कृषि विकास से भारत का विकास

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डॉ़ शिव शक्ति बक्सी

किसानों, कृषि क्षेत्र और ग्रामीण भारत पर ध्यान केंद्रित करना भारत के चौतरफा विकास के लिए नया मंत्र है। इस बात को महसूस किया जा रहा है कि अगर भारत को एक उच्च विकास पथ पर आगे बढ़ना है, तो कृषि के क्षेत्र में क्रांति लाना बेहद महत्वपूर्ण है। और एक नई कृषि पर्यावरण प्रणाली बनाए बिना ऐसा करना संभव नहीं है। इस साल के बजट में जो किया गया है वह इस वक्त बहुत जरूरी था, इसमें कृषि क्षेत्र को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन दिया गया है और किसानों व ग्रामीण गरीबों के जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य रखा गया है। उच्च विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में सबसे महत्वपूर्ण है 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य, जो अब पहुंच से बाहर दिखाई नहीं देता और यह कृषि क्षेत्र के साथ-साथ लाखों-करोड़ों किसानों के जीवन को बदलने के लिए तैयार है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘न्यू इंडिया’ की परिकल्पना में 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करना सबसे प्रमुख लक्ष्य है। यह बजट पिछले बजटों में उठाए गए कदमों को और अधिक मजबूत करते हुए इस दिशा में आगे बढ़ाता है और एक व्यापक व समावेशी कृषि पर्यावरण व्यवस्था बनाने की दिशा में आगे बढ़ना सुनिश्चित करता है। फसलों की लगत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का निर्णय किसानों का जीवन बदलने और भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार को मजबूत करने के साथ-साथ कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन करने के लिए तैयार है। इस अभूतपूर्व घोषणा को मत्स्य पालन, पशुपालन, बांस की खेती सहित कृषि गतिविधियों से सम्बंधित अन्य क्षेत्रों में होने वाली नई पहल से सहायता प्राप्त है जिनका लक्ष्य है किसानों की आय को बढ़ाना। यह बजट ऐसी पहलों से भरा हुआ है जो वर्तमान में संकट के दौर से गुज़र रहे कृषि क्षेत्र को एक लाभदायक उद्यम में परिवर्तित कर सकती हैं।

यह मानना गलत होगा कि हमारे देश के नीति निर्माता इस बात से अनजान थे कि देश की ज्यादातर जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी और विभिन्न सरकारें अच्छी तरह से स्थापित किये गए महत्वाकांक्षी और प्राप्त किये जा सकने वाले लक्ष्यों के साथ इस क्षेत्र को प्राथमिकता देने के प्रयास करती दिखाई देती रही हैं। कृषि राज्यों का विषय होने के बावजूद केन्द्र सरकार को बहुत से लोगों की जीवन में सुधार लाने के लिए केंद्रीय क्षेत्र और केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। भारत की प्रगति ग्रामीण भारत के विकास पर निर्भर है, जहां अधिकांश लोग रहते हैं और अपनी आजीविका की तलाश करते हैं। अभी तक सरकारों का दृष्टिकोण शहरी क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने का रहा है जिससे अर्थव्यवस्था में असंतुलन और ग्रामीण क्षेत्र की उपेक्षा हुई और कृषि संकट व किसानों की आत्महत्याएं इसके परिणाम हैं।

कृषि, किसान और ग्रामीण क्षेत्रों के प्रति दूरदर्शी दृष्टिकोण की कमी का परिणाम यह हुआ कि कृषि को लाभहीन मानकर बड़ी संक्ष्या में लोगों ने खेती छोड़ दी और नौकरियों की तलाश में शहरों का रूख कर लिया। संतुलित और सतत आर्थिक विकास को हासिल करने में इस परिदृश्य को किसान समर्थक और गरीब समर्थक दृष्टिकोण के साथ बदलने की जरूरत महसूस की गई। ग्रामीण और कृषि क्षेत्र में निवेश न केवल लाखों लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाता है बल्कि यह अर्थव्यवस्था की नींव को भी मजबूत करेगा और अर्थव्यवस्था के समग्र उच्च विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा। अर्थव्यवस्था केवल तभी आगे बढ़ सकती है जब समाज में सबसे अधिक वंचित और पिछड़े लोगों को सशक्त बनाया जाएगा। शायद इसी दृष्टिकोण के साथ मोदी सरकार ने बजट में कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण प्रावधानों के जरिए ग्रामीण क्षेत्र में भारी निवेश करना शुरू कर दिया है।

पिछले तीन वर्षों के बजटों का उद्देश्य कृषि को एक उद्यम मानते हुए इसके प्रति समग्र दृष्टिकोण को बदलने का है जहां किसान अपने उत्पादन से अधिक लाभ कमा सकें। मुख्य रणनीति यह है कि किसी तरह किसानों को अच्छे दामों पर अपनी फसलों की बिक्री के लिए सशक्त बनाते हुए पूरी पर्यावरण-प्रणाली में सुधार करके कृषि के लिए इनपुट लागत को कम किया जा सके और किसानों को बेहतर मूल्य मिल सके। देश ने लगभग 30 लाख टन फलों और सब्जियों के साथ लगभग 275 मिलियन टन का रिकार्ड अनाज उत्पादन हासिल किया है, लेकिन किसानों को ऐसे रिकॉर्ड उत्पादन का ज्यादा से ज्यादा लाभ हो, यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार के प्रभावी कदमों की आवश्यकता है। इस संदर्भ में किसानों को फसलों के लागत मूल्य से डेढ़ गुना ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए बजट में की गई ऐतिहासिक घोषणा से कृषि को एक आकर्षक उद्यम बनाने में काफी मदद मिलेगी। अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस निर्णय के प्रभाव का सार निम्नलिखित शब्दों में बतायाः

“मुझे यह घोषणा करते हुए काफी प्रसन्नता हो रही है कि पूर्वनिर्धारित सिद्धांतों के अनुसार, सरकार ने खरीफ की सभी अघोषित फसलों के लिए एमएसपी को उत्पादन लागत का कम से कम डेढ़ गुना रखने का फैसला किया है। मुझे विश्वास है कि यह ऐतिहासिक निर्णय हमारे किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।”

लेकिन सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि इस ऐतिहासिक निर्णय का मुख्य लाभार्थी किसान ही हो। बढ़ी एमएसपी के मुकाबले फसलों की कीमत कभी-कभी कम भी रह सकती है और ऐसी परिस्थितियों को देखते हुए किसानों को ऐसी प्रतिकूल स्थिति से बचाव के लिए कोई सुरक्षा तंत्र तैयार करना होगा। इस तरह की स्थिति के लिए बजट में एक तंत्र बनाने के बारे में कहा गया है जिसके तहत एमएसपी और मौजूदा कम कीमतों के बीच के अंतर को किसानों को प्रदान किया जाएगा ताकि किसानों को इस प्रक्रिया में होने वाले किसी भी नुकसान से बचाया जा सके। ऐसे आश्वासन केवल एक ऐसी सरकार द्वारा ही दिये जा सकते हैं जिसका उद्देश्य कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करना और किसानों को उनके लाभ के प्रति आश्वस्त करना हो। अगर सरकार इस तरह के तंत्र को विकसित करने में सक्षम है, तो कृषि क्षेत्र देश में तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र बनने के लिए तैयार है।

सबसे बड़ी समस्या जो किसानों के सामने आती है वो है अपने उत्पाद की मार्केटिंग करना। यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसानों को उनकी उपज का अच्छा दाम सुनिश्चित करने के लिए एमएसपी के कार्यान्वयन का तंत्र बनाने के अलावा मौजूदा कृषि विपणन प्रणाली में बड़े पैमाने पर बदलाव की आवश्यकता है। जहां एमएसपी खरीद एक सीमित भौगोलिक पहुंच के भीतर ही केवल कुछ चयनित वस्तुओं की मांग को पूरा करते हैं, वहीं कृषि विपणन कई नीतिगत विकृतियों से जूझता है, बड़ी संख्या में बिचौलियों के परिणामस्वरूप बिखराव होता है, बुनियादी ढ़ांचा कमजोर है, ऊर्ध्वाधर एकीकरण की कमी है और आधिकारिक मंडियां गड़बड़ी से जूझ रही हैं। बजट में कृषि उत्पाद विपणन समिति की पहुंच को मौजूदा 470 से बढ़ाकर 585 करते हुए ई-नाम को और मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। छोटे और सीमांत किसानों के लिए बजट में मौजूदा 22000 ग्रामीण हाटों को ग्रामीण कृषि बाजारों में अपग्रेड करने का भी वादा किया गया है, जो ई-नाम से इलेक्ट्रॉनिक रूप से जुड़े होंगे और कृषि उत्पाद विपणन समितियों के नियमों से मुक्त होंगे जिससे किसान सीधे उपभोक्ताओं और थोक खरीददारों को अपना माल बेच सकेंगे। यह ऐसे छोटे और सीमांत किसानों को मजबूती देगा जो कृषि उत्पाद विपणन समिति और अन्य थोक बाजारों में सीधे लेनदेन करने की स्थिति में नहीं हैं। इससे करीब-करीब 86 प्रतिशत ऐसे किसानों का सशक्तिकरण होगा जो छोटे और सीमांत किसान हैं।

मोदी सरकार ने बजट में कीमत और मांग के पूर्वानुमान के लिए उचित नीतियों और व्यवस्थाओं के विकास के द्वारा एक संस्थागत तंत्र बनाने के लिए प्रावधान करते हुए किसानों द्वारा मूल्य आधारित निर्णय लेने पर विशेष जोर दिया है। 22000 ग्रामीण कृषि बाजारों एवं 585 कृषि उत्पाद विपणन समितियों के विकास और उन्नयन के लिए 2000 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान छोटे और सीमांत किसानों को और सशक्त बनाएगा। यह ध्यान देने वाली बात है कि सभी बस्तियों को सड़कों के साथ जोड़ने का कार्य लगभग पूरा हो गया है और बस्तियों को कृषि और ग्रामीण बाजारों (ग्रामीण कृषि बाजार) से जोड़ने का विचार दूरगामी क्षेत्रों में रहने वाले किसानों की पहुंच में वृद्धि करेगा।

बजट में घोषित किए गए सबसे रचनात्मक निर्णयों में से एक है क्लस्टर आधारित खेती को बढ़ावा देना। देश के कृषि क्षेत्रों को वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं के अनुसार पुनर्गठित करने की आवश्यकता है और विशिष्ट फसल वाले समूहों को वैज्ञानिक आधारों पर विकसित किया जा सकता है। औद्योगिक क्षेत्रों की तर्ज पर अपने विशिष्ट कृषि उत्पादन के अनुसार जिलों की पहचान करके उन्हें विकसित करने की घोषणा निश्चित रूप से देश में कृषि क्षेत्र की एक संगठित और योजनाबद्ध पुनर्रचना का कारण बनेगी। इससे पूरे क्षेत्र को आधुनिक बनाने और खाद्य प्रसंस्करण, संरक्षण, मूल्य संवर्धन, परिवहन और विपणन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करने हेतु उत्पादन से विपणन तक एक चेन बनाने में भी मदद मिल सकती है।

मत्स्य पालन और पशुपालन करने वाले किसानों के लिए भी किसान क्रेडिट कार्ड सुविधा का विस्तार करना भी एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे उनकी कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं की समस्या का समाधान होगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि किसान क्रेडिट कार्ड ने किसानों को काफी सशक्त बनाने के साथ-साथ उन्हें स्थानीय धन उधारदाताओं के कुचक्र से मुक्त कर दिया है और उन्हें काफी हद तक आत्मनिर्भर बना दिया है। मत्स्य पालन और पशुपालन के क्षेत्र में लगे किसान इस योजना के नए लाभार्थी हैं और इस योजना से उनकी उत्पादक क्षमता बढ़ेगी। इसके अलावा, मछली पालन करने वालों के लिए फिशरीज़ एंड ऐक्वाकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (एफ़एआईडीएफ) और पशुपालन के क्षेत्र की ढांचागत आवश्यकताओं के वित्तपोषण के लिए एनिमल हस्बेंडरी इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (एएचआईडीएफ) की घोषणा आने वाले दिनों में इस क्षेत्र को निश्चित रूप से एक बड़ी छलांग के लिए तैयार करेगी। इसी तरह 1290 करोड़ के परिव्यय के साथ राष्ट्रीय बैम्बू मिशन का पुनर्गठन न केवल बांस के किसानों की मदद करेगा बल्कि इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसरों का सृजन करते हुए पूरे कृषि क्षेत्र के किसानों की आय को बढ़ाने का एक नया रास्ता भी खोलेगा।

सिंचाई के लिए सोलर पंप्स लगाने का निर्णय भी काफी अभिनव है, लेकिन सबसे ज्यादा उत्साहजनक बात यह है कि इसका उपयोग किसानों के लिए अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए भी किया जा सकता है। यदि यह योजना वास्तव में काम करती है तो इससे वर्तमान में बिजली की समस्या का सामना कर रहे और उच्च लागत वाले डीजल पम्पिंग सेट व बिजली कटौती से जूझ रहे इस क्षेत्र में क्रांति आ सकती है। यह योजना न केवल बिजली की समस्या का समाधान करेगी बल्कि इससे उत्पादकता में भी वृद्धि होगी और बिजली वितरण कंपनियों को फालतू सौर ऊर्जा की बिक्री के जरिए किसान की आय में वृद्धि होगी।

ये कदम देश में एक नया कृषि पारिस्थितिक तंत्र बनाने में काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। जहां कृषि क्षेत्र में स्थायी विकास के लिए दूसरी हरित क्रांति की आवश्यकता महसूस की जा रही है, वहीं उत्पादकता बढ़ाना भी एक बड़ी चुनौती है। हालांकि भारत अनाज के उत्पादन में आत्मनिर्भर दिखाई देता है, फिर भी यह वैश्विक मानकों से मेल खाने वाले अधिकतम उत्पादकता के स्तर तक नहीं पहुंच पा रहा है। स्थिति को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 40 प्रतिशत से कम भूमि में ही दूसरी फसल उगाई जाती है और कुछ राज्यों में तो यह केवल 25 फीसदी ही है। मोदी सरकार के सभी बजटों में सिंचाई, बीज, प्रौद्योगिकी और उच्च मूल्य वाले खेती उत्पादों जैसे फल, सब्जियां, दूध, अंडे, चिकन और मत्स्य पालन आदि पर ध्यान दिया गया है ताकि उत्पादकता को सतत तरीके से बढ़ाया जा सके। त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी), हर खेत को पानी, पर ड्रॉप मोर क्रोप और प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत जल विभाजन के विकास से सिंचाई में पानी के प्रभावी उपयोग के लिए एक बेहतर रूपरेखा का निर्माण हो रहा है। सिंचाई सुविधाओं के अलावा, ग्रामीण सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण, सॉइल हेल्थ कार्ड योजना, फसल बीमा योजना के साथ-साथ मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई सामाजिक सुरक्षा योजना से भारत में किसानों और ग्रामीण गरीबों को नया आत्मविश्वास और सुरक्षा मिल रही है।

बजट में एक जीवंत, उत्तरदायी, बाजार उन्मुख और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी कृषि पारिस्थितिक तंत्र के बारे में भी बात की गई है। कृषि से संबन्धित अन्य गतिविधियां, जैसे – बागवानी, डेयरी, मुर्गी पालन, सूअर पालन और छोटे पशुओं को पालने की गतिविधियां, किसानों की आय में काफी वृद्धि करने में सहायक हो सकती हैं। भूमि और उसके दस्तावेजों का रखरखाव करने के पारंपरिक तरीकों से उत्पन्न होने वाली समस्याओं के समाधान और खेती के लिए भूमि के पट्टे के अभिनव तरीकों पर ध्यान केंद्रित करने से कृषि क्षेत्र में आधुनिक तरीकों और तकनीक के इस्तेमाल के लिए रास्ता प्रशस्त हो सकता है। बजट में भूमि मालिकों के अधिकारों से समझौता किए बिना पट्टेदार किसानों को फसल ऋण की सुविधा उपलब्ध कराने के बारे में भी बात की गई है जिससे कृषि समुदाय के उन वर्गों के लिए अवसरों के नए दरवाजे खुलते हैं जो अब तक उपेक्षित रहे हैं। यह पट्टेदार किसानों को नए रास्ते तलाशने और खेती को आगे बढ़ाने के लिए सशक्त बना सकता है।

तेजी से बदलते आर्थिक परिदृश्य में बजट में नीतिगत प्रयासों के साथ एक रणनीतिक रूपरेखा के अन्तर्गत आने वाले विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने का प्रयास किया गया है। अपने सभी आयामों से गरीबी को खत्म करने के भारतीय उद्देश्य से व्यापक रूप से निपटने के लिए इस बजट में न केवल कृषि क्षेत्र के लिए बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए भी एक परिवर्तनकारी एजेंडा है। यह स्वीकार करना होगा कि कृषि के क्षेत्र में क्रांति लाए बिना आने वाले दो से तीन वर्षों में आठ प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि दर प्राप्त नहीं की जा सकती। और जैसा कि लगता है कि बजट में इस तथ्य को पहचाना गया है, एक वैकल्पिक आर्थिक दृष्टिकोण और बेहद जरूरी नीतिगत रूपरेखा के इसके दावे पर कोई विवाद नहीं हो सकता है।