उच्चतम न्यायालय ने राफेल सौदे में मोदी सरकार को दी क्लीन चिट

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च्चतम न्यायालय ने राफेल लड़ाकू विमान सौदा मामले में नरेन्द्र मोदी सरकार को 14 नवंबर को क्लीन चिट देते हुए कहा कि पुनर्विचार याचिकाएं सुनवायी योग्य नहीं हैं। न्यायालय ने अपने 14 दिसंबर 2018 के फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग वाली याचिकाओं केा खारिज कर दिया। 14 दिसंबर के फैसले में कहा गया था कि 36 राफेल लड़ाकू विमानों को खरीदने में निर्णय निर्धारण की प्रक्रिया पर संदेह करने की कोई बात नहीं है।

उच्चतम न्यायालय ने इस दलील को खारिज कर दिया कि इस सौदे के संबंध में प्राथमिकी दर्ज करने की आवश्यकता है। प्रधान न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘हमने पाया कि पुनर्विचार याचिकाएं सुनवायी योग्य नहीं हैं।” पीठ में न्यायमूर्ति श्री एस के कौल और न्यायमूर्ति श्री के एम जोसेफ भी शामिल थे।

उच्चतम न्यायालय ने राहुल गांधी को लगाई फटकार

उच्चतम न्यायालय ने 14 नवंबर को कांग्रेस नेता श्री राहुल गांधी को राफेल सौदे के सिलसिले में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ ‘चौकीदार चोर है’ टिप्पणी गलत तरीके से शीर्ष अदालत के हवाले से कहने पर फटकार लगाई और उन्हें भविष्य में अधिक सावधानी बरतने को कहा।

प्रधान न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति श्री संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति श्री के एम जोसफ की पीठ ने कहा कि यह ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है कि राहुल गांधी ने इसकी पुष्टि नहीं की और इस बारे में बार-बार बयान दिये जैसे शीर्ष अदालत ने प्रधानमंत्री के खिलाफ आरोपों को कोई मंजूरी दे दी थी।

पीठ ने कहा कि यह ‘सच्चाई से कोसों दूर था’ और ‘राजनीतिक परिदृश्य’ में इस तरह का महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले व्यक्तियों को और अधिक सावधान रहना चाहिए। पीठ ने कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष श्री राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही के लिये भाजपा सांसद श्रीमती मीनाक्षी लेखी की याचिका पर अपने फैसले में यह टिप्पणियां की।

पीठ ने कहा कि गलती स्वीकार करके बिना शर्त क्षमा याचना करने की बजाए कांग्रेस नेता द्वारा 20 पेज के हलफनामे के साथ तमाम दस्तावेज संलग्न करने से मामला और उलझ गया था। न्यायमूर्ति श्री कौल, जिन्होंने प्रधान न्यायाधीश और अपनी ओर से फैसला लिखा, ने कहा, ‘‘हमें यह इंगित करना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले में पारित आदेश के बगैर पुष्टि या अवलोकन के ही अवमाननाकर्ता (गांधी) ने यह बयान देना उचित समझ लिया मानो न्यायालय ने प्रधानमंत्री के खिलाफ उनके आरोपों पर मुहर लगा दी है, जो सच्चाई से कोसों दूर था।”

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यह एक वाक्य या अचानक की गयी टिप्पणी नहीं थी, लेकिन अलग अलग तरीके से यही कहने के लिये बार-बार बयान दिये गये। इसमें संदेह नहीं कि अवमाननाकर्ता को और अधिक सावधान रहना चाहिए था।”

पीठ ने श्री राहुल गांधी के पांच मई के अतिरिक्त हलफनामे, जिसमें उन्होंने बिना शर्त क्षमा याचना की थी, का जिक्र करते हुये कहा कि उनके अधिवक्ता को बहस के दौरान यह सदबुद्धि आयी और इसके बाद एक हलफनामा दाखिल किया गया जिसमें कहा कि वह शीर्ष अदालत का सर्वोच्च सम्मान करते हैं और उनकी मंशा कभी न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने की नहीं थी।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि राजनीतिक परिदृश्य में इतने महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों को अधिक सावधान रहना चाहिए, क्योंकि इस पर विचार करना राजनीतिक व्यक्ति का काम है कि उनके प्रचार का तरीका क्या होना चाहिए।”

गौरतलब है कि श्री राहुल गांधी ने आठ मई को राफेल फैसले में ‘चौकीदार चोर है’ की टिप्पणी शीर्ष अदालत के हवाले से कहने के लिये पीठ से बिना शर्त माफी मांग ली थी। न्यायालय ने श्री राहुल गांधी को इस मामले में उनके पहले के हलफनामे के लिये 30 अप्रैल को फटकार लगायी थी, जिसमे उन्होंने कहा था कि उन्होंने सीधे-सीधे इन टिप्पणियों के लिये अपनी गलती नहीं मानी थी।