श्री प्रेमलाल सिन्हा बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे। संघ की विचारधारा से जुड़े होने के कारण उन्हें कांग्रेस सरकार ने प्रताड़ित किया। शासकीय सेवा में शिक्षक रहते हुए संस्था का कार्य कठिन था, अतः 1960 में उन्होंने विद्यालय के पद से त्यागपत्र दे दिया और भारतीय जनसंघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गये। संगठन के प्रति अपनी निष्ठा और कर्तव्यनिष्ठा के कारण कांग्रेसियों के दबाव के आगे वे कभी नहीं झुके।
जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने साइकिल पंक्चर की दुकान खोली और आर्थिक तंगी में भी वह अपने पथ पर अडिग रहे। उन्होंने गरियाबंद से देवभोग तक लगातार संगठन को मजबूत करने के लिए भ्रमण किया। यहां तक कि 1975 में आपातकाल के दौर में उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उनकी पहचान एक शानदार वक्ता, एक सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में थी और उन्होंने भाजपा में भी अपने विभिन्न दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन किया।