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जनादेश के निहितार्थ

भारतीय जनता पार्टी अपना गुजरात का किला बचाने में कामयाब रही, जबकि कांग्रेस के हाथ से उसने हिमाचल प्रदेश को छीन लिया। गुजरात में भाजपा पिछले 22 साल से सत्ता में है और अब राज्य के मतदाताओं ने एक और कार्यकाल के लिए उसे जनादेश दिया है। जबकि हिमाचल प्रदेश में सिर्फ पांच साल के कार्यकाल के बाद कांग्रेस के खिलाफ ऐसा माहौल बना कि मतदाताओं ने 68 सदस्यों वाली विधानसभा में उसे महज 21 सीटों पर समेट दिया। वहां 44 सीटें जीतकर भाजपा ने बड़ी विजय प्राप्त की है।

गुजरात में भाजपा के सामने कई मुश्किल चुनौतियां थीं। गुजरे तीन वर्षों में वहां के पाटीदार और दलित समुदाय आंदोलन पर उतरे। पाटीदारों के आरक्षण की मांग के जवाब में अन्य पिछड़े वर्गों के एक हिस्से ने भी आंदोलन की राह पकड़ी। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने इन तीनों आंदोलनों के युवा नेताओं को अपने साथ जोड़ लिया। उधर अनुमान लगाया गया कि नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से व्यापारी तबका नाराज हुआ होगा, जो आम तौर पर भाजपा का समर्थक रहा है। इन सबके आधार पर चर्चा चली कि इस बार गुजरात भाजपा के हाथ से निकल सकता है।

लेकिन जैसे ही नरेंद्र मोदी ने भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभाली, सूरत बदलनी शुरू हो गई। मोदी ने 34 रैलियों को संबोधित किया। चुनावी माहौल में वे यह साहसी बयान देने से भी नहीं चूके कि नोटबंदी और जीएसटी जैसे देश हित में उठाए गए कदमों की राजनीतिक कीमत चुकाने को वे तैयार हैं। ऐसी टिप्पणियों से यह संदेश गया कि मोदी सरकार भारत के दूरगामी भविष्य को ध्यान में रखकर दीर्घकालिक सुधार के फैसले ले रही है।
लोगों ने इसकी अहमियत समझी। सोमवार को वोटिंग मशीनें खुलीं, तो ये बात जाहिर हुई। मतदाताओं ने फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को स्पष्ट जनादेश दिया। कांग्रेस के लिए ये गहरी मायूसी की खबर है। उसके नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने को गुजरात में पूरी तरह झोंक दिया था।

इस बात के लिए तो उनकी तारीफ हुई कि उन्होंने जोशीला प्रचार अभियान चलाया और गुजरात में कभी मृतप्राय समझी जाने वाली कांग्रेस को लड़ाई में ला खड़ा किया। लेकिन आखिरकार उनकी पार्टी को लगभग तीन फीसदी वोट और कुछ सीटों की बढ़ोतरी के साथ ही संतोष करना होगा। उसके सामने यह कठोर हकीकत है कि जनता उसे ऐसी पार्टी के रूप में स्वीकार नहीं कर रही है, जिसे सरकार चलाने की जिम्मेदारी दी जाए। यह उसके लिए गहरे आत्म-निरीक्षण का विषय है। ये तथ्य भी उल्लेखनीय है कि भाजपा की सीटों में जरूर गिरावट आई, लेकिन उसके वोट प्रतिशत में वृद्धि हुई। फिर भी भाजपा को इस पर आत्मचिंतन करना चाहिए कि उसकी सीटें क्यों कम हुईं? फिलहाल, भाजपा को मोदी मैजिक का सहारा है। इसलिए प्रतिकूल स्थितियों में भी वह विजय प्राप्त कर रही है। मगर आदर्श स्थिति वो होगी, जब ऐसे हालात पैदा ही ना हों। भाजपा को ऐसा शासन देने की योजना बनानी चाहिए, जिससे लोग उत्साह के साथ उसे अपनी पहली पसंद बनाते रहें।
— (नई दुनिया, 19 दिसंबर)

गुजरात के नतीजे

नाटकीय बदलाव की उम्मीद तो पहले ही बहुत ज्यादा नहीं थी, लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों को इस बात का श्रेय दिया ही जाना चाहिए कि उसने भारतीय राजनीति को एक दिलचस्प पड़ाव तक पहुंचा दिया है। चुनाव नतीजों के बाद अब भारतीय जनता पार्टी की तुलना पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चा सरकार से की जा रही है, जिसने लंबे समय तक अजेय रहने का रिकॉर्ड बनाया था। राज्य के स्तर पर देखें, तो यह तुलना काफी हद तक ठीक भी नजर आती है। लेकिन इसे अखिल भारतीय परिदृश्य में देखें, तो भाजपा की विजय यात्रा का फलक कहीं ज्यादा व्यापक है। वाम मोर्चा पश्चिम बंगाल की जीत को त्रिपुरा से आगे कहीं नहीं ले जा सका था, क्योंकि केरल में तो वामपंथी सरकार पश्चिम बंगाल से भी पहले बन गई थी। जबकि भाजपा ने गुजरात से शुरू करके अपने फलक को अखिल भारतीय स्तर पर लगातार फैलाया है।
— (हिन्दुस्तान, 19 दिसंबर)