उत्तर प्रदेश में भाजपा की राजनीतिक यात्रा : एक नजर (भाग 1)

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भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा 08 जनवरी, 2022 को चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही उत्तर प्रदेश में 2022 के चुनावी युद्ध के लिए मंच तैयार हो रहा है। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से उत्तर प्रदेश समेत देश के सभी चुनावी राज्यों में राजनैितक गतिविधियां बढ़ गई है।

चुनाव आयोग की घोषणाओं के अनुसार, उत्तर प्रदेश की कुल 403 विधानसभा सीटों पर सात चरणों में मतदान होगा, जो 10 फरवरी से शुरू होकर 07 मार्च, 2022 तक होगा। यूपी चुनाव का दूसरा चरण 14 फरवरी को, तीसरा चरण 20 फरवरी को होगा। चौथे चरण में 23 फरवरी, पांचवें चरण में 27 फरवरी, छठे चरण में 03 मार्च और सातवें व अंतिम चरण का मतदान 07 मार्च को होगा। पहले चरण में 58 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होगा, दूसरे चरण में 55 सीटों पर मतदान होगा। 07 मार्च को तीसरे चरण में 59 सीटें, चौथे चरण में 60 सीटें, पांचवें चरण में 60 सीटें, छठे चरण में 57 सीटें और अंतिम और सातवें चरण में शेष 54 सीटों पर मतदान होगा। मतगणना और परिणाम की घोषणा 10 मार्च को होगी।

राज्य में मौजूदा राजनीतिक समीकरणों के अनुसार भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए अपने गठबंधन सहयोगियों— अपना दल और निषाद पार्टी के साथ चुनावी में जा रहा है, जबकि विपक्षी समाजवादी पार्टी ने शिवपाल यादव की पीएसपी (एल), महान दल, ओपी राजभर के नेतृत्व वाली एसबीएसपी, रालोद, और कृष्णा पटेल के अपना दल गुट के साथ गठबंधन किया। हालांकि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, बसपा, एआईएमआईएम और आप अकेले उतर रही हैं।

भाजपा ने राज्य विधानसभा के चुनावों की घोषणा का स्वागत किया है और पिछले पांच वर्षों में अपनी शानदार उपलब्धियों और बेहतरीन शासन को आधार बनाकर एक आक्रामक चुनाव अभियान शुरू किया है। कोविड-19 ने वैश्विक स्तर पर सभी को प्रभावित किया है, लेकिन इसके बावजूद भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, जिससे दशकों पुराने मिथक को विराम दिया जा सके।

पार्टी पहले और दूसरे चरण के चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची पहले ही जारी कर चुकी है। 105 उम्मीदवारों की पहली सूची में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल हैं। पार्टी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से, जबकि उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को प्रयागराज की सिराथू सीट से चुनाव लड़ाने का फैसला किया है।

2017 में भाजपा की ऐतिहासिक जीत

2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने राज्य में ऐतिहासिक जीत दर्ज करके अपने आलोचकों को चौंका दिया था, जिसमें पार्टी ने लगभग 40 प्रतिशत मत प्रतिशत के साथ 312 विधानसभा सीटों पर विजय प्राप्त की। 1980 में राज्य में चुनावी मैदान में उतरने के बाद से उत्तर प्रदेश में भाजपा का यह अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन था। 2017 में पार्टी ने न केवल सबसे अधिक सीटें जीतीं, बल्कि अपना सर्वश्रेष्ठ वोट शेयर और सर्वश्रेष्ठ स्ट्राइक रेट भी दर्ज किया। अगर हम पीछे मुड़कर देखें तो चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि पार्टी को 1980 में 11 सीटें और 10.76 प्रतिशत वोट मिले, 1985 में 16 सीटें और 9.83 प्रतिशत वोट मिले, 1989 में 57 सीटें और 11.61 प्रतिशत वोट मिले, 1991 में 221 सीटें और 31.45 प्रतिशत वोट मिले, 1993 में 177 सीटें और 33.3 प्रतिशत वोट, 1996 में 174 सीटें और 32.52 प्रतिशत वोट, 2002 में 88 सीटें और 20.09 प्रतिशत वोट, 2007 में 51 सीटें और 16.97 प्रतिशत वोट, 2012 में 47 सीटें और 15 प्रतिशत वोट, और 2017 के विधानसभा चुनावों में 312 सीटें और 39.67 प्रतिशत वोट मिले हैं।

उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनावों की िवशेषता भाजपा को प्राप्त सीटों की संख्या और 2012 से राज्य पर शासन करने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए सीटों के भारी नुकसान से होती है। इस चुनाव में भाजपा को 265 सीटें अिधक मिलीं और समाजवादी पार्टी को 188 सीटों का नुकसान हुआ। 2017 की चुनावी लड़ाई में बसपा और कांग्रेस करारी हार का सामना करना पड़ा। उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनावी प्रदर्शन ने 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को शीर्ष पहुंचा दिया। भाजपा ने राज्य में 62 लोकसभा सीटें जीतीं, जिससे पार्टी को 2019 के केंद्रीय चुनावों में बड़ी जीत हासिल हुई।

‘भारतीय जन संघ’ के दिन

उत्तर प्रदेश में भाजपा का भारतीय जनसंघ के रूप में अपने शुरुआती दिनों से लेकर राज्य में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनने तक का राजनीतिक सफर काफी रोचक रहा है।

भारतीय जनसंघ उत्तर प्रदेश में 1960 और 70 के दशक में प्रमुख विपक्षी दलों में से एक के रूप में उभरा। 1960 के दशक के दौरान भारतीय जनसंघ ने 16-17% वोट शेयर हासिल किया। इस दौरान जनसंघ देश भर में खासकर उत्तर प्रदेश में अपना समर्थन आधार तैयार करने में लगा हुआ था। पार्टी के लिए समर्थन बढ़ाने के लिए कई प्रमुख नेताओं ने उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर काम किया। 1962 के विधानसभा चुनाव में जनसंघ ने 431 सीटों वाली विधानसभा में 397 उम्मीदवार खड़े किए थे। अगले चुनाव में 377 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। दोनों मौकों पर पार्टी ने 49 सीटों पर जीत हासिल की।

संयुक्त विधायक दल (संविद) सरकार

1967 के चुनावों में कांग्रेस की संख्या 199 पर आ गयी, जो 426 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत से कम थी और भारतीय जनसंघ ने 98 सीटों पर जीत हासिल की। किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने 52,000 से अधिक मतों से छपरौली सीट जीती और कांग्रेस से अलग होकर भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) का गठन किया। उन्हें समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया और राज नारायण और जनसंघ के नानाजी देशमुख का समर्थन प्राप्त था। अप्रैल, 1967 में चौधरी चरण सिंह संयुक्त विधायक दल (संविद) के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, इस गठबंधन में सीपीआई (एम) से लेकर भारतीय जनसंघ, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, स्वतंत्र पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और 22 निर्दलीय शामिल थे। यह पहला मौका था जब उत्तर प्रदेश में भारतीय जनसंघ सत्ता के करीब पहुंचा था।

फरवरी, 1968 में चौधरी चरण सिंह ने इस्तीफा दे दिया और विधानसभा को भंग करने की सिफारिश की। एक साल के राष्ट्रपति शासन के बाद 1969 में चुनाव हुए। भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) ने 98 और जनसंघ ने 49 सीटें जीतीं। 425 सदस्यीय सदन में कांग्रेस ने 211 सीटें जीतीं, लेकिन पार्टी अभी भी बहुमत से 2 सीट पीछे थी। फिर भी कांग्रेस के चंद्रभानु गुप्ता ने मुख्यमंत्री तौर पर शपथ ली।

अनिश्चितता का दौर

1970 के आसपास एक वक्त ऐसा भी आया जब प्रदेश ने आठ वर्षों तक अनिश्चितता का दौर, जो वर्ष 1977 तक चला। इस दौरान उत्तर प्रदेश में चार बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा और चौधरी चरण सिंह सहित छ मुख्यमंत्रियों ने शासन किया। उल्लेखनीय है िक चौधरी चरण िसंह मात्र नौ महीने से भी कम समय तक अपने पद पर रहे।

जनता पार्टी का प्रयोग

आपातकाल के बाद 1977 में बीजेएस सहित कई विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए जनता पार्टी के बैनर तले विलय कर दिया। 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत के बाद मोरारजी देसाई की सरकार ने यूपी में एनडी तिवारी की सरकार सहित कई कांग्रेस राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया।

राष्ट्रपति शासन के बाद जून, 1977 में हुए उत्तर प्रदेश के चुनावों में जनसंघ ने जनता पार्टी के साथ हाथ मिलाया, जिसने 425 सीटों में से 352 सीटें जीतीं। जनसंघ ने जनता पार्टी के एक घटक के रूप में राम नरेश यादव की जून, 1977 से फरवरी, 1979 की सरकार को समर्थन दिया और इस दौरान बीजेएस नेता श्री कल्याण सिंह स्वास्थ्य मंत्री बने और श्री केशरी नाथ त्रिपाठी संस्थागत वित्त के प्रभारी थे।
फरवरी, 1980 में केंद्र में सत्ता में वापस आने के तुरंत बाद श्रीमती इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार को बर्खास्त कर दिया।

                                   राम प्रसाद त्रिपाठी

 क्रमश:…