लोकतंत्र देश का संस्कार, संस्कृति और विरासत : नरेन्द्र मोदी

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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने लोकतंत्र को देश के संस्कार, संस्कृति और विरासत का हिस्सा बताया और आपातकाल का जिक्र करते हुए लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता जतायी। श्री मोदी ने अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल में आकाशवाणी पर प्रसारित पहले ‘मन की बात’ कार्यक्रम में 30 जून को अपने संबोधन में जल संरक्षण के महत्व और अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को भी रेखांकित किया।

उन्होंने कहा कि जब देश में आपातकाल लगाया गया, तब उसका विरोध सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित नहीं था। दिन-रात जब समय पर खाना खाते हैं तब भूख क्या होती है, इसका पता नहीं होता है, वैसे ही सामान्य जीवन में लोकतंत्र के अधिकार का मजा क्या है वो तब पता चलता है जब कोई लोकतांत्रिक अधिकारों को छीन ले।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जब देश में आपातकाल लगाया गया तब उसका विरोध सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित नहीं रहा था, राजनेताओं तक सीमित नहीं रहा था, जेल के सलाखों तक, आन्दोलन सिमट नहीं गया था। जन-जन के दिल में एक आक्रोश था। लोकसभा चुनाव का जिक्र करते हुए श्री मोदी ने कहा कि भारत गर्व के साथ कह सकता है कि हमारे लिए, कानून नियमों से परे, लोकतंत्र हमारे संस्कार हैं, लोकतंत्र हमारी संस्कृति है, लोकतंत्र हमारी विरासत है। आपातकाल में हमने अनुभव किया था और इसीलिए देश, अपने लिए नहीं, लोकतंत्र की रक्षा के लिए आहूत कर चुका था। उन्होंने कहा कि 2019 का लोकसभा का चुनाव अब तक के इतिहास में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव था।

श्री मोदी ने कहा कि भारत में 2019 के लोकसभा चुनाव में 61 करोड़ से ज्यादा लोगों ने वोट दिया। यह संख्या हमें बहुत ही सामान्य लग सकती है, लेकिन अगर दुनिया के हिसाब से देखें और चीन को छोड़ दिया जाए तो भारत में विश्व के किसी भी देश की आबादी से ज्यादा लोगों ने मतदान किया है।

उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश के एक रिमोट इलाके में महज एक महिला मतदाता के लिए मतदान केंद्र बनाया गया। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि चुनाव आयोग के अधिकारियों को वहां पहुंचने के लिए दो-दो दिन तक यात्रा करनी पड़ी- यही तो लोकतंत्र का सच्चा सम्मान है।

श्री मोदी ने जल संरक्षण के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि मेरा पहला अनुरोध है– जैसे देशवासियों ने स्वच्छता को एक जन आंदोलन का रूप दे दिया। आइए, वैसे ही जल संरक्षण के लिए एक जन आंदोलन की शुरुआत करें।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कार्यक्रमों में ‘गुलदस्ता नहीं किताब’ देने के अपने आग्रह को दोहराते हुए सभी लोगों से नियमित रूप से किताब पढ़ने के लिये समय निकालने का आग्रह किया। उन्होंने महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का जिक्र करते हुए उनकी कहानी ‘नशा’, ‘ईदगाह’ और ‘पूस की रात’ का उल्लेख भी किया।

श्री मोदी ने कहा आपने कई बार मेरे मुंह से सुना होगा, ‘बूके नहीं बुक।’ मेरा आग्रह था कि क्या हम स्वागत-सत्कार में फूलों के बजाय किताबें दे सकते हैं। तब से काफ़ी जगह लोग किताबें देने लगे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें हाल ही में किसी ने ‘प्रेमचंद की लोकप्रिय कहानियां’ नाम की पुस्तक दी। उन्हें बहुत अच्छा लगा। हालांकि, बहुत समय तो नहीं मिल पाया, लेकिन प्रवास के दौरान मुझे उनकी कुछ कहानियां फिर से पढ़ने का मौका मिल गया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी मीडिया में केरल की अक्षरा लाइब्रेरी के बारे में पढ़ा। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ये लाइब्रेरी इडुक्की के घने जंगलों के बीच बसे एक गांव में है। यहां के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक पी.के. मुरलीधरन और छोटी सी चाय की दुकान चलाने वाले पी.वी. चिन्नाथम्पी, इन दोनों ने, इस लाइब्रेरी के लिए अथक परिश्रम किया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मन की बात देश और समाज के लिए आईने की तरह है। ये हमें बताता है कि देशवासियों के भीतर अंदरूनी मज़बूती, ताक़त और टैलेंट की कोई कमी नहीं है। उन्होंने कहा कि एक लंबे अंतराल के बाद आपके बीच ‘मन की बात’ जन-जन की बात, जन-मन की बात इसका हम सिलसिला जारी कर रहे हैं। चुनाव की आपाधापी में व्यस्तता तो ज्यादा थी, लेकिन मन की बात का मजा ही गायब था, एक कमी महसूस कर रहा था। हम 130 करोड़ देशवासियों के स्वजन के रूप में बातें करते थे।