‘राज्य की वंशवादी और भ्रष्ट सरकार को उखाड़ फेंकें’

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भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक

तेलंगाना पर प्रेस वक्तव्य

हैदराबाद (तेलंगाना) में 02-03 जुलाई, 2022 को आयोजित भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में तेलंगाना की स्थिति और खराब होने पर चिंता प्रकट की गई। पार्टी द्वारा जारी एक प्रेस वक्तव्य में कहा गया है कि राज्य में कानून व्यवस्था की दयनीय हालत है। स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल है। आजीविका की तलाश में लोग राज्य से पलायन कर रहे हैं। किसानों को सरकार से पर्याप्त सहायता नहीं मिलती है। इन परिस्थितियों में केवल भाजपा, अपने ‘देश-प्रथम’ दृढ़ विश्वास और ध्यान के साथ तथा भ्रष्टाचार मुक्त और घोटाला मुक्त शासन के त्रुटिहीन ट्रैक रिकॉर्ड के साथ, तेलंगाना के लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को समझ सकती है। हम यहां तेलंगाना पर भाजपा द्वारा जारी प्रेस वक्तव्य का पूरा पाठ प्रकाशित कर रहे हैं:

भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी तेलंगाना राज्य में आर्थिक, सामाजिक और मानव विकास से संबंधित सभी मैट्रिक्स और सूचकांकों में गंभीर गिरावट पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करती है। पिछले आठ वर्षों में राज्य ने जो यह घिनौना पतन देखा है, वह दर्दनाक है और इसमें वर्तमान सरकार की जिम्मेदारी पूरी तरह से है।

भाजपा ने पृथक तेलंगाना के लिए भावनात्मक जन आंदोलन का नेतृत्व किया

पृथक तेलंगाना राज्य के लिए संघर्ष, जैसे हैदराबाद संस्थान की मुक्ति के लिए भारतीय संघ में विलय सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष, भारत के स्वतंत्रता के बाद के इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। राज्य के लोगों, विशेषकर युवाओं, छात्रों और कर्मचारियों ने एक अलग राज्य प्राप्त करने के लिए एक लंबा और उत्साही संघर्ष जारी रखा। उन्हें आबादी के सभी वर्गों का भरपूर समर्थन प्राप्त हुआ। आंदोलन ने अपने कई चरणों में कई युवाओं के बलिदान को देखा, जिनमें से कुछ का बलिदान अविस्मरणीय है। तेलंगाना के लोगों की सामूहिक इच्छा, भाजपा के रचनात्मक संघर्ष समर्थन ने एक सम्मोहक स्थिति पैदा की, जिसके कारण 2014 में तेलंगाना राज्य का गठन हुआ।

पृथक तेलंगाना राज्य के लिए संघर्ष लोगों की भावनाओं से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है

जब श्री राजनाथ सिंह पार्टी के अध्यक्ष थे तब संघर्ष और लोगों द्वारा किए गए बलिदान की सराहना करते हुए वे भाजपा ने 2006 में एक अलग राज्य की मांग का समर्थन किया। इतना ही नहीं, भाजपा ने बाबासाहेब अम्बेडकर के छोटे राज्यों के दृष्टिकोण का समर्थन किया, क्योंकि छोटे राज्य तेजी से विकास करते हैं, बेहतर प्रशासन और सभी समुदायों के गहरे राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए उत्तरदायी हैं। पृथक तेलंगाना से विकास संभव था, जैसाकि अन्य राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, उत्तराखंड आदि के गठन से यह साबित हुआ है।

यह स्पष्ट है कि पृथक तेलंगाना आंदोलन ने तब तेजी पकड़ी जब भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर पूरी ईमानदारी के साथ उसमें उतरी। स्वर्गीय श्रीमती सुषमा स्वराज, जिन्हें तेलंगाना में ’चिन्नम्मा’ के नाम से जाना जाता है, ने तेलंगाना राज्य में कई रैलियां कीं और तत्कालीन राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए संसद के दौरान महत्वपूर्ण कार्य किए।

यह स्पष्ट है कि एक अलग तेलंगाना राज्य के आंदोलन में भाजपा सबसे आगे थी और उसके सक्रिय और स्पष्ट समर्थन के कारण ही पृथक तेलंगाना संभव हो पाया।

नीलू, निधुलु, नियामकालु – अधूरी आकांक्षाएं

नीलू, निधुलु, नियामकालु (पानी, धन, और रोजगार रिक्तियों को भरना) 1969 में और 2014 में तेलंगाना के गठन तक चले दूसरे चरण में आंदोलन के सर्वोत्कृष्ट पहलू रहे हैं।

हालांकि, अलग तेलंगाना की ऐतिहासिक उपलब्धि के आठ साल बाद राज्य के लोग बहुत ही ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं क्योंकि उनकी उम्मीदों और आशाओं पर लगातार पानी फेरा जा रहा है। विडंबना यह है कि जिन लोगों ने तेलंगाना के नाम से राजनीतिक लाभ उठाया, वे लोग ही जनता के साथ

टीआरएस तेलंगाना आंदोलन के तीनों मैट्रिक्स, नील्लू, निधुलु और नियामकालु (पानी, धन और रोजगार रिक्तियों को भरने) पर बुरी तरह विफल रही है

धोखाधड़ी करने में सबसे आगे रहे। नतीजतन, निराशा की भावना ने तेलंगाना की आम जनता को आश्चर्यचकित कर दिया है कि क्या इतने बलिदानों ने अंततः उन्हें इस गिरावट का गवाह बनाया है।
मौजूदा सरकार के आठ साल बाद तेलंगाना की स्थिति और भी खराब हो गई है। भाजपा ने तेलंगाना आंदोलन को एक परिवार की सनक को सौंपने और परिवार को अवैध संपत्ति जमा करने में सक्षम बनाने के लिए समर्थन नहीं किया था। भाजपा ने तेलंगाना का इस आशय से समर्थन किया कि तेलंगाना के लोगों, विशेषकर युवाओं, छात्रों, किसानों और अन्य हाशिए के वर्गों की आकांक्षाओं को साकार किया जाए। भाजपा को उम्मीद थी कि हाशिए पर रहने वाले और युवाओं की समस्याओं का तत्काल समाधान किया जाएगा। हालांकि, न तो कोई भर्ती अभियान चलाया गया है और न ही दलितों और महिलाओं जैसे हाशिए पर पड़े लोगों के उत्थान के लिए राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से कोई प्रयास किया गया है।

इसके विपरीत अव्यावहारिक योजनाओं पर नोटिफिकेशन जारी करने और दिखावटी घोषणाओं के अलावा आज तक कुछ भी ठोस कार्य नहीं हुआ है। सत्तारूढ़ सरकार ने अपने 2014 के घोषणापत्र में एक लाख रिक्तियों को भरने का वादा किया था, किंतु वह ऐसा करने में विफल रही। इसी तरह तेलंगाना के विश्वविद्यालय, जिनकी तेलंगाना के गठन में भूमिका अहम और महत्वपूर्ण थी, आज निराशाजनक स्थिति में हैं क्योंकि 70 प्रतिशत संकाय पद खाली हैं और अनुसंधान, विकास और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए धन की भारी कमी है। शिक्षकों की भर्ती और स्कूल भवनों के पूरी तरह से जर्जर होने से स्कूली शिक्षा की स्थिति और भी खराब है।

तेलंगाना के अस्पतालों की भी हालत दयनीय है। उम्मीद की जा रही थी कि कोविड के बाद स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रति सरकार के रवैये में व्यापक बदलाव आएगा। सभी सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में 70 प्रतिशत रिक्तियां और इस राज्य के सबसे पुराने अस्पतालों में से एक, अर्थात् उस्मानिया अस्पताल की दयनीय स्थिति, स्वास्थ्य देखभाल के महत्वपूर्ण मुद्दे के प्रति सरकार के लापरवाह रवैये को दर्शाती है।

ऐतिहासिक, आर्थिक आदि कई कारणों से उत्तरी तेलंगाना के लोग आजीविका की तलाश में खाड़ी देशों में चले गए- इसलिए नहीं कि उनके पास वहां भव्य पद थे, बल्कि इसलिए कि उनके पास कोई विकल्प नहीं था। अधिकांश पुरुष सदस्य अपने परिवार को छोड़कर चले गए। 2011 की जनगणना के अनुसार 15 लाख से अधिक लोग, ज्यादातर उत्तरी तेलंगाना से, खाड़ी देशों में चले गए। वर्तमान शासन के नेताओं ने लंबे और ऊंचे दावे किए कि एक बार एक अलग राज्य स्थापित हो जाने पर; वे सभी जो अब तक प्रवास कर चुके थे, वे अवसरों की अधिकता के कारण स्वेच्छा से वापस आएंगे। पिछले आठ सालों में हकीकत में क्या हुआ? पलायन नहीं रुका। इतना ही नहीं, राज्य सरकार खाड़ी में उत्पीड़न का सामना करने वालों को बचाने के लिए भी आगे नहीं आई।

जब 2014 में तेलंगाना राज्य का गठन किया गया था तब तेलंगाना भरपूर धन के साथ एक समृद्ध राज्य था। राज्य का राजस्व अधिशेष 369 करोड़ रुपये था जो अब 16,500 करोड़ रुपये का घाटा हो गया है। आज राज्य की देनदारियां चार गुना बढ़कर 3.20 लाख करोड़ रुपये हो गई हैं।

पानी के मुद्दे पर सरकार के दावों और हकीकत में मेल नहीं है। सरकार का तथाकथित प्रमुख कार्यक्रम, कालेश्वरम धन की हेराफेरी के आरोपों से भरा पड़ा है। तथ्य यह है कि परियोजना की लागत 40,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 1.30 लाख करोड़ रुपये हो गई है।

दूसरी ओर कलेश्वरम का बहाना बनाकर अन्य सिंचाई परियोजनाओं को पूरी तरह से उपेक्षित किया गया है। उदाहरण के लिए पालमूर-रंगारेड्डी परियोजना, जो पिछड़े दक्षिण तेलंगाना में 18 लाख एकड़ की सिंचाई के लिए थी, उपेक्षित है। नेट्टम्पाडु, डिंडी, आदि जैसी परियोजनाओं का भी यही हाल हुआ है।
टीआरएस तेलंगाना आंदोलन के तीनों मैट्रिक्स, नील्लू, निधुलु और नियामकालु (पानी, धन और रोजगार रिक्तियों को भरने) पर बुरी तरह विफल रही है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि तेलंगाना के लोगों को लगता है कि वे वर्तमान सरकार के कार्यकाल के दौरान तवे से सीधे आग में गिर गए हैं। (पेनम लो नुंची पोय्यि लोकी, तवे से निकले चूल्हे में गिरे)।

आधुनिक निज़ाम और उनके रजाकार— एक नए तेलंगाना मुक्ति आंदोलन की आवश्यकता

पिछले आठ वर्षों के दौरान तेलंगाना ने एक राजवंश को कायम रखने के लिए एक निर्लज्ज और घोर प्रयास देखा। मुख्यमंत्री के बेटे को आज जो शक्ति प्राप्त है, वह अन्य कैबिनेट मंत्रियों से कहीं अधिक है। शासन परिवार के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जो स्पष्ट रूप से बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की ओर ले जाता है।

राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति दयनीय है। सत्ताधारी दल के नेता, सत्ता में उनके सहयोगी और उनके भाई-बहन जघन्य अपराधों में शामिल हो रहे हैं। विपक्षी दलों पर झूठे मामले थोपने के लिए पुलिस का दुरुपयोग किया जा रहा है। विधायक के बच्चे कीचक बन गए हैं और उचित सतर्कता की कमी के कारण ड्रग कल्चर कायम हो गया है। वास्तव में तेलंगाना ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पीओसीएसओ) के तहत सबसे अधिक मामले दर्ज किए हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध दर प्रति 1 लाख जनसंख्या पर 95.4 है और देश में शीर्ष 5 में से एक है और 56.5 की राष्ट्रीय दर से लगभग दोगुनी है। इसी तरह बच्चों के प्रति अपराध दर प्रति 1 लाख जनसंख्या पर 28.9 है।

तेलंगाना में हम जो देख रहे हैं वह सरासर निरंकुशता, बेलगाम भाई-भतीजावाद और शर्मनाक अहंकार है, जिसका तेलंगाना की जनता ने हमेशा विरोध किया है। 1946-48 के तेलंगाना मुक्ति आंदोलन के दौरान लोग रजाकारों के अत्याचारों के खिलाफ थे, जिन्होंने हिंदुओं के खिलाफ क्रूरता को अंजाम दिया। साथ ही, वे स्थानीय जमींदारों की निरंकुशता के भी खिलाफ थे। आज हम तेलंगाना में जो देख रहे हैं वह 1946 के अनुभव की पुनरावृत्ति है। हमारे सामने एक निरंकुशता है और पार्टी कार्यकर्ताओं की आड़ में उनकी मुखौटा सेना है और निश्चित रूप से कासिम रिज़वी (एमआईएम) की संतान निरंकुश मुख्यमंत्री के साथ है और इस तथ्य की व्याख्या कैसे करें कि अधिकांश रोहिंग्या राशन कार्ड सहित सभी लाभ उठा लेते हैं? हम आदिलाबाद जिले के दंगा प्रभावित भैंसा कस्बे में अपराधियों और पीड़ितों के प्रति इस सरकार के रवैये को कैसे समझें जो इस सरकार की तुष्टीकरण नीति का एक उदाहरण है।

दूसरी ओर तेलंगाना सबसे बड़े राज्यों में से एक है, जिसमें 80 प्रतिशत आबादी हाशिए के समूहों से आती है। यह स्वाभाविक है कि एक सरकार जो इन वर्गों पर अपनी जड़ें जमाने का दावा करती है, उनसे उनके सशक्तीकरण के लिए नीतियां शुरू करने की उम्मीद की जाती है। उनकी स्थितियों में सुधार के लिए किसी भी ठोस कार्यक्रम के अभाव में इन वर्गों को तेलंगाना राज्य में हाशिये पर धकेल दिया जाता है।

इसके अलावा जब केंद्र सरकार ने इस तथ्य की सराहना करते हुए कि गरीबी में न तो वर्ग होता है और न ही जाति, आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का नीतिगत निर्णय लिया। फिर भी तेलंगाना सरकार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण अधिसूचित करने में 2.5 साल से अधिक का समय लगा। अभी भी कार्यान्वयन असंतोषजनक और अधूरा है।

भाजपा एक ऐसा तेलंगाना चाहती थी जहां सभी लोग, विशेषकर युवा, रोजगार के अवसर पाकर और जीवन और आजीविका के निर्वाह में खुश और आनंद से रहें। हालांकि, पिछले आठ वर्षों के दौरान तेलंगाना ने जीवन और आजीविका का पूर्ण विनाश और तबाही ही देखी है।

किसानों को सरकार से पर्याप्त सहायता नहीं मिलती है। रयितु बंधु के नाम पर अन्य सभी सब्सिडी प्रावधान वापस ले लिए गए हैं। इतना ही नहीं वर्तमान निज़ाम का अत्यधिक असुरक्षित मुखौटा पहने एक मुख्यमंत्री ने किसानों के लिए केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को लागू नहीं किया है।
इस दयनीय शासन के रिकॉर्ड के कारण और तेलंगाना में वर्तमान स्थिति को एक शब्द में संक्षेपित किया जा सकता हैः -DY”NASTY’। वंशवादी दलों की यह विशेषता रही है कि यहां परिवार और परिवार ही मायने रखता है। यह अन्य सभी हितों—राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय समुदायों पर पारिवारिक हितों की प्राथमिकता है, जो पिछले आठ वर्षों में राज्य में अभूतपूर्व भ्रष्टाचार का एकमात्र कारण है।

मोदी सरकार का वादा— तेलंगाना के भाइयों और बहनों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहना

दूसरी ओर राज्य सरकार के कठोर रवैये के बावजूद केंद्र सरकार तेलंगाना के विकास के लिए अथक प्रयास कर रही है। सहकारी संघवाद की भावना से 14वें वित्त आयोग और 15वें वित्त आयोग ने 42 प्रतिशत और 41 प्रतिशत क्रमशः केंद्रीय से राज्य करों की सिफारिश की है। परिणामस्वरूप तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की उपार्जित राशि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2014 और 2022 के बीच नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा पेश किए गए पिछले 9 बजटों में लगभग रु. 1.30 लाख करोड़ तेलंगाना राज्य को हस्तांतरित किए गए हैं। परिवर्तन की मात्रा की तुलना के लिए अविभाजित राज्य में 2009 और 2014 के बीच तेलंगाना क्षेत्र का हिस्सा लगभग 30,000 करोड़ रुपये था, जबकि राज्य को मोदी सरकार में 5 वर्षों में 2014 और 2019 के बीच 70,000 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। पंचायतों के विकास के लिए तेलंगाना में, 15वें वित्त आयोग द्वारा 4,320 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं और पहली किश्त के रूप में 820 करोड़ रुपये जारी किए गए।

रामागुंडम उर्वरक कारखाना, जो कांग्रेस शासन के दौरान बंद कर दिया गया था, 2015 में श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार द्वारा फिर से खोला गया। श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने इसके संयंत्र के लिए 6,400 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।

2014 में तेलंगाना राज्य के गठन के समय राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 2,511 किलोमीटर थी, यह बढ़कर 4,996 किलोमीटर हो गई। 2022 में 2,485 किलोमीटर की वृद्धि हुई जो 99 प्रतिशत की वृद्धि है। केंद्र 8,000 करोड़ रुपये की लागत से बाहरी रिंग रोड के बाहर 340 किलोमीटर लंबी क्षेत्रीय रिंग रोड का निर्माण करेगा। 2014-15 से ग्रामीण तेलंगाना में 2,700 किलोमीटर से अधिक सड़कों के निर्माण किया गया, इसने तेलंगाना की अर्थव्यवस्था को गति दी है। मुद्रा ऋणों ने हाशिए के वर्गों को सशक्त बनाया है।

तेलंगाना राज्य के गठन के बाद रेलवे के लिए केंद्र के आवंटन में काफी वृद्धि हुई है। रेलवे ने तेलंगाना में 31,281 करोड़ रुपये की विभिन्न परियोजनाओं को हाथ में लिया। तेलंगाना में 2014-21 के दौरान नई लाइन और दोहरीकरण परियोजनाओं के 321 किलोमीटर खंड औसतन 45.86 किलोमीटर प्रति वर्ष की दर से चालू किए गए हैं। यह 2009-14 के दौरान औसत कमीशनिंग से 164 प्रतिशत अधिक है, जहां प्रति वर्ष 17.4 किमी कमीशन किया गया था।

भाजपा एक ऐसा व्यवहार्य विकल्प रखने का प्रयास करेगी जो लोगों के सामने शहीदों की आकांक्षाओं को सही मायने में साकार करे और अंततः उन्हें इस वंशवादी और भ्रष्ट सरकार को उखाड़ फेंकने में मदद करे

कोविड-19 अवधि के दौरान केंद्र ने तेलंगाना में 1.92 करोड़ गरीब लोगों को स्वतंत्र रूप से खाद्यान्न वितरित किया। लगभग 9,000 करोड़ रुपये की लागत से तेलंगाना के निवासियों को मुफ्त वितरण के लिए लगभग 25 लाख मीट्रिक टन चावल आवंटित किया गया। प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के तहत केंद्र सरकार ने रेहड़ी-पटरी वालों को 433.34 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की।
स्वच्छ भारत अभियान के तहत 2014 से अब तक 31.43 लाख से अधिक घरों में अलग-अलग शौचालय उपलब्ध कराए गए हैं। 2014 तक तेलंगाना में मात्र 27.45 प्रतिशत शौचालय उपलब्ध थे, जबकि वर्तमान में तेलंगाना एक खुले में शौच मुक्त राज्य है जिसमें 100 प्रतिशत शौचालय हैं। इसी प्रकार प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत 11.11 लाख महिलाओं को रसोई गैस कनेक्शन आवंटित किए गए हैं। पिछले आठ वर्षों के दौरान तेलंगाना में बीसी, एससी और एसटी के विकास के लिए 1,613.64 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।

भाजपा — विकसित, समावेशी तेलंगाना के लिए सही और एकमात्र विकल्प

तेलंगाना में भाजपा का तेजी से विकास हो रहा है। अप्रैल 2019 के संसदीय चुनावों में भाजपा ने चार सीटें जीतीं, टीआरएस ने 9 सीटें जीतीं, कांग्रेस ने 3 सीटें जीतीं और एमआईएम ने अपनी सीट बरकरार रखी। भाजपा को 19.45 प्रतिशत वोट मिले, जो 2018 में मिले वोटों से काफी अधिक हैं। इसमें दो राय नहीं कि श्री नरेन्द्र मोदी के पक्ष में राष्ट्रव्यापी लहर सर्वोत्कृष्ट कारक थी।

अक्टूबर/नवंबर, 2020 में हुए दुब्बाका विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में मौजूदा मुख्यमंत्री के बेटे और उनके भतीजे के निर्वाचन क्षेत्रों के बीच बसे एक क्षेत्र में भाजपा ने शानदार जीत हासिल की।

इसके तुरंत बाद दिसंबर, 2020 में हुए ग्रेटर हैदराबाद के लिए नगर निगम चुनावों में भाजपा ने 150 सीटों वाले निगम में 48 सीटों के साथ राजनीतिज्ञों को चौंका दिया। इससे पहले बीजेपी के पास सिर्फ 4 सीटें थीं। वोटों के मामले में इसने लगभग टीआरएस के बराबर प्रदर्शन किया है। जीएचएमसी के प्रदर्शन के बाद भाजपा टीआरएस के एकमात्र विकल्प के रूप में उभरी, जिसने सभी अटकलों को दूर कर दिया कि टीआरएस का विकल्प कौन बनेगा? कांग्रेस या बी.जे.पी.।

इतना ही नहीं 2021 में हुजुराबाद उपचुनाव ने राज्य में टीआरएस के भाग्य को पलट कर रख दिया। इस चुनाव में सत्ताधारी दल ने इसे प्रतिष्ठा का विषय बनाया और एक अप्रिय राशि खर्च की। इसके बावजूद भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज की। आज हुजूराबाद की जीत ने टीआरएस को एक सबक सिखा दिया जो चुनाव जीतने के लिए धनबल का इस्तेमाल कर रही है। आज तेलंगाना की जनता चुनावी राजनीति में प्रवेश करने और लोगों की सेवा करने के इच्छुक वास्तविक उम्मीदवारों को प्रोत्साहित कर रही है।

स्वाभाविक तौर पर भाजपा के विकास ने मुख्यमंत्री की आंखों में आंसू ला दिए हैं और उन्होंने केंद्र सरकार के खिलाफ बिना किसी रोक-टोक की आलोचना शुरू कर दी है। इतना ही नहीं, पार्टी अध्यक्ष द्वारा शुरू की गई प्रजासंग्राम यात्रा की सफलता के दो चरण पूरे हो चुके हैं और इस यात्रा को लोगों का भारी समर्थन मिल रहा है। इसने मुख्यमंत्री को और परेशान कर दिया है जिससे वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। वास्तव में कई अवसरों पर मुख्यमंत्री की भाषा सस्ती, अभद्र और आपत्तिजनक होती है, जो एक मुख्यमंत्री के लिए अशोभनीय है।

मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों की हताशा इस तथ्य को स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि भाजपा राज्य में मजबूत हो रही है। यह स्पष्ट है कि केवल एक दोहरे इंजन वाली सरकार, जिसका दृढ़ विश्वास केवल राष्ट्र और राष्ट्र है, तेलंगाना के लोगों के उत्साही संघर्ष को अर्थ देने में सक्षम होगी।

इन परिस्थितियों में केवल भाजपा, अपने देश-प्रथम दृढ़ विश्वास और ध्यान के साथ और भ्रष्टाचार मुक्त और घोटाला मुक्त शासन के त्रुटिहीन ट्रैक रिकॉर्ड के साथ, तेलंगाना के लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को समझ सकती है। भाजपा एक ऐसा व्यवहार्य विकल्प रखने का प्रयास करेगी जो लोगों के सामने शहीदों की आकांक्षाओं को सही मायने में साकार करे और अंततः उन्हें इस वंशवादी और भ्रष्ट सरकार को उखाड़ फेंकने में मदद करे।