प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक के.आर. मलकानी

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(19 नवम्बर, 1921 – 27 अक्टूबर, 2003)

श्रीकेवलराम रतनमल मलकानी (के.आर. मलकानी) एक प्रखर चितंक, राजनेता, आदर्शवादी, सैद्धांतिक पत्रकार व कर्मयोगी थे। वे भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष एवं पांडिचेरी के उपराज्यपाल रहे। वह एक समर्थ विचारक एवं लेखक भी थे। श्री मलकानी का जन्म 19 नवंबर, 1921 को हैदराबाद (सिन्ध) में हुआ था। युवाकाल में ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गए और 1941 से 2003 तक वे आजीवन संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक रहे। मलकानी जी भारतीय जनसंघ के जन्मकाल से ही उसके सिद्धान्तकार बन गए। उनके ही आग्रह पर पं. दीनदयाल उपाध्याय ने ऑर्गेनाइजर में साप्ताहिक ‘पालिटिकल डायरी’ लिखना प्रारंभ किया।

श्री मलकानी अन्तर्मुखी प्रवृत्ति के थे। अनावश्यक प्रदर्शन और मिलना-जुलना उनके स्वभाव में नहीं था, किन्तु उनका अन्तःकरण निर्मल और स्वभाव बहुत पारदर्शी था। लाग-लपेट की उन्हें आदत नहीं थी। जब भी वे बात करते खुलकर बात करते थे। वे निर्भीक व निःस्वार्थी थे। उनका जीवन बहुत सादा और कठिन था। 1971 में ‘मदरलैंड’ नामक दैनिक पत्र प्रारंभ हुआ। मदरलैंड के संपादन का जिम्मा व प्रबंधन मलकानी जी पर था। हालांकि प्रारम्भ में डी.आर. मनकेकर इसके संपादक थे, लेकिन वास्तविक संपादन का कार्य मलकानी जी ही देखते थे।

मदरलैंड की इंदिरा सरकार से सीधी टक्कर थी, इसलिए इंदिरा सरकार मलकानी जी को अपना एक बड़ा शत्रु मानती थी। आपातस्थिति की घोषणा के बाद मलकानी जी सबसे पहले पकड़े गए और पूरे उन्नीस महीने जेल काटकर आपातकाल समाप्त होने पर छोड़े गए। उनके जेल जीवन की कहानी उनकी कलम से ‘मिडनाइट नॉक’ नामक पुस्तक के रूप में सामने आयी। ‘मदरलैंड’ बंद होने के बाद मलकानी जी पुनः ऑर्गेनाइजर के संपादक पद पर वापस आये और 1982 में 62 वर्ष की आयु में आर्गेनाइजर के संपादक दायित्व से निवृत्त हुए। श्री मलकानी ने भाजपा के मुखपत्र ‘बीजेपी टुडे’ का भी संपादन किया।

विभाजन की वेदना उनके मन में गहरी थी। उनकी आंखों में अखण्ड भारत का सपना था। इसके लिए वे सदैव संघर्ष करते रहे। साथ ही, मलकानी जी दिल्ली में सिंधी समाज को संगठित करने के लिए मंच की स्थापना की और वे उसके पहले अध्यक्ष बने। मलकानी जी भारतीय जनता पार्टी की केन्द्रीय कार्यसमिति में आमंत्रित रहते थे। जब उन्हें उपाध्यक्ष पद सौंपा गया तब उन्होंने दीनदयाल शोध संस्थान के गैर-राजनीतिक चरित्र का आदर करते हुए उसके दायित्वों से मुक्ति ले ली और वे उपाध्यक्ष के नाते भाजपा के केन्द्रीय कार्यालय में पूरे समय बैठने लगे। 1994 से 2000 तक वे राज्य सभा के सदस्य रहे, पर उनकी कलम कभी रुकी नहीं।

श्री मलकानी आजन्म योद्धा रहे। संपादक का पत्र स्तंभ हो, या टेलीविजन पर बहस, हर जगह मलकानी जी का राष्ट्रवादी स्वर गूंजता रहा। वे राष्ट्रवाद के विरोधियों से लोहा लेते रहे। वे जुलाई, 2002 में पांडिचेरी के उपराज्यपाल पद पर नियुक्त हुए। राजभवन में भी वे सबको स्मरण करते रहे और लेखन में जुटे रहे। 27 अक्टूबर, 2003 को उन्होंने अंतिम सांस ली। श्री मलकानी का जीवन आदर्शवादी, सिद्धान्तनिष्ठ पत्रकारिता के लिए प्रकाशस्तंभ व प्रेरणास्रोत है।