीति का सहारा लेकर समाज को विभाजित करने का प्रयास किया, जिसमें उसे मुंह की खानी पड़ी। यह विडंबना ही थी कि एक ओर जहां राहुल गांधी वोटों के लिये मंदिरों के चक्कर लगा रहे थे, वहीं दूसरी ओर राम मंदिर के निर्माण में इसके नेता कपिल सिब्बल सर्वोच्च न्यायालय में रोड़े अटका रहे थे। आरक्षण, नोटबंदी एवं जीएसटी के मुद्दे पर कांग्रेस का विकास–विरोधी एवं जन–विरोधी चेहरा सामने आ गया। कई मुद्दों पर इसका दोमुंहापन बेनकाब हो गया तथा हार को सामने देखकर इसके नेता देश के सम्मानीय प्रधानमंत्री के विरुद्ध अनाप–शनाप बोलने लगे। गुजरात एवं हिमाचल की जनता ने कांग्रेस को चुनावों में अच्छा सबक सिखाया है और अब कांग्रेस के हाथों से एक और प्रदेश निकल चुका है।

कांग्रेस को सबसे बड़ी नाकामी इसके द्वारा रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने में इसकी असमर्थता है। यह अब तक इस बात को स्वीकार नहीं कर पाई कि जनता ने इसे कुशासन, भ्रष्टाचार, पॉलिसी पैरालिसिस तथा जनता के धन की खुली लूट के लिये ठुकराया है। विडंबना यह है कि यह अब भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांस्फॉर्म’ के एजेंडे को किसी प्रकार से नीचा दिखाने में लगी है। इसने जानबूझकर नोटबंदी का विरोध किया, ताकि भ्रष्टाचारियों को बचाया जा सके। इससे गरीब और वंचित कांग्रेस से और भी अधिक दूर चले गये और यह भ्रष्टाचार एवं लूट की प्रतीक बन गई। यह संसद तथा जीएसटी काउंसिल में जीएसटी के पक्ष में दिखी, पर बाहर जीएसटी का विरोध कर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने में लग गई। उसे उम्मीद थी कि जीएसटी का विरोध कर वह राजनैतिक लाभ उठा सकती है, परन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत। इसकी उम्मीदों पर पानी फिर गया और यह पूरी तरह बेनकाब हो गई। एक ओर जब पूरी दुनिया में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व में भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी छाप छोड़ रहा है तथा विश्व को अनेक रेटिंग एजेंसियां इस पर अपनी मुहर लगा रही हैं। वहीं, कांग्रेस विरोध का राग अलाप कर अपनी फजीहत करा रही है। विकास के विरुद्ध वातावरण बनाने की इसकी कोशिश तथा भारतीय अर्थव्यवस्था के उदय पर प्रश्नचिह्न खड़े करने के इसके प्रयास को जनता ने बार–बार नकार दिया है।

भारत विकास के लगभग हर वैश्विक मानक पर खरा उतर रहा है ओर इसकी आर्थिक दृढ़ता देश की निरंतर बढ़ती सम्भावनाओं की प्रतीक बन गई है। इस सबके बावजूद कांग्रेस का एक तरफा प्रोपगेंड़ा, इसकी नकारात्मक राजनीति और प्रतिगामी मानसिकता का ही परिचय देता है।

कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिये कि इसने एक और प्रदेश गंवा दिया है। नरेन्द्र मोदी की रचनात्मक एवं परिवर्तनकारी कदमों के परिणाम आने लगे हैं तथा भारत की प्रतिष्ठा पूरे विश्व में बढ़ रही है। देश के गरीब एवं वंचितों का भरोसा व्यवस्था पर एक बार पुन: स्थापित हुआ है और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में उनका विश्वास और अधिक दृढ़ होता जा रहा है। कांग्रेस जब–तक भ्रष्टाचारियों एवं घोटालेबाजों का साथ देती रहेगी, देश के गरीब–वंचितों का विश्वास नहीं जीत सकती। अपनी इस दुरवस्था में भी वंशवाद की राजनीति से चिपके रहने की इसकी आदत से स्पष्ट है कि इसका देश की लोकतांत्रिक भावनाओं से कोई लेना–देना नहीं है। देश में वंशवाद एवं जातिवाद के जहर को बोने के इसके प्रयासों को देश की जनता द्वारा कड़ा प्रत्युत्तर मिलता रहेगा। गुजरात एवं हिमाचल की अपनी हार से कांग्रेस को सीख लेनी चाहिए।

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