मोदी सरकार के सुशासन से बदल रही पूर्वोत्तर की तस्वीर

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       राजू बिष्ट

भारत में पूर्वोत्तर के आठों राज्यों का गौरवशाली इतिहास है। यहां की विविध जातीय परम्परा, सांस्कृतिक और भाषाई विरासत अतुलनीय है। पूर्वोत्तर के सभी राज्य, मानव पूंजी, प्राकृतिक संसाधनों, जैव विविधता और प्राकृतिक सुन्दरता से समृद्ध हैं। यही वजह है कि पूर्वोत्तर में अंतरराष्ट्रीय व्यापार और पर्यटन का केंद्र बनने की भरपूर संभावना है। प्रधानमंत्री मोदीजी खुद कई मौकों पर कह चुके हैं कि पूर्वोत्तर में देश के विकास का इंजन बनाने की क्षमता है। सुखद है कि अब मोदी सरकार में तेजी से पूर्वोत्तर की सूरत संवर रही है। पूर्वोत्तर के राज्य सतत विकास की ओर अग्रसर हैं।

हालांकि, स्वतंत्रता के बाद लगभग छह दशकों तक संभावनाओं से भरे इस क्षेत्र को दरकिनार कर दिया गया था। गड़बड़ी और अशांति का हवाला देते हुए कांग्रेस सरकारों ने इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण मुद्दों को समझने और सुलझाने का कभी प्रयास ही नहीं किया। दिल्ली में बैठी उदासीन सरकारों ने हमेशा उत्तर-पूर्व से संबंधित सभी मुद्दों को दबाने की कोशिश की, जिसके कारण पूर्वोत्तर के लोगों को व्यापक भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अशांति और पिछड़ेपन की स्थिति का सामना करना पड़ा। इससे हमारे युवाओं का सिस्टम से मोहभंग हो गया और कुछ ने अपनी आवाज सुनाने के लिए हथियार उठाने का सहारा भी लिया।

बेहतर हवाई संपर्क, स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं, पेयजल, आवास सुनिश्चित करने और युवाओं के लिए अधिक अवसर पैदा करने के लिए मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए वित्त वर्ष 2021-22 में कुल 68,020 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है

मैं, 80 और 90 के दशक के उथल-पुथल भरे दशकों के दौरान मणिपुर के एक छोटे से गांव चार हजारे में पला-बढ़ा, जब उग्रवाद, हिंसा और राजनीतिक अशांति अपने चरम पर थी। विकास एक दूर का सपना लग रहा था, लोगों के पास एक्सपोजर के रास्ते नहीं थे और शायद मैं भाग्यशाली था कि मुझे अपनी योग्यता साबित करने का मौका मिल गया। लेकिन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के वर्ष 2014 में देश की बागडोर संभालने के साथ ही यह सब बदल गया। वह भारत को बदलने की दृष्टि के साथ आए और उत्तर-पूर्वी भारत को फिर से भारत की विकास प्राथमिकताओं में सबसे आगे रखा गया।

नॉर्थ ईस्ट पर खास फोकस

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सत्ता में आने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदीजी ने सभी केंद्रीय मंत्रियों को हर पखवाड़े एक पूर्वोत्तर राज्यों का दौरा करने का निर्देश दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पूर्वोत्तर क्षेत्र हमारी राष्ट्रीय नीतियों और प्राथमिकताओं के साथ एकीकृत रूप से आगे बढ़ सके। प्रधानमंत्री मोदीजी, पिछले वर्षों में कई बार पूर्वोत्तर के राज्यों का दौरा कर चुके हैं। केंद्रीय मंत्रियों के लगातार दौरों ने नीति निर्माताओं और लोगों के सामने आने वाली समस्याओं के बीच समझ की खाई को पाटने में मदद की।
प्रधानमंत्री मोदीजी के प्रयासों ने शासन और नीतियों के मामले में दिल्ली को उत्तर-पूर्व के लोगों के बहुत करीब लाया है। आज पूर्वोत्तर के लोग शेष भारत से भावनात्मक रूप से जुड़ाव महसूस कर रहे हैं।

परिवर्तन का साक्षी

2014 के बाद से उत्तर पूर्व भारत में जमीनी स्तर पर बड़े पैमाने पर परिवर्तन हुआ है। प्रधानमंत्री मोदीजी की ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ को ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ में बदलने की पहल को सराहना मिल रही है। सड़क के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए सरकार बड़ा निवेश कर रही है। पूर्वोत्तर में विशेष त्वरित सड़क विकास कार्यक्रम (एसएआरडीपी-एनई) के तहत 80,007 करोड़ रुपये और भारतमाला परियोजना के तहत अतिरिक्त 30,000 करोड़ रुपये दिए गए। इसी तरह, भारतीय रेलवे इस क्षेत्र में रेलवे नेटवर्क में सुधार के लिए 74,485 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है और पूर्वोत्तर में हर राज्य की राजधानी को राष्ट्रीय रेलवे ग्रिड से जोड़ेगा।

असम में भारत के सबसे लंबे रेलमार्ग बोगीबील ब्रिज का निर्माण पूर्वोत्तर में कनेक्टिविटी में सुधार के लिए हमारी सरकार के फोकस और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। अटलजी द्वारा वर्ष 2002 में उद्घाटन किया गया, जबकि मोदी सरकार में वर्ष 2018 में यानी करीब डेढ़ दशक से अधिक समय बाद इस पुल को पूरा किया गया। कांग्रेस ने दो कार्यकाल तक सत्ता में रहने के बावजूद इस महत्वपूर्ण परियोजना को पूरा करने के लिए कोई कवायद नहीं की।

बेहतर हवाई संपर्क, स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं, पेयजल, आवास सुनिश्चित करने और युवाओं के लिए अधिक अवसर पैदा करने के लिए मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए वित्त वर्ष 2021-22 में कुल 68,020 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है। अकेले शिक्षा सुविधाओं में सुधार के लिए 8500 करोड़ रुपये से अधिक आवंटित किए गए हैं। उच्चतम स्तर पर सरकार के फोकस ने पूरे उत्तर-पूर्व में बुनियादी ढांचा सेवाओं को नाटकीय रूप से बदल दिया है। बेहतर बुनियादी ढांचा युवाओं में उद्यमिता को बढ़ावा देने और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करने में भी मदद कर रहा है। यह क्षेत्र, जिसे सुविधाओं की कमी के कारण पर्याप्त ‘ब्रेन ड्रेन’ का सामना करना पड़ा, आखिरकार अपने युवाओं को वही रहने और अर्थव्यवस्था में योगदान करने के लिए मनाने में सक्षम हुआ है। लेकिन यह सब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व के कारण ही संभव हो पाया है।

हमारी दार्जिलिंग पहाड़ियों, तराई और डुआर्स क्षेत्र में भी बहुत उत्साह और आशा है, जहां लोग मजबूती से प्रधानमंत्री मोदीजी के साथ खड़े हैं और लंबे समय से लंबित स्थायी राजनीतिक समाधान की प्रतीक्षा कर रहे हैं

निर्णायक शासन

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प्रधानमंत्री मोदीजी के नेतृत्व की एक पहचान ‘निर्णायक शासन’ है। फैसले त्वरित होते हैं। केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में शांति, समृद्धि और प्रगति लाने के लिए स्पष्टता के साथ निर्णायक रूप से काम किया है। 2015 में हमारी सरकार ने 80 दौर की बातचीत के बाद नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN-IM) के साथ ऐतिहासिक ‘नागा शांति समझौते’ पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते ने देश में लंबे समय से चल रहे राजनीतिक संघर्ष और सशस्त्र विद्रोह में से एक को समाप्त कर दिया। हाल ही में एनएससीएन (के) के निकी सुमी के नेतृत्व वाले खापलांग गुट के साथ एक और युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इसके अलावा, सरकार शांति की दिशा में काम कर रही है।

सभी नागा राष्ट्रवादी राजनीतिक समूहों (एनएनपीजी) के साथ बातचीत की पहल हुई। नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी), ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) और अन्य हितधारकों के गुटों के साथ 2020 ‘बोडो शांति समझौता’ के कारण निचले असम क्षेत्र में शांति आई है। आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (आईडीपी) के रूप में रहने वाले ब्रू-रियांग लोगों के लंबे समय से लंबित मुद्दों को मोदी सरकार के निरंतर प्रयासों के कारण त्रिपुरा और मिजोरम दोनों में हल किया गया है।

हाल ही में ‘कार्बी-आंगलोंग शांति समझौते’ ने असम के कार्बी-आंगलोंग जिले में तीन दशक पुराने राजनीतिक संघर्ष को समाप्त कर दिया। प्रधानमंत्री मोदीजी के दूरदर्शी नेतृत्व में भारत सरकार एक शांतिपूर्ण जीवन शैली सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रही है। जहां सभी जाति, भाषा और संस्कृति के सभी लोग शांति और सद्भाव में एक साथ रह सकें और फल-फूल सकें।

आशावादी भविष्य

यह मोदीजी में लोगों की अटूट आस्था और विश्वास था, जिसने मणिपुर के एक सुदूर गांव के मुझ जैसे एक गोरखा युवा को पश्चिम बंगाल की प्रतिष्ठित दार्जिलिंग लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने का अवसर दिया। जैसाकि उत्तर-पूर्वी भारत से संबंधित अन्य विवादास्पद मुद्दों को हल किया गया है, हमारी दार्जिलिंग पहाड़ियों, तराई और डुआर्स क्षेत्र में भी बहुत उत्साह और आशा है, जहां लोग मजबूती से प्रधानमंत्री मोदीजी के साथ खड़े हैं और लंबे समय से लंबित स्थायी राजनीतिक समाधान की प्रतीक्षा कर रहे हैं। राजनीतिक मुद्दे हमारे क्षेत्र का सामना कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि दशकों के संघर्ष के बाद दार्जिलिंग क्षेत्र के लोग भी सम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत करने में सक्षम होंगे।

(लेखक दार्जिलिंग से लोकसभा सांसद
और भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)