संगठन शिल्पी कुशाभाऊ ठाकरे

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           (15 अगस्त 1922 – 28 दिसंबर 2003)

श्री कुशाभाऊ ठाकरे नैतिकता, आदर्श व सिद्धांतों के प्रकाश स्तंभ थे। वे निष्काम कर्मयोगी थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी को मजबूत बनाने में उनका योगदान अमूल्य है। वे जीवन-पर्यंत बेदाग रहे। श्री ठाकरे भाजपा के उन नेताओं में से थे जिन्होंने साइिकल चलाकर और चने खाकर पार्टी का काम किया। यही कारण है कि पार्टी में उनका व्यापक प्रभाव था।

श्री कुशाभाऊ ठाकरे का जन्म 15 अगस्त, 1922 को मध्य प्रदेश स्थित धार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री सुंदर राव श्रीपति राव ठाकरे और माता का नाम श्रीमती शांता भाई सुंदर राव ठाकरे था। इनकी शिक्षा धार और ग्वालियर में हुई थी। 1942 में संघ का प्रचारक बनने के बाद उन्होंने मध्यप्रदेश के कोने-कोने में निष्ठावान स्वयं सेवकों की सेना खड़ी की। वे कुशल संगठनकर्ता थे।

श्री कुशाभाऊ ठाकरे संघ में काम की शुरुआत उस समय की थी, जब इस संगठन का विस्तार व्यापक नहीं था। सच तो यह है कि किसी विचारधारा और लक्ष्य के प्रति उनके समान निष्ठा बिरले लोगों में देखी जाती है। उनके सार्वजनिक जीवन को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। वे प्रारंभ में केवल संघ के काम से जुड़े रहे। जनसंघ (अब भाजपा) की स्थापना के बाद उनका संबंध राजनैतिक गतिविधियों से हुआ। उन्होंने अपने-आपको संगठन तक सीमित रखा और संगठन को और मजबूत बनाने के लिए सदैव कार्य करते रहे।

कार्यकर्ताओं से उनका संबंध अटूट था। 19 अप्रैल, 1996 को भोपाल में उन्होंने कहा था कि हमारी ताकत हमारे कार्यकर्ता हैं। जनता ने हम पर चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। जनता को वर्तमान सरकार से बहुत आशा है। ऐसे समय में भाजपा कार्यकर्ताओं का दायित्व बढ़ गया है और हमें अपना दायित्व समझना होगा।

श्री कुशाभाऊ ठाकरे 1956 में मध्य प्रदेश सचिव (संगठन) बने। वे 1967 में भारतीय जन संघ के अखिल भारतीय सचिव बने। आपातकाल के दौरान वे 19 महीने जेल में रहे। 1980 में भाजपा के अखिल भारतीय सचिव बनाए गए। 1986 से 1991 तक वे अखिल भारतीय महासचिव व मध्य प्रदेश के प्रभारी रहे। 1998 में वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और इस पद वे 2000 तक रहे। उनका देहान्त 28 दिसंबर, 2003 को हो गया।