जन आकांक्षाओं का प्रकटीकरण

| Published on:

भूपेन्द्र यादव

तरहवीं लोकसभा के चुनाव परिणामों से यह स्पष्ट हो गया कि एकबार फिर मतदाताओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और भाजपा सरकार की नीतियों में विश्वास व्यक्त करते हुए स्थायित्व, निरंतरता और विकास के लिए नयी सरकार को चुना है। प्रधानमंत्री मोदी के पिछले कार्यकाल में सरकार द्वारा देश में गरीब-कल्याण हेतु जनधन योजना, उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, मुद्रा योजना आदि अनेक योजनाएं लाई गईं, जिन्होंने जमीनी स्तर पर गरीबों के जीवन में गुणात्मक सुधार लाने का काम किया। साथ ही आर्थिक समावेशन, किसानों की आय में वृद्धि, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, अर्थव्यवस्था को मजबूती जैसे विकासपरक कार्य भी बीते पांच सालों में हुए हैं। सरकार के इन कार्यों का प्रतिफल ही अबकी 2014 से भी अधिक सीटों के रूप में जनता ने दिया है।

इस चुनाव पर यदि एक समग्र दृष्टि डाली जाए तो स्पष्ट होता है कि ये पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में विकास पथ पर अग्रसर भारत की यात्रा को सतत जारी रखने का चुनाव था। अपने पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार के कामकाज से देश के समक्ष यह स्पष्ट हो गया था कि इस सरकार के पास देश को आगे ले जाने की सोच और दृष्टि है। यही कारण है कि विपक्ष द्वारा रची गयी भ्रम की राजनीति के कुचक्र में मतदाता नहीं फंसे और नरेन्द्र मोदी की विकास की राजनीति को विशाल बहुमत प्रदान किया।
चुनाव से पूर्व राजनीतिक विश्लेषक महागठबंधन को लेकर बड़े-बड़े कयास लगा रहे थे। कहा जा रहा था कि ये भाजपा को बड़ी चुनौती देगा। यूपी में सपा-बसपा का एका था, तो वहीं बिहार में राजद, रालोसपा, कांग्रेस आदि दलों ने गठजोड़ बनाया था। लेकिन परिणामों ने कथित महागठबंधन को अस्वीकार कर दिया और अब चुनाव बीतते ही यूपी से बिहार तक के महागठबंधनों में जिस तरह बिखराव आया है, उससे भी यही साबित होता है कि ये सिद्धांतों का नहीं, केवल सत्ता के लिए हुए स्वार्थ आधारित गठजोड़ थे जो सत्ता की संभावना समाप्त होते ही टूटने लगे।

इस चुनाव की एक उल्लेखनीय बात यह भी रही कि इसमें मतदाताओं ने ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ को पूरी तरह से नकार दिया है। बिहार की बेगूसराय सीट का जनादेश इसका बड़ा उदाहरण है। साथ ही, बंगाल से लेकर त्रिपुरा तक कम्युनिस्ट दलों की हुई करारी हार भी इसी तथ्य को रेखांकित करता है कि देश के मतदाता किसी भी प्रकार के भारत-विरोधी विचार एवं विचारधारा के सख्त खिलाफ हैं।

वाम विचारों से ही पोषित तथाकथित उदारवादियों को भी इस चुनाव ने आईना दिखाने का काम किया है। ये उदारवादी ऐसे हैं जो सिखों का कत्लेआम कराने वाली कांग्रेस के ‘हुआ तो हुआ’ कहने पर कुछ नहीं बोलते; तीन तलाक जैसे महिलाओं के मुद्दे पर भी खामोश हो जाते हैं; राम मंदिर पर भी कोई स्पष्ट रुख नहीं रखते। ये लोग केवल अपनी सुविधा के मुद्दों पर समर्थन या विरोध में उतरते हैं। लेकिन जनता अब इन तथाकथित उदारवादियों के दोहरे चरित्र को भलीभांति समझ गई है, जिसका प्रकटीकरण इस चुनाव में हुआ है।

चुनाव से पूर्व मीडिया विश्लेषणों में जिस तरह से अमुक-अमुक वोट बैंक की बातें देखने को मिलती थीं, उससे ऐसा लगता था जैसे ये किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था के विवेकशील नागरिकों के वोट न होकर किसी कबीले के वोट हैं। जाति, धर्म, क्षेत्र आदि के आधार पर इन विश्लेषणों में वोटों का विभाजन बताया जाता था। लेकिन परिणामों ने उन सब विश्लेषणों को निराधार साबित कर दिया है। दूसरे शब्दों में कहें तो मतों का मैथमेटिक्स के आधार पर आकलन करने की कसौटी गलत सिद्ध है।

इस चुनाव में भाजपा पर यह आरोप खूब उछाला गया कि वो राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति जैसे मुद्दों को उठा रही है। ये किसी राज्य का चुनाव नहीं था, देश का चुनाव था। अब देश के चुनाव में यदि राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति जैसे मुद्दे नहीं उठेंगे तो कहां उठेंगे? ये मुद्दे उठाने आवश्यक थे, जिससे कि सरकार ने इन पर क्या कुछ किया है, उसका रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने आए। इसके उलट इन मुद्दों को लेकर विपक्ष की तरफ से जो सवाल खड़े किए गए, वे सर्वथा निर्मूल थे। यह बात चुनाव परिणामों से भी साबित हुई है।

नोटबंदी और जीएसटी के विषय में भ्रामक बातें कहकर विपक्ष ने सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश की। यह भ्रम फैलाने की भी कोशिश की गयी कि मोदी सरकार में अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में नहीं है, परन्तु विपक्ष के इन भ्रामक प्रचारों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। नोटबंदी और जीएसटी के लाभ भी लोगों ने समझे और विश्व की तमाम आर्थिक एजेंसियों की रेटिंग्स में भारत की सुधरती साख के जरिये देश के अर्थतंत्र की मजबूती को भी समझा।

सत्रहवीं लोकसभा का ये चुनाव राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को लेकर भी विशेष रहा। इस बार सर्वाधिक महिला जनप्रतिनिधि संसद में पहुंची हैं। 2014 के चुनाव में विजयी महिलाओं की संख्या 61 थी, जो कि इसबार बढ़कर रिकॉर्ड स्तर पर 78 हो गयी है। विशेष बात यह है कि इनमें से सर्वाधिक 40 महिला सांसद भाजपा की हैं। राजनीति में भाजपा हमेशा से महिलाओं की भागीदारी के पक्ष में रही है और इस दिशा में हर संभव प्रयास करती रही है। अबकी भाजपा से सर्वाधिक महिला सांसदों का लोकसभा में पहुंचना हमारी सफलता है।

भाजपा के लिए यह चुनाव इसलिए तो विशेष रहा ही कि उसने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है, लेकिन इसके साथ ही पार्टी की यह उपलब्धि भी रही कि जम्मू-कश्मीर सहित उत्तर-दक्षिण आदि देश के लगभग सभी क्षेत्रों में वो अपनी उपस्थिति दर्ज कराने व विचारधारा को पहुंचाने में कामयाब रही। अधिकांश जगहों पर पार्टी को जीत मिली, तो कुछेक जगहों पर अपेक्षित सफलता नहीं भी मिली, लेकिन बावजूद इसके पार्टी की नीति और विचारधारा के पूरे देश में प्रसार की दिशा में यह चुनाव महत्वपूर्ण रहा।

बेशक मतदाताओं ने भाजपा को अकेले 303 सीटों के रूप में विशाल बहुमत प्रदान किया है, लेकिन तब भी पार्टी ने एनडीए के दलों का साथ बनाए रखा और सरकार में भी उनकी यथोचित भागीदारी सुनिश्चित कर गठबंधन धर्म के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का परिचय दिया। ये दिखाता है कि भाजपा के लिए गठबंधन के मूल में सिद्धांत होते हैं, सत्ता और स्वार्थ नहीं।

परिणामों के पश्चात् संसद के सेन्ट्रल हॉल में दिए अपने वक्तव्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा और क्षेत्रीय आकांक्षा’ (National Ambition Regional Aspiration) का एक संकल्प नयी सरकार में व्यक्त किया है। यह संकल्प जहां एक तरफ भारत को विश्व-पटल पर महाशक्ति बनाकर सुप्रतिष्ठित करने की महत्वाकांक्षा का है, वहीं दूसरी तरफ क्षेत्रीय आकांक्षाओं को प्रोत्साहन देकर आगे बढ़ाने का उद्देश्य भी इसमें है। इस सूत्र के जरिये प्रधानमंत्री मोदी ने एक प्रकार से अपनी नयी सरकार की भावी रीति-नीति की एक रूपरेखा को ही रेखांकित करने का प्रयास किया है।

कुल मिलाकर यह चुनाव भारतीय लोकतंत्र को और मजबूती देने वाला चुनाव रहा है। वंशवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद जैसी चीजों को इस चुनाव में मतदाताओं ने नकारते हुए यह संदेश देने की कोशिश की है कि वे नए भारत के मतदाता हैं, जिनके लिए देश के विकास और सुरक्षा जैसे मुद्दे सर्वोपरि हैं। कह सकते हैं कि इस चुनाव के साथ ही जनतंत्र की एक नयी शुरुआत हुई है, जो भावी भारत के उत्कर्ष में महत्वपूर्ण सिद्ध होगी।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री एवं सांसद हैं)