99 सिंचाई परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए एमओए पर हस्ताक्षर

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दीर्घकालिक सिंचाई कोष (एलटीआईएफ) के जरिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के अंतर्गत आने वाली प्राथमिकता प्राप्त 99 सिंचाई परियोजनाओं की केन्द्रीय हिस्सेदारी के वित्त पोषण के लिए 6 अगस्त को भारत सरकार (जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के जरिए) नाबार्ड और राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) के बीच एक संशोधित समझौता ज्ञापन (एमओए) पर हस्ताक्षर किए गए।

उपर्युक्त एमओए पर हस्ताक्षर हो जाने से समय-समय पर आवश्यकताओं के अनुसार पीएमकेएसवाई के अंतर्गत आने वाली प्राथमिकता प्राप्त परियोजनाओं के लिए केन्द्रीय सहायता जारी करना इस मंत्रालय के लिए संभव हो जाएगा। वर्ष 2015-16 के दौरान पीएमकेएसवाई का शुभारंभ केन्द्र सरकार द्वारा किया गया था, जिसका उद्देश्य देश में कृषि से जुड़े सभी खेतों तक सुरक्षात्मक सिंचाई के कुछ साधनों की पहुंच सुनिश्चित करना और ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ का उत्पादन करना है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में अपेक्षित समृद्धि आएगी।

पीएमकेएसवाई के तहत दिसंबर, 2019 तक मिशन मोड में पूरा करने के लिए 99 मौजूदा सिंचाई परियोजनाओं को चिन्हित किया गया है। इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 31,342 करोड़ रुपये की केन्द्रीय सहायता के साथ 77,595 करोड़ रुपये (परियोजनाओं से जुड़े कार्यों के लिए 48,546 करोड़ रुपये और कमांड क्षेत्र विकास से जुड़े कार्यों के लिए 29,049 करोड़ रुपये) की कुल धनराशि की आवश्यकता होने का अनुमान लगाया गया है।

इसके बाद एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन (एमओए) पर 6 सितंबर, 2016 को हस्ताक्षर किए गए। एलटीआईएफ के जरिए इन 99 सिंचाई परियोजनाओं के संबंध में केन्द्रीय सहायता के वित्त पोषण के लिए भारत सरकार (जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के जरिए) नाबार्ड और एनडब्ल्यूडीए के बीच इस एमओए पर हस्ताक्षर किए गए।

वर्ष 2016-17 और वर्ष 2017-18 के दौरान इन परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए एलटीआईएफ से 7863.60 करोड़ रुपये का कुल ऋण लिया गया है। अब वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने एलटीआईएफ के तहत इन 99 परियोजनाओं के वित्त पोषण से जुड़ी मौजूदा विशेष व्यवस्था में संशोधन किए हैं। ये संशोधन धनराशि के स्रोत, बांडों पर कूपन के भुगतान से जुड़ी देनदारी, ऋणों के पुनर्भुगतान के पैटर्न, ऋण पर ब्याज दर इत्यादि के संदर्भ में किए गए हैं, जिसके कारण पूर्व में हस्ताक्षरित एमओए में कुछ संशोधन करना आवश्यक हो गया है।