जनसंघ के कार्यकर्ता अपने काम में जुट जाएं

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प्रथम महानिर्वाचन के बाद उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ताओं को प्रदेश महामंत्री के नाते पं. दीनदयाल का पत्र

ह आवश्यक है कि हम अपने क्षेत्र की जनता से पिछले दिनों में स्थापित संपर्क को पानी की रेखा के समान मिटने न दें, बल्कि दृढ़तर करते रहें। कांग्रेस शासन का पिछला ढर्रा तथा आज भी जैसे लोग तथा जिस प्रकार विधानसभाओं में पहुंचे हैं, उसे देखते हुए यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि जनता के कष्ट अगले पांच वर्षों में कम न होकर बढ़ेंगे ही। विभिन्न क्षेत्रों में अन्याय और अत्याचारों की परंपरा टूटने वाली नहीं, हमें समाज के ऊपर आने वाली आपत्ति में, वह एक व्यक्ति पर हो या समुदाय पर हो, उसके साथ खड़ा होना पड़ेगा। इसमें आप सदा आगे रहेंगे, यही विश्वास है। चुनावों में भारतीय जनसंघ की स्थिति, उसके परिणाम एवं आगे की अपनी गतिविधि यह पिछले दिनाें  में आम चर्चा का विषय रहा है। इस संबंध में प्रांतीय और अखिल भारतीय स्तर पर भी विचार हुआ है। सभी इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि यद्यपि चुनावों के परिणाम ‘सीट्स’ जीतने की दृष्टि से, जिसके लिए हमारी कमियों के अतिरिक्त कांग्रेस सरकार की अनियमितताएं भी बहुत कुछ जिम्मेदार हैं, संतोषजनक नहीं कहे जा सकते किंतु समाज में प्रवेश, प्रचार, अनुभव एवं वास्तविक जनतंत्र के लिए आवश्यक सही विरोधी दल के निर्माण कार्य में हमें पर्याप्त सफलता मिली है। चुनावों में हमारी ताकत और कमजोरी, हमारी अच्छाइयां और बुराईयां दोनों ही प्रकट हुई हैं। हां, संपूर्ण स्थिति का गहराई से विचार किया जाए तो यह स्पष्ट है कि भारत के राजनीतिक मंच पर भारतीय जनसंघ एेसी शक्ति के रूप में आविर्भूत हो चुका है, जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती, किंतु जनसाधारण के लिए समझने योग्य एवं दृश्यप्रभावी स्वरूप उपस्थित करने के लिए हमें प्रयत्न करना होगा।

चुनावों के अवसर पर काफी परिश्रम करके हमने अपने कार्य की नींव रखी है, यदि हम बराबर काम करते रहे तो मुझे विश्वास है कि हम अपने दल को सुदृढ़ रूप में खड़ा कर सकेंगे। भारतीय जनसंघ तो चुनावों के समय शैशवावस्था में था ही, हमारे बहुत से प्रत्याशी भी ऐसे थे जो सच्चरित्र, ईमानदार एवं योग्य होते हुए भी जनता के समक्ष जन नेता के रूप में पहली ही बार आए थे। अखिल भारतीय कार्यकारिणी ने यह अनुभव किया कि हमारी संस्था का ही नहीं अपितु हमारे उम्मीदवारों का भी जनजीवन में गहरा प्रवेश होना चाहिए। जब जनता अनुभव करेगी कि ये लोग वोट के लिए ही हमारे सामने नहीं आते, बल्कि हमारी कठिनाईयों मंे सदा साथ देते हैं तो हमें उनका प्रतिनिधित्व करते देर नहीं लगेगी।

केंद्रीय कार्यकारिणी ने जनसंघ को सुदृढ़ करने की दृष्टि से निम्न पंचविध कार्यक्रम की योजना की है-

1. जनसंघ की शाखाएंः ग्राम-ग्राम में खोलना तथा नए सदस्याें की भरती करना। आप जितने सदस्य बना लेंगे, उतना ही कार्य-विस्तार की दृष्टि से लाभ होगा।

2. निर्वाचन यंत्र का निर्माणः निर्वाचन की दृष्टि से अपने सभी कार्यकर्ताओं को योग्य ज्ञान से युक्त करना तथा प्रत्येक पद पर सतर्कता की वृत्ति पैदा करना।

3. रचनात्मक कार्यक्रमः राष्ट्र के विभिन्न प्रश्नों पर अपने कार्यकर्ताओं को शिक्षित करते हुए उनके द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में प्रचार करना तथा वहां आवश्यक संगठनों का निर्माण करना।

4. आंदोलनात्मकः शिकायतों का संगठित एवं वैधानिक रूप से व्यक्तिकरण (organised ventilation of grievances)आवश्यक। जनता की विभिन्न प्रकार की शिकायतें रहती हैं। वे उनको दूर करने का प्रयत्न नहीं करते, न उन्हें ज्ञान है कि कैसे किया जाए? केवल इधर-उधर चर्चा करते रहने से असंतोष, निराशा और विफलता का ही भाव पैदा होता है। शासन को भी कई बार उनका ठीक रूप से ज्ञान न होने के कारण, सरकार के द्वारा कोई सक्रिय कदम नहीं उठाया जा सकता। अतः आवश्यक है कि सभी प्रकार की शिकायतों को जनसंघ की समितियां एवं कार्यकर्ता लें, उन्हें योग्य अधिकारियों तक ले जाएं और उनको दूर कराने का प्रयत्न करें। यदि आवश्यक हो तो जनमत तैयार करके उसका दबाव भी डाला जाए।

5. प्रचारात्मकः जनसंघ के विचारों, कार्यक्रमों एवं उसकी गतिविधि का प्रचार सभी साधनों से किया जाए। मैं समझता हूं कि उपर्युक्त आधार पर हम लोग यदि अपने कार्य को गति देंगे तो वह निश्चित रूप से वेग के साथ प्रसृत होगा। विधानसभाओं में संगठित एवं सशक्त विरोधी दल के अभाव को हमें बाहर से सही आधार पर विरोधी दल निर्माण करके पूरा करना होगा। यदि हमने बाहर जनमत अपने पीछे रखा तो उसको व्यक्त करने वाले जो थोड़े से हमारे सदस्य विधानसभा में हैं, उनका आवाज को भी बल मिलेगा। ये सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्र के ही नहीं, भारतीय जनसंघ के प्रतिनिधि हैं। जनता के कष्ट, वे फिर चाहे कहीं के हों, उनकी ओर विधानसभा का ध्यान खींचने का काम ये बराबर करते रहेंगे। हमें उनकी मदद करने की आवश्यकता है।

पत्र काफी लंबा हो गया है किंतु फिर भी अंत में यह लिखना आवश्यक समझता हूं कि काम में जुट जाने की जरूरत है। ऊपर से जो कुछ निश्चित हुआ है, वह ऊपर लिखा है और भी जो-जो निश्चित होगा, वह आपके पास पहुंचेगा किंतु वहां के संपूर्ण निश्चय अपने कार्य पर ही निर्भर हैं। साथ ही, पीछे क्या हुआ, इससे हम आगे क्या करते हैं, इसका ही अधिक महत्व है। उधर हम प्रवृत्त हों, यही अनुरोध है। विशेष कुछ हो तो सूचित कीजिएगा तथा प्रांतीय कार्यालय से संबंध बनाए रखिए।