लाखों स्वास्थ्यकर्मियों के परिश्रम की वजह से ही भारत सौ करोड़ वैक्सीन डोज़ का पड़ाव पार कर सका है
गत 24 अक्टूबर को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ की 82वीं कड़ी में कहा कि 100 करोड़ वैक्सीन डोज़ का आंकड़ा बहुत बड़ा जरूर है, लेकिन इससे लाखों छोटी-छोटी प्रेरक और गर्व से भर देने वाली अनेक अनुभव, अनेक उदाहरण जुड़े हुए हैं।
देश के स्वास्थ्यकर्मियों के कठिन परिश्रम की सराहना करते हुए श्री मोदी ने कहा कि हमारे स्वास्थ्यकर्मियों ने अपने अथक परिश्रम और संकल्प से एक नई मिसाल पेश की। उन्होंने इनोवेशन के साथ अपने दृढ़ निश्चय से मानवता की सेवा का एक नया मानदंड स्थापित किया। उनके बारे में अनगिनत उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि कैसे उन्होंने तमाम चुनौतियों को पार करते हुए अधिक से अधिक लोगों को सुरक्षा कवच प्रदान किया।
उन्होंने कहा कि लाखों स्वास्थ्यकर्मियों के परिश्रम की वजह से ही भारत सौ करोड़ वैक्सीन डोज़ का पड़ाव पार कर सका है। आज मैं सिर्फ आपका ही आभार व्यक्त नहीं कर रहा हूं, बल्कि हर उस भारतवासी का आभार व्यक्त कर रहा हूं, जिसने ‘सबको वैक्सीन-मुफ्त वैक्सीन’ अभियान को इतनी ऊंचाई दी, कामयाबी दी।
अपने संबोधन के दौरान श्री मोदी ने कहा कि आप जानते हैं कि 31 अक्तूबर को सरदार पटेल जी की जन्म जयंती है। ‘मन की बात’ के हर श्रोता की तरफ से और मेरी तरफ से, मैं, लौहपुरुष को नमन करता हूं। उन्होंने कहा कि 31 अक्तूबर को हम ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाते हैं। हम सभी का दायित्व है कि हम एकता का संदेश देने वाली किसी-न-किसी गतिविधि से जरुर जुड़ें।
श्री मोदी ने कहा कि सरदार साहब कहते थे कि—“हम अपने एकजुट उद्यम से ही देश को नई महान ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं। अगर हममें एकता नहीं हुई तो हम खुद को नई-नई विपदाओं में फंसा देंगे।” यानी राष्ट्रीय एकता है तो ऊंचाई है, विकास है। हम सरदार पटेल जी के जीवन से, उनके विचारों से, बहुत कुछ सीख सकते हैं।
साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि जीवन निरंतर प्रगति चाहता है, विकास चाहता है, ऊंचाइयों को पार करना चाहता है। विज्ञान भले ही आगे बढ़ जाए, प्रगति की गति कितनी ही तेज हो जाए, भवन कितने ही भव्य बन जाए, लेकिन फिर भी जीवन अधूरापन अनुभव करता है। लेकिन जब इनमें गीत-संगीत, कला, नाट्य-नृत्य, साहित्य जुड़ जाता है, तो इनकी आभा, इनकी जीवंतता अनेक गुना बढ़ जाती है। एक प्रकार से जीवन को सार्थक बनना है तो ये सब होना भी उतना ही जरुरी होता है, इसलिए ही कहा जाता है कि ये सभी विधाएं हमारे जीवन में एक उत्प्रेरक का काम करती हैं, हमारी ऊर्जा बढ़ाने का काम करती हैं।
श्री मोदी ने कहा कि मानव मन के अंतर्मन को विकसित करने में, हमारे अंतर्मन की यात्रा का मार्ग बनाने में भी, गीत-संगीत और विभिन्न कलाओं की बड़ी भूमिका होती है और इनकी एक बड़ी ताकत ये होती है कि इन्हें न समय बांध सकता है, न सीमा बांध सकती है और न ही मत-मतांतर बांध सकता है। अमृत महोत्सव में भी अपनी कला, संस्कृति, गीत, संगीत के रंग अवश्य भरने चाहिये।
उन्होंने कहा कि आज़ादी की लड़ाई में अलग-अलग भाषा, बोली में, देशभक्ति के गीतों और भजनों ने पूरे देश को एकजुट किया था। अब अमृतकाल में हमारे युवा देशभक्ति के ऐसे ही गीत लिखकर इस आयोजन में और ऊर्जा भर सकते हैं। देशभक्ति के ये गीत मातृभाषा में हो सकते हैं, राष्ट्रभाषा में हो सकते हैं और अंग्रेजी में भी लिखे जा सकते हैं, लेकिन ये जरुरी है कि ये रचनाएं नए भारत की नई सोच वाली हों, देश की वर्तमान सफलता से प्रेरणा लेकर भविष्य के लिए देश को संकल्पित करने वाली हों। संस्कृति मंत्रालय की तैयारी तहसील स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक इससे जुड़ी प्रतियोगिता कराने की है।
श्री मोदी ने कहा कि एक और विधा हमारे यहां लोरी की भी है। हमारे यहां लोरी के जरिए छोटे बच्चों को संस्कार दिए जाते हैं, संस्कृति से उनका परिचय करवाया जाता है। लोरी की भी अपनी विविधता है। तो क्यों न हम अमृतकाल में इस कला को भी पुनर्जीवित करें और देशभक्ति से जुड़ी ऐसी लोरियां लिखें, कविताएं, गीत, कुछ-न-कुछ जरुर लिखें जो बड़ी आसानी से हर घर में माताएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को सुना सके। इन लोरियों में आधुनिक भारत का संदर्भ हो, 21वीं सदी के भारत के सपनों का दर्शन हो। आप सब श्रोताओं के सुझाव के बाद मंत्रालय ने इससे जुड़ी प्रतियोगिता भी कराने का निर्णय लिया है।