प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात 2.0’ की छठी कड़ी में 24 नवंबर को कहा कि जब 9 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया, तो 130 करोड़ भारतीयों ने फिर से ये साबित कर दिया कि उनके लिए देश हित से बढ़कर कुछ नहीं है। देश में शांति, एकता और सदभावना के मूल्य सर्वोपरि हैं।
श्री मोदी ने कहा कि राम मंदिर पर जब फ़ैसला आया तो पूरे देश ने उसे दिल खोलकर गले लगाया। पूरी सहजता और शांति के साथ स्वीकार किया। आज ‘मन की बात’ के माध्यम से मैं देशवासियों को साधुवाद देता हूं, धन्यवाद देना चाहता हूं। उन्होंने जिस प्रकार के धैर्य, संयम और परिपक्वता का परिचय दिया है, मैं उसके लिए विशेष आभार प्रकट करना चाहता हूं। एक ओर, जहां लम्बे समय के बाद कानूनी लड़ाई समाप्त हुई है, वहीं दूसरी ओर न्यायपालिका के प्रति देश का सम्मान और बढ़ा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सही मायने में यह फैसला हमारी न्यायपालिका के लिए भी मील का पत्थर साबित हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद अब देश नई उम्मीदों और नई आकांशाओं के साथ नए रास्ते पर, नये इरादे लेकर चल पड़ा है। नया भारत इसी भावना को अपनाकर शांति, एकता और सदभावना के साथ आगे बढ़े- यही मेरी कामना है, हम सबकी कामना है।
उन्होंने कहा कि हमारी सभ्यता, संस्कृति और भाषाएं पूरे विश्व को ‘विविधता में एकता’ का सन्देश देती हैं। 130 करोड़ भारतीयों का ये वो देश है, जहां कहा जाता था कि ‘कोस-कोस पर पानी बदले और चार कोस पर वाणी।’ हमारी भारत भूमि पर सैकड़ों भाषाएं सदियों से पुष्पित पल्लवित होती रही हैं। हालांकि, हमें इस बात की भी चिंता होती है कि कहीं भाषाएं और बोलियां ख़त्म तो नहीं हो जाएगी! पिछले दिनों मुझे उत्तराखंड के धारचुला की कहानी पढ़ने को मिली। मुझे काफी संतोष मिला। इस कहानी से पता चलता है कि किस प्रकार लोग अपनी भाषाओं, उसे बढ़ावा देने के लिए आगे आ रहें हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि ख़ास बात यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र ने 2019 यानी इस वर्ष को ‘अंतरराष्ट्रीय स्वदेशी भाषाओं का वर्ष’ घोषित किया है। यानी उन भाषाओं को संरक्षित करने पर जोर दिया जा रहा है जो विलुप्त होने के कगार पर है। डेढ़-सौ साल पहले आधुनिक हिंदी के जनक भारतेंदु हरीशचंद्र जी ने भी कहा था:
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।”
अर्थात, मातृभाषा के ज्ञान के बिना उन्नति संभव नहीं है।
साथ ही, श्री मोदी ने यह भी कहा कि हम सभी देशवासियों को ये कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि 7 दिसम्बर को सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाया जाता है। यह वह दिन है जब हम अपने वीर सैनिकों को, उनके पराक्रम को, उनके बलिदान को याद तो करते ही हैं, साथ ही योगदान भी करते हैं। सिर्फ सम्मान का भाव इतने से बात चलती नहीं है। सहभाग भी जरुरी होता है और 7 दिसम्बर को हर नागरिक को आगे आना चाहिए। हर-एक के पास उस दिन सशस्त्र सेना का झंडा होना ही चाहिए और हर किसी का योगदान भी होना चाहिए। आइये, इस अवसर पर हम अपनी सशस्त्र सेना के अदम्य साहस, शौर्य और समर्पण भाव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें और वीर सैनिको का स्मरण करें।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने प्रकृति को, पर्यावरण को, जल को, जमीन को, जंगल को बहुत अहमियत दी। उन्होंने नदियों के महत्व को समझा और समाज को नदियों के प्रति सकारात्मक भाव कैसे पैदा हो, एक संस्कार कैसे बनें, नदी के साथ संस्कृति की धारा, नदी के साथ संस्कार की धारा, नदी के साथ समाज को जोड़ने का प्रयास ये निरंतर चलता रहा और मजेदार बात ये है कि समाज नदियों से भी जुड़ा और आपस में भी जुड़ा।