‘पीएम-कुसुम’ किसानों की आय दोगुनी व कार्बन उत्सर्जन कम करने में सहायक

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भारत ने नवंबर माह में गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 40% स्थापित बिजली क्षमता का लक्ष्य हासिल कर लिया। जलवायु परिवर्तन पर फ्रांस की राजधानी पेरिस में आयोजित 21वें सम्मेलन (सीओपी) में भारत ने 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से अपनी स्थापित बिजली क्षमता का 40% हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई थी। लेकिन मोदी सरकार की लक्ष्य के प्रति समर्पण ने 2030 के निर्धारित समय से सात साल पहले ही 40% लक्ष्य हासिल कर लिया। देश की स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता आज 150.05 गीगावॉट है, जबकि इसकी परमाणु ऊर्जा आधारित स्थापित बिजली क्षमता 6.78 गीगावॉट है। यह कुल गैर-जीवाश्म-आधारित स्थापित ऊर्जा क्षमता को 156.83 GW तक लाता है, जो कि 390.8 GW की कुल स्थापित बिजली क्षमता का 40.1% है। हाल ही में संपन्न COP26 में प्रधान मंत्री की घोषणा के अनुरूप सरकार वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 500 GW स्थापित बिजली क्षमता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। मोदी सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों से अक्षय ऊर्जा (आरई) क्षमता में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी में लगातार वृद्धि हो रही है।

पिछले 7 वर्षों में सौर क्षमता लगभग 2.6 GW से बढ़कर 42 GW से अधिक हो गई है। अक्षय ऊर्जा मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक 2014 से 2019 के बीच करीब 19 गुना ज्यादा सोलर पंप लगाए गए। 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो उसने देश में सोलर क्षमता बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू की। उन विभिन्न योजनाओं में पीएम-कुसुम योजना (प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा और उत्थान महाभियान) उस दिशा में महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है। इसे फरवरी 2019 में मोदी सरकार द्वारा शुरु की गयी और इसका उद्देश्य किसानों की आय को दोगुना करना है।

मुख्य विशेषता

‘पीएम-कुसुम योजना’ ग्रामीण क्षेत्रों में 2 मेगावाट तक की क्षमता वाले ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के लिए किसानों को सहायता प्रदान करती है; बिना ग्रिड से जुड़े स्टैंडअलोन ऑफ-ग्रिड सौर जल पंपों की स्थापना में सहायता और किसानों को ग्रिड आपूर्ति से स्वतंत्र बनाने के लिए मौजूदा ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों का सौरकरण और उन्हें अतिरिक्त सौर ऊर्जा उत्पादन को बिजली वितरण कंपनी को बेचने में सक्षम बनाता है जिससे उन्हें अतिरिक्त आय अर्जित हो। इस योजना के तहत सौर पंपों और पैनलों की स्थापना के लिए चयनित विक्रेताओं को पंप के चालू होने की तारीख से पांच साल की अवधि के लिए मरम्मत और रखरखाव प्रदान करना आवश्यक होता है। प्रत्येक परिचालन जिले में उनका एक अधिकृत सेवा केंद्र होगा और प्रत्येक परिचालन राज्य में स्थानीय भाषा में एक हेल्पलाइन होगी। यह किसानों को ऊर्जा और जल सुरक्षा प्रदान करेगा और उनकी आय में वृद्धि करेगा, कृषि क्षेत्र का डीजल पर निर्भरता कम करेगा और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने मे भी सहायक होग। पीएम-कुसुम योजना पारेषण (transmission) लाइनों की उच्च लागत और नुकसान से भी बचाएगी। किसानों को आमतौर पर रात में सिंचाई के लिए बिजली मिलती है। इससे न केवल उन्हें काफी असुविधा होती है, बल्कि पानी की बर्बादी भी होती है क्योंकि एक बार चालू होने के बाद पंप चालू रह जाते हैं। PM-KUSUM के तहत सिंचाई के लिए सौर पैनल प्रदान करने से किसानों को दिन के समय भी बिजली मिलेगी, जिससे उनके लिए सिंचाई आसान हो जाएगी और पानी और बिजली के अधिक उपयोग से भी बचा जा सकेगा।

संचालन तंत्र

इस तरह पीएम कुसुम योजना के संचालन के तीन मुख्य तंत्र हैं: 1. ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना, प्रत्येक की क्षमता 500 किलोवाट से 2 मेगावाट तक; 2. जो किसान ग्रिड से जुड़े नहीं हैं, उनकी सिंचाई की जरूरतों को पूरा करने के लिए अलग ऑफ-ग्रिड सौर जल पंपों की स्थापना और 3. किसानों को ग्रिड आपूर्ति से स्वतंत्र करने के लिए मौजूदा ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों का सौरकरण और उन्हें उत्पन्न अधिशेष सौर ऊर्जा DISCOM को बेचने की अनुमति देना जिससे अतिरिक्त आय अर्जित कर सके। इसके तहत बंजर/परती/दलदली/चारागाह या खेती योग्य भूमि पर व्यक्तिगत रुप से /सहकारिता/पंचायतों/किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) द्वारा 2MW तक क्षमता के छोटे सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए जा सकते हैं। यदि खेती वाले क्षेत्रों को सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के लिए चुना जाता है, तो सौर संयंत्रों से उत्पन्न बिजली को वितरण कंपनियों (DISCOMs) द्वारा संबंधित राज्य विद्युत नियामक आयोगों (SERCs) द्वारा निर्धारित टैरिफ पर खरीदा जाने का प्रावधान है।

निष्कर्ष

किसानों की आय दोगुनी करने और उनके रहन-सहन की स्थिति में सुधार के अलावा यह योजना पेट्रोलियम और कोयले के आयात पर बढ़ते खर्च को रोकने में भी बहुत मददगार होगी। पेट्रोलियम के आयात पर भारत का खर्च बहुत बड़ा है। यह लगातार बढ़ रहा है और बढ़ते व्यापार घाटे में परिणत होता है। वित्त मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक कोयले की घरेलू कमी के कारण इस साल नवंबर में कुल 23.3 अरब डॉलर के व्यापार घाटे में से 3.6 अरब डॉलर कोयले का आयात हुआ। कोयले का उपयोग ज्यादातर बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है। ‘पीएम-कुसुम’ जैसी योजनाओं से कोयला ऊर्जा पर हमारी निर्भरता कम होगी और हमारे व्यापार घाटे को भी कम करने में मदद मिलेगी, जबकि नवंबर में पेट्रोलियम उत्पाद आयात की लागत 14.6 अरब डॉलर थी। पीएम-कुसुम के तहत मौजूदा डीजल पंपों को सौर पंपों से बदलने से न केवल सिंचाई लागत और आयात पर भारत के खर्च में कमी आएगी, बल्कि प्रदूषण में भी कमी आएगी।

विकास आनंद