कार्यकर्ता ही हमारे दल का बल है : मुरलीधर राव

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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री श्री मुरलीधर राव अपने प्रखर सांगठनिक कुशलता के लिए जाने जाते हैं। उनके पास तमिलनाडु और कर्नाटक प्रदेश भाजपा प्रभारी का भी दायित्व है। इसके साथ-साथ वे भाजपा प्रशिक्षण समिति का कार्य भी देख रहे हैं। इन दिनों व्यापक स्तर पर प्रशिक्षण अभियान का काम चल रहा है। नई दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में श्री मुरलीधर राव से कमल संदेश के सहायक संपादक संजीव कुमार सिन्हा ने प्रशिक्षण अभियान, संगठनात्मक विषयों एवं समसामयिक मुद्दों पर बातचीत की। श्री राव का कहना है कि हमें प्रशिक्षण के माध्यम से कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करते हुए जन-जन तक पहुंचने का लक्ष्य प्राप्त करना है। प्रस्तुत है बातचीत के संपादित अंश –

भारतीय जनता पार्टी बड़े पैमाने पर कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण को लेकर अभियान चला रही है। इसके बारे में हमें बताएं?

भारतीय जनता पार्टी एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के नाते, विशेषकर 2014 से, व्यापक जन-समर्थन को व्यापक जन-संगठन में बदलने का काम प्रशिक्षण के माध्यम से कर रही है। सक्रिय कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना, अलग-अलग श्रेणियों के पदाधिकारियों को प्रशिक्षित करना, अलग-अलग जिम्मेवारियों के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना, इतने व्यापक पैमाने पर यह कार्य हमने किया है। कुल मिलाकर लगभग 10 लाख कार्यकर्ताओं को हमने प्रशिक्षित किया है, जो विश्व के इतिहास में एक रिकाॅर्ड है।

अब एक नयी परिस्थिति है कि 2019 में चुनाव है। कार्यकर्ता ही हमारे दल का बल है। इसलिए इन प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं को अब आने वाले चुनाव में जनता के साथ संवाद कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की दृष्टि से कार्य करना है। जन-समीकरण, जन-संवाद और कुल मिलाकर संगठन को बूथ स्तर पर मजबूत करना और वहां स्थानीय समस्याओं को इकट्ठा करना, ऐसे सब कामों के बारे में हमने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना शुरू किया है। इसी प्रकार जन-संवाद में मीडिया के अलावा नया मीडिया जो आया है, उस नए मीडिया के बारे में भी विशेष और विस्तृत प्रशिक्षण देने का काम हम कर रहे हैं।

दूसरी ओर, सरकार की उपलब्धियों के बारे में भी अलग-अलग वर्गों के पास उनसे संबंधित विषयों को पहुंचाना, इसके लिए हम विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम कर रहे हैं। साथ ही, पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता, जिन्हें चुनाव में लगना है, उनके लिए भी एक बहुत बड़े प्रशिक्षण की तैयारी हम कर रहे हैं।

देश में अनेक राजनीतिक पार्टियां हैं, लेकिन ये पार्टियां कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण को लेकर अभियान नहीं चलाती। भाजपा अपने कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण पर इतना जोर क्यों देती है?

देखिए, दूसरी पार्टी मूलतः संगठन और कार्यकर्ता को आधार नहीं मानती है। ऐसी स्थिति में वह एक वैकल्पिक आधार पर काम करती है। समाज में जो जाति और जाति-समूह उपलब्ध हैं, इनके बीच जो संवाद और संगठन हैं, उसके माध्यम से ये लाभ लेना चाहते हैं, ये शाॅटकर्ट करते हैं, तो ऐसे में इनका भले कुछ भला हो जाए लेकिन ये जातिवाद से ऊपर उठ नहीं पाते। ये पार्टियां कहने के लिए कहती हैं कि ये सबकी हैं, लेकिन व्यवहार में ये एक जाति-समूह की पार्टी होती हंै।

अब उसी प्रकार, देश भर में कांग्रेस की देखा-देखी कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक अधिकांश पार्टियां इस देश में परिवार की पार्टियां बन चुकी हैं। इन पार्टियों में कार्यकर्ता प्रशिक्षण, कार्यकर्ता विकास, संगठन सशक्तिकरण, संगठन अंतर्गत संवाद, संगठन में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं बनाए रखना, संगठन के नियमित समय पर चुनाव होना, ये सब बातें उनके लिए महŸत्वहीन और अप्रासांगिक हैं। इसलिए स्वाभाविक रूप से ऐसी पार्टियों के लिए नए कार्यकर्ता और कार्यकर्ता प्रशिक्षण तथा प्रशिक्षण के आधार पर कार्यकर्ता को कोई जिम्मेवारी देना, ये उनके लिए मिथ्या हैं।

आप कर्नाटक और तमिलनाडु प्रदेश भाजपा के प्रभारी हैं। तमिलनाडु कुछ ही ऐसे राज्यों में हैं जहां भाजपा की सरकार नहीं बनी है। ऐसे में इस राज्य में संगठन को मजबूत बनाने के लिए पार्टी क्या कर रही है?

गत पांच-सात वर्षों में तमिलनाडु में संगठन की शक्ति बहुत बढ़ गई है। हम लगातार प्रगति पर हैं। इस राज्य में पहले जयललिताजी और अब करुणानिधिजी के निधन हो जाने के कारण एक रिक्तता आई हुई है, वहीं नरेन्द्र मोदीजी के प्रति आकर्षण है। लोगों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को देखने का मन भी है। यहां जिस प्रकार की सरकारें रही हैं, इनसे लोग त्रस्त रहे हैं। विशेष रूप से भ्रष्टाचार के कारण। स्थानीय प्रशासन सब भ्रष्ट हो गया है। विकास बिल्कुल अलग-थलग हो गया है। ऐसे हालात में लोग परिवर्तन चाह रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी आने वाले दिनों में सशक्त रहेगी। पार्टी ने यह भी तय किया है कि राज्य में एक अच्छे गठबंधन की तैयारी भी करेंगे। एक ही बार में हम अपने दम पर लड़ेंगे, ऐसा नहीं है। गठबंधन के आधार पर भी पार्टी को आगे ले जाएंगे। गठबंधन में कौन-कौन होंगे ये हम अक्टूबर में तय करेंगे।

हाल ही में कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) और कांग्रेस की गठबंधन सरकार बनी। इस सरकार के काम-काज पर आपकी क्या राय है?

देखिए, 224 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा में 37 सदस्य वालों की सरकार है। नैतिक दृष्टि से भी और व्यावहारिक दृष्टि से भी यह सरकार चलने वाली नहीं है। अभी जो कुछ चल रहा है वह ब्लैकमेल, शोषण और लेन-देन, इन सबके आधार पर चल रहा है। राज्य में स्थिति ठीक नहीं है, इसलिए सिद्धांततः स्थिर सरकार चलाना संभव नहीं है।

कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) ने स्थानीय निकाय के चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ समझौता नहीं करने का फैसला करते हुए अकेले चुनाव लड़ना तय किया है। इसे आप किस रूप में देखते हैं?

कुल मिलाकर जनता दल (एस) राज्य में अपना जनाधार बढ़ाना चाहता है, क्योंकि यह सरकार में हैं तो इसका फायदा उठाकर वह खुद की शक्तियों का उपयोग करते हुए स्थानीय निकाय पर कब्जा करना चाहती है।

इन दिनों एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण) का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। हाल ही में इसका अंतिम ड्राफ्ट जारी हुआ, जिसमें असम के 40 लाख लोगों के नाम नहीं है। पूरी प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय की देख-रेख में की जा रही है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा विषय है, फिर भी विरोधी दल इसका विरोध कर रहे हैं। क्या कहेंगे आप?

देखिए, यह पूर्णतः संवैधानिक विषय है। 1951 से इसकी चर्चा हुई है। 1985 की इसकी एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। यहां घुसपैठ हुई है। बाकी सब चीजों में माइग्रेशन हुआ है तो यह सब कुछ देखने के बाद एक बात हमें समझनी चाहिए कि यह केवल असम का मामला नहीं है। मुद्दा नागरिकता नहीं है। असम की पहचान क्या है? असम की पहचान असमिया हैं या गैर-असमिया? न्यायिक दृष्टि से जिनका कोई असम से संबंध नहीं है वो लोग असम की पहचान बदल रहे हैं, तो इसको लेकर स्वाभाविक रूप से वहां के लोगों में नाराजगी होगी। बंगलादेश से अंधाधुंध लोग आ रहे हैं और इसके चलते कई जिलों में जन-अनुपात बदला है। इसके कारण वे अपने आपको बहुत असुरक्षित अनुभव करते हैं। उनकी पहचान खतरे में है, वे ऐसा महसूस करते हैं। इसको लेकर लंबा आंदोलन चला और 1985 में केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के माध्यम से ‘असम समझौता’ हुआ था।

आज कांग्रेस और ममता बनर्जी के बीच प्रतिस्पर्धा है कि किसको वोट मिलेगा बंगलादेशी मुसलमानों का। इसलिए बंगलादेशी घुसपैठियों का वोट ये अभी एक विषय है। यह अपने आप में न केवल गैर-संवैधानिक है, अपितु यह देश के खिलाफ भी है। इसलिए इस मुद्दे पर हमें लड़ना होगा। यदि कांग्रेस पार्टी इस प्रकार का व्यवहार करेगी, तो न केवल असम बल्कि पूरे देश की जनता इसको नकारेगी और मुझे लगता है कि ऐसा होकर रहेगा।