नए भारत के लिए जनादेश

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भूपेंद्र यादव

परंपरागत भारतीय राजनीति में चुनाव जाति, वंश, संप्रदाय जैसे पहलुओं पर केंद्रित रहे हैं। तमाम चुनाव विश्लेषक भी इन्हीं आधार पर चुनावी भविष्यवाणी करते रहे हैं, परंतु भाजपा गुजरात चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में वंशवाद और जातिवाद के खिलाफ विकासवाद के नारे के साथ चुनावी रण में उतरी। कांग्रेस ने न केवल भाजपा की विकासवादी राजनीति का विरोध किया, बल्कि भ्रामक प्रचार के माध्यम से यह धारणा स्थापित करने का प्रयास भी किया कि गुजरात के विकास में सत्यता नहीं है। जहां कांग्रेस अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो पाई, वहीं भाजपा लगातार विकास के मुद्दे के साथ चुनाव में आगे बढ़ती रही। चुनाव के दौरान ही विभिन्न अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के माध्यम से भी गुजरात के विकास दर के दस प्रतिशत होने की बात सामने आई।

अगर गुजरात में विगत 22 वर्षों के भाजपा शासन को देखें तो कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में गुजरात ने बहुत ही उत्कृष्ट ढंग से विकास किया है। सरकार की नीतियों के परिणामस्वरूप रोजगार के अवसर भी पैदा हुए। केंद्र सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी के रूप में दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए। कांग्रेस को लगा था कि वह नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों के सहारे गुजरात में जीत हासिल कर लेगी, मगर जनता ने उसकी मंशा भांपते हुए उसके इरादों पर पूरी तरह पानी फेर दिया। अगर इस चुनाव का समग्र विश्लेषण करें तो इस चुनाव में विकास के मुद्दे और सरकार के प्रति जनता का विश्वास स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आया है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि गुजरात में विकास की जो प्रक्रिया चली है उसका लाभ गुजरात के सभी लोगों को मिला है। यहां तक कि कांग्रेस के समय जब रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट आई थी तो उसमें भी बताया गया था कि गुजरात में अल्पसंख्यकों का विकास अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर ढंग से हुआ है। वैसे विकास का तात्पर्य सिर्फ सरकार की नीतियों से नहीं है। इसके अंतर्गत कई और विषय भी आते हैं। कानून व्यवस्था की स्थिति, महिलाओं का सम्मान, अधिकतम कल्याणकारी नीतियों को जनता तक पारदर्शी ढंग से पहुंचाने की व्यवस्था, भ्रष्टाचार का खात्मा, निर्णायक नेतृत्व, ये सब भी विकास के मानक होते हैं जिनमें गुजरात की स्थिति बहुत बेहतर है।

विकास के अलावा गुजरात चुनाव का दूसरा केंद्र बिंदु सुशासन रहा। इस चुनाव समेत पहले भी कांग्रेस जब भी चुनाव लड़ी है, उसने वोट बैंक की राजनीति को ही प्रमुख माना है। वह दलित से लेकर अल्पसंख्यक तक सभी को वोट बैंक के रूप में देखने की राजनीति करती आई है। कांग्रेस शासन के दौरान ‘खाम’ की राजनीति गुजरात ने देखी है। ‘खाम’ की राजनीति का अर्थ है वर्ग-विशेष के लोगों को लामबंद कर वोट बैंक बनाकर चुनाव जीतना। इस बार भी कांग्रेस ने पाटीदार समाज में असंतोष फैलाकर हार्दिक पटेल के माध्यम से आंदोलन चलाने की कोशिश की। उसने अपनी ही पार्टी के एक हारे हुए जिला पंचायत सदस्य को ‘ठाकोर सेना’ नामक संगठन के रूप में खड़ा किया। जिग्नेश मेवाणी को ‘दलित सेना’ के नाम से खड़ा किया। यह साफ होता है कि राहुल गांधी ने जातिवादी ताकतों को आउटसोर्स किया। कांग्रेस सिर्फ भाजपा के प्रति एक भ्रम की स्थिति गुजरात के विभिन्न समाजों में फैलाना चाहती थी। इसके पीछे उसका मूल उद्देश्य यह था कि गुजरात आपस में बंट जाए और इसका राजनीतिक लाभ उसे मिले, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। कांग्रेस के जातिवाद के स्थान पर गुजरात के लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सुशासन और विकास वाली राजनीति को ही वरीयता दी।

यह चुनाव ‘लोकतंत्र’ और ‘वंशवाद’ के बीच में भी था। इस चुनाव के दौरान ही ‘वंशवादी राजनीति’ की परंपरा को जारी रखते हुए राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने। वहीं, लोकतांत्रिक तरीके से चलने वाली भाजपा ने अपनी संगठनात्मक शक्ति को बढ़ाया। चुनाव शुरू होने से पहले ही भाजपा ने आदिवासी क्षेत्रों तक पहुंच बढ़ाई। पार्टी ने दीनदयाल जन्म शताब्दी वर्ष की योजना के अंतर्गत विस्तारकों की योजना का निर्माण किया जिसके द्वारा सभी बूथों तक विस्तारक गए। पार्टी ने मजबूत सांगठनिक ढांचे के माध्यम से शक्ति-केंद्र की स्थापना की, जिसके माध्यम से प्रत्येक राजनीतिक गतिविधि की निगरानी के साथ-साथ आम मतदाता से संपर्क रखने का कार्य हुआ। अपने विषयों और विचारों सहित 22 वर्षों का हिसाब राज्य की जनता तक पहुंचाने के लिए पार्टी ने घर-घर लोक संपर्क अभियान भी चलाया। एक तरफ जब कांग्रेस बैलगाड़ी की बात कर रही थी, तो भाजपा सी-प्लेन को प्रदेश की जनता के समक्ष विकास के एक मॉडल के रूप में लेकर आई। अहमदाबाद के रिवर फ्रंट से दूर-देहात में स्थित ढेरों बांधों को जोड़ने का जो काम हुआ है, वह यह दर्शाता है कि अगर तकनीक अहमदाबाद के शहरी क्षेत्रों के लिए है तो ग्रामीण क्षेत्र के बांधों के लिए भी है।

यह चुनाव ‘न्यू इंडिया’ बनाम ‘मध्यकालीन युग’ के बारे में भी था। यहां न्यू इंडिया का अर्थ है कि हम वे सभी निर्णय लें जो देशहित में हों। हम उन नीतियों को लागू करें और उन तकनीक का विकास करें जिससे देश आगे बढ़ सके। ‘मध्यकालीन युग’ का अर्थ है कि लोगों को जाति और कबीलों में बांटकर देखा जाए। यही कारण है कि राहुल गांधी से लेकर हार्दिक और जिग्नेश की सभा कभी भी किसी विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों के बीच नहीं हुई। कुछ लोगों का हुजूम इकट्ठा करके उन लोगों ने यह माहौल बनाने की कोशिश की कि गुजरात में एक आंदोलन उठ खड़ा हुआ है, जबकि वास्तविकता इसके उलट थी। कांग्रेस के विपरीत विभिन्न वर्गों और समूहों से बात करने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का युवा टाउन हॉल कार्यक्रम हुआ जिसमें लाखों युवाओं ने भाग लिया, महिलाओं से संवाद के लिए सुषमा स्वराज का कार्यक्रम हुआ, दलित, ओबीसी, आदिवासी समाजों से सीधा संपर्क किया गया, प्रधानमंत्री ने भी कार्यकर्ताओं और विभिन्न वर्गों के साथ संवाद किया। ऐसे में समझा जा सकता है कि वैचारिक रूप से यह चुनाव ‘न्यू इंडिया’ बनाम ‘मध्यकालीन युग’ के बीच का था।

देश के लोकतंत्र में सुधारों का जो क्रम है, वह लंबे समय तक चलने वाला है। हमारे देश में सुशासन की राजनीति को लंबे समय तक जारी रखने की आवश्यकता है। गुजरात ने हाल के वर्षों में कृषि से लेकर विभिन्न क्षेत्रों में जो प्रगति की है उस दृष्टि से आवश्यक तकनीक, शासन में जनता की भागीदारी और समृद्धि सभी लोगों के पास हो। भारत जिन जीवन-मूल्यों को लेकर आगे बढ़ता रहा है, उनमें परिवार, संस्कृति, सौहार्द, विकास और तकनीक के नवीन प्रयोग द्वारा एक नए भारत के निर्माण का संकल्प है।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री एवं राज्यसभा सदस्य हैं)

(दैनिक जागरण से साभार)