सीधी भर्ती प्रक्रिया : एक जरूरी निर्णय

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भूपेंद्र यादव

केंद्र सरकार द्वारा ‘सीधी भर्ती’ के माध्यम से लोक सेवाओं में ‘संयुक्त सचिव’ स्तर के अधिकारियों को रखे जाने का निर्णय चर्चा में है। दरअसल, सरकार ने हाल ही में विभिन्न सरकारी मंत्रालयों में संयुक्त सचिव के 10 पदों के लिए सीधी भर्ती की अधिसूचना जारी की, जिसके तहत आवेदनकर्ता सिविल सेवा परीक्षा की प्रक्रिया से नहीं होने के बावजूद सरकार में संयुक्त सचिव के रूप में देश निर्माण के कार्यों में अपना योगदान दे सकेंगे।

केंद्र सरकार के इस निर्णय पर सहमति-असहमति के बीच कुछ तथ्यात्मक विषय उभरे हैं, जिस कारण इस निर्णय को समझना समीचीन है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि इस तरह के निर्णय पहली बार लिये गये हैं अथवा ऐसा पहली बार होने जा रहा है।

अगर पीछे देखें, तो अनेक उदाहरण मिलेंगे, जिनमें सीधी भर्ती से विभिन्न क्षेत्रों के लोग सरकार में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और दे चुके हैं। उदाहरण के तौर पर विमल जालान, मोंटेक सिंह अहलुवालिया और शंकर आचार्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ अपनी सेवाएं सीधी भर्ती के माध्यम से देते रहे हैं। अत: इस निर्णय को पहली बार उठाया गया कदम कह कर प्रश्नचिह्न खड़ा करना उचित नहीं है।

इस कदम को राजनीतिक चश्मे से देखना भी ठीक नहीं। सही मायने में देखा जाये, तो यह कार्मिक मंत्रालय द्वारा काफी सोच, विचार और मंथन के बाद लिया गया निर्णय है, जिसके भविष्य में सकारात्मक परिणाम दिखेंगे। यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि देश की नौकरशाही और संघ लोक सेवा आयोग से आनेवाले अधिकारियों में योग्यता का अभाव है अथवा कोई कमी है।

यह निर्विवादित है कि भारत के पास एक मजबूत लोकतांत्रिक प्रणाली है और हमारी नौकरशाही व्यवस्था अत्यंत ही योग्य है। सीधी भर्ती का यह फैसला व्यावहारिकता की कसौटी पर वर्तमान की जरूरत को देखते हुए अलग-अलग क्षेत्रों की योग्यताओं और क्षमताओं का देशहित में कैसे उपयोग हो, के संबंध में एक ठोस और निर्णायक समाधान मात्र है।

सीधी भर्ती की इस प्रक्रिया को संसद की ‘कमेटी ऑन इस्टीमेट 2016-17’ की लोकसभा में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के माध्यम से समझने पर स्थिति ज्यादा स्पष्ट नजर आयेगी।

सदन में पेश इस रिपोर्ट में समिति ने न्यूनतम सीधी भर्ती की सिफारिश की है। समिति का मानना है कि इससे न केवल सरकारी कार्यशैली में बदलाव आयेगा, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों के विशेषज्ञों के सुझावों व विचारों को भी सरकारी प्रणाली का हिस्सा बनाया जा सकेगा। समिति ने यह भी स्वीकार किया है कि राष्ट्रीय स्तर पर संघ लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से चयनित अधिकारी अलग-अलग शैक्षिक पृष्ठभूमि से आते हैं।

इस वजह से तकनीकी पहलुओं पर कुछ मामलों में वे योग्य होने के बावजूद अनभिज्ञ होते हैं। लिहाजा नीति नियामक तैयार करने में उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सीधी भर्ती से इस आवश्यकता की तर्कसंगत पूर्ति की जा सकती है तथा विशेषज्ञों की क्षमता का लाभ लिया जा सकता है।

हालांकि, कुछ लोग इस प्रश्न पर भी चर्चा कर रहे हैं कि इससे कहीं उन लोगों में उत्साहहीनता का भाव न पैदा हो जाये, जो प्रतियोगी परीक्षाओं से चयनित होकर लोक सेवा में आते हैं।
ऐसा सोचना उचित नहीं है, क्योंकि व्यावहारिकता की कसौटी पर इससे प्रतियोगी परीक्षाओं से आनेवाले लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। दरअसल, अलग-अलग क्षेत्रों के दक्ष लोगों को उच्च स्तरीय सेवा में लाने का निर्णय इसलिए किया गया, क्योंकि संयुक्त सचिव स्तर तक पहुंचने में एक अधिकारी को लंबा समय खर्च करना पड़ता है। इस दौरान वह दस साल से ज्यादा जिले और तहसील स्तर पर कार्य करते हुए जमीनी स्थिति का सटीक अनुभव प्राप्त करते हैं।

लोक सेवा में लंबा प्रशासनिक अनुभव प्राप्त करने के बाद ही कोई अधिकारी इस स्थिति में होता है कि उसे नीति निर्माण का दायित्व दिया जाये। अत: यदि सीधी भर्ती से अनुभवी लोगों को लाया जाता है, तो इससे प्रतिस्पर्धा के साथ सेवा की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। बहुमुखी विकास के लिए यह जरूरी है कि हम अपनी पूरी क्षमता और योग्यता के साथ कार्य करें और यह पूर्ण सहभागिता से ही संभव है।

निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की योग्यता व क्षमता का लाभ सरकारी सेवाओं में लिया जाये और सरकारी सेवाओं के योग्य एवं अनुभवी व क्षमतावान लोगों के विवेक का लाभ निजी क्षेत्रों में देने का प्रावधान तैयार हो। परस्पर सहयोग की यह भावना जब सरलता और सुगमतापूर्वक व्यवहार में आयेगी, तो देश के विकास को और गति मिलेगी। संसद की समिति ने ऐसे प्रावधानों की जरूरत को भी महसूस किया है।

सीधी भर्ती के मुद्दे पर कांग्रेस समेत कुछ दलों का यह कहना कि यह कोई प्रभावी फैसला अथवा ‘गेम-चेंजर’ नहीं है, गलत है। चूंकि, मेरा खुद का संसदीय स्थायी समितियों का कार्यानुभव बताता है कि केंद्र सरकार के नीति निर्धारण व उसे लागू कराने से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले संयुक्त सचिव स्तर पर ही तय होते हैं। ऐसे में जाहिर है कि इससे कार्यप्रणाली में बड़ा बदलाव आयेगा और नवाचार के द्वार खुलेंगे। आखिर खुली हवा में सांस लेने के लिए हमें भी तो अपनी बंद खिड़कियां खोलनी होंगी।

जैसा कि हम देख रहे हैं कि देश में कोई भी निर्णय सरकार ले, उसे राजनीतिक बहस में लाने और राजनीति करने से विपक्ष बाज नहीं आता। सीधी भर्ती का विषय भी विपक्ष के राजनीतिक एजेंडे से अछूता नहीं है। कांग्रेस ने सीधी भर्ती को लेकर आरक्षण का मुद्दा उठाया है। कांग्रेस का ऐसा करना सिवाय राजनीतिक कवायद के, और कुछ भी नहीं है।
केंद्र सरकार आरक्षण की नीति को लेकर स्पष्ट है और वह संविधान सम्मत ढंग से लागू करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता अनेक बार जाहिर कर चुकी है। लिहाजा, इस नीतिगत फैसले पर विपक्ष का यह शिगूफा केवल राजनीतिक अवरोध की भावना से उठाया गया कदम है।

आज जब हम प्रतिस्पर्धा के दौर में दुनिया के समृद्ध देशों के साथ कंधे-से-कंधा मिला कर चलने के लिए तैयार खड़े हैं, ऐसे में हमें अपनी संपूर्ण ऊर्जा के साथ कार्य करने की जरूरत है। सीधी भर्ती के माध्यम से लोक सेवाओं एवं नीतिगत स्तर के निर्णयों में संबंधित क्षेत्रों की योग्यताओं की क्षमता का उपयोग करके ही हम अपनी संपूर्ण ऊर्जा के साथ कार्य कर सकेंगे।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं)