भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि

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23 मार्च, 1931 का दिन महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव का अमर बलिदान दिवस है। इन क्रांतिकारियों ने देश की आजादी के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया। मातृभूमि के लिए इनका अमर प्रेम और विदेशियों से संघर्ष का अदम्य साहस अतुलनीय है। ये अमर बलिदानी न केवल देश के प्रेरणा पुंज हैं, बल्कि नौजवानों के आदर्श पुरुष भी हैं। समस्त देश इनका कृतज्ञ है।

महान क्रांतिकारी भगत सिंह
(27 सितम्बर, 1907- 23 मार्च, 1931)

सरदार भगत सिंह एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्होंने केन्द्रीय असेम्बली की बैठक में बम फेंका और बम फेंककर वे भागे नहीं। क्रांतिकारी भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 को इनके साथियों राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फांसी दिया गया। भगत सिंह को जब फांसी दी गई, तब उनकी उम्र मात्र 24 वर्ष की थी। बहुत ही कम उम्र में भगत सिंह कई क्रान्तिकारी दलों के सदस्य बन गए। बाद में वे अपने दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों के प्रतिनिधि भी बने। उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में चन्द्रशेखर आजाद, भगवती चरण बोहरा, सुखदेव, राजगुरु इत्यादि थे।

जेल के दिनों में उनके द्वारा लिखे पत्रों व लेखों से उनके विचारों का पता लगता है। उनका विश्वास था कि उनकी शहादत भारतीय जनता को और प्रेरित करेगी। उन्होंने अंग्रेज सरकार को एक पत्र लिखा जिसमें कहा गया था कि उन्हें अंग्रेज़ सरकार के खि़लाफ़ भारतीयों के युद्ध का युद्धबंदी समझा जाए तथा फ़ांसी देने के बदले गोली से उड़ा दिया जाए।

फांसी पर जाते समय भगत सिंह को जरा भी भय नहीं था, वे गा रहे थे—
दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फ़त,
मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आएगी।

सुखदेव थापर
(15 मई, 1907 – 23 मार्च, 1931)

सुखदेव थापर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे। इन्हें भगत सिंह और राजगुरु के साथ फांसी दिया गया था। इन्होंने भगत सिंह, रामचंद्र एवं भगवती चरण बोहरा के साथ लाहौर में नौजवान भारत सभा का गठन किया था। सांडर्स हत्या कांड में इन्होंने भगत सिंह तथा राजगुरु का साथ दिया था तथा जेल में कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार किये जाने के विरोध में व्यापक हड़ताल में भाग लिया।

शिवराम हरि राजगुरु
(24 अगस्त, 1908 – 23 मार्च, 1931)

शिवराम हरि राजगुरु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे। इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ फांसी दिया गया। इन्होंने धर्मग्रंथों तथा वेदों का अध्ययन किया तथा सिद्धांत कौमुदी इन्हें कंठस्थ हो गई थी। ये शिवाजी तथा उनकी छापामार शैली के प्रशंसक थे। ये हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से जुड़े।