डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी
भारतीय जनसंघ के प्रथम वार्षिक अधिवेशन (कानपुर, 29 दिसंबर, 1952) में
तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी द्वारा दिए गए भाषण का प्रथम भाग
भारतीय जनसंघ के इस प्रथम वार्षिक अधिवेशन पर मैं आप सबका हार्दिक स्वागत करता हूं। आगामी वर्ष के लिए सर्वसम्मति से अपना प्रधान चुनकर आपने मेरे प्रति जो विश्वास प्रकट किया है उसके लिए मैं आपका आभारी हूं। एक अखिल भारतीय राजनीतिक दल के रूप में भारतीय जनसंघ का उदय केवल गतवर्ष के अक्टूबर मास की घटना है। उस समय देश के विभिन्न भागों से प्रतिनिधिगण दिल्ली में एकत्रित हुए थे और उन्होंने देश के समक्ष उपस्थित समस्याओं तथा राष्ट्र की एकता व उत्थान में आने वाली बाधाओं पर विचार किया गया था। अपने जन्म के दो मास के ही अन्दर इस दल ने वयस्क मताधिकार पर आधारित साधारण चुनावों में भाग लेना निश्चित किया। साधनों के अभाव तथा तैयारी की कमी को देखते हुए यह एक साहस का कार्य था। इसका परिणाम असंदिग्ध रूप से निराशाजनक रहा। कांग्रेस ही उस समय सर्वाधिक संगठित राजनीतिक दल था और राज्यसत्ता भी उसी के हाथ में थी। ऐसी दशा में प्रतियोगी दलों की अधिकता तथा स्वतंत्र उम्मीदवारों की बहुतायत के कारण उसे ही सफलता प्राप्त हुई, यद्यपि अनेक स्थानों पर बहुमत का निर्णय उसके विरुद्ध रहा। देश के अनेक स्थानों में सत्तारूढ़ दल पर चुनावों में, विशेषकर मतदान और परिणामों की घोषणा के बीच, अनीति और अनियमितता के भारी आक्षेप किए गए। इससे निर्वाचन नियम और विधियों में संशोधन की महती आवश्यकता प्रकट होती है। इतने पर भी हम जनसंघ का संदेश कितने ही प्रदेशों के कोने-कोने तक पहुंचाने में सफल हुए और सर्वसाधारण जनता का जो समर्थन हमें प्राप्त हुआ यह पर्याप्त उत्साहवर्धक था। यद्यपि अधिकांश स्थानों पर चुनाव का परिणाम हमारे प्रतिकूल गया, तो भी संसद और विधान सभाओं के लिए हमारे उम्मीदवारों को लगभग 70 लाख मत प्राप्त हुए। देश के विभिन्न भागों में यात्रा करते हुए मुझे सर्वसाधारण के मन पर यह अंकित करने का अवसर प्राप्त हुआ कि जनसंघ का जन्म केवल चुनाव लड़ने मात्र के लिए नहीं हुआ है, अपितु इसका उद्देश्य एक विशाल आधार पर अपना स्थायी संगठन करने का है जिससे यह भारत की भावी उन्नति में सक्रिय हाथ बंटा सके। चुनावों के परिणाम से उत्पन्न स्वाभाविक निराशा के वातावरण का परिमार्जन करने के लिए हमें विशेष उद्योग करने पड़े। यह प्रयत्न सफल हुए हैं यह इसी बात से स्पष्ट है कि हमारे प्रथम वार्षिक अधिवेशन में इतनी बड़ी संख्या में प्रतिनिधि एकत्र हैं। मुझे यह आशा ही नहीं अपितु विश्वास है कि हम अपनी शक्ति तथा साधनों को संगठित कर सकेंगे और हमारा यह दल शीघ्र ही जनता के हृदय में अपना स्थान बना लेगा।
राष्ट्रीय दृष्टिकोण
जनसंघ की विचारधारा तथा कार्यक्रम की रूपरेखा का निर्माण इसके जन्म के पश्चात् शीघ्र ही हो गया था। इनमें हमारे देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं अंतरराष्ट्रीय, सभी मूलभूत समस्याओं पर विचार किया गया था। हमारे विचारधारा तथा कार्यक्रम पर होने वाली आलोचना तथा समाज की बदलती हुई आवश्यकताओं पर विचार करते हुए समय-समय पर हमने इनमें परिवर्तन भी किया है। जाति, मत अथवा संप्रदाय, किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना हमारा यह दल सभी के लिए खुला है। स्वतंत्र भारत में किसी भी राजनीतिक दल की सदस्यता को जाति, संप्रदाय अथवा मतादि के आधार पर खड़ा करना एक घातक भूल होगी। बिना किसी भी भेदभाव के भारतीय नागरिक के अधिकारों की समानता भारत के संविधान का आधार है जो कि प्रत्येक जनतंत्रवादी देश के लिए आवश्यक है। पाकिस्तान द्वारा अपने संविधान को, जिसमें अल्पसंख्यकों के अधिकार भी सन्निहित हैं, इस्लामी कानून तथा साम्प्रदायिक भेदभाव के आधार पर बनाने का प्रस्ताव उसकी प्रतिगामी प्रवृत्तियों को नग्न रूप में प्रस्तुत करता है।
अनेक शताब्दियों से भारत विभिन्न मत-मतान्तरों को मानने वाले लोगों की मातृभूमि रहा है। उनके व्यक्तिगत आचारधर्म की, विशेषकर उपासना और आधारभूत सामाजिक कर्तव्यों संबंधी, सुरक्षा और सम्मान की आवश्यकता निर्विवाद है। नागरिक अधिकार तथा कर्तव्यों में सब समान हैं। स्वस्थ और प्रगतिशील सहयोग का भाव उत्पन्न करते हुए हम समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलें। यह पारस्परिक सहिष्णुता, सद्भाव और अवसर की सच्ची समानता से ही संभव होगा। हमारे दल का द्वार बिना किसी प्रकार के जाति अथवा मत संबंधी भेदभाव के उन सभी के लिए खुला है जो हमारे कार्यक्रम तथा विचारधारा में विश्वास रखते हैं। यदि कुछ वर्ग हमारे साथ आना नहीं चाहते तो भी हम सर्वसाधारण जनता की सद्भावना तथा सहयोग लेकर आगे बढ़ेंगे। कांग्रेस की सबसे बड़ी भूल यह भी कि स्वराज्य प्राप्ति के लिए उसने बनावटी हिन्दू-मुस्लिम एकता पर आवश्यकता से अधिक बल दिया। फलस्वरूप मुसलमानों का सहयोग प्राप्त करने के लिए कांग्रेस को राष्ट्र के हित में घातक समझौते पर समझौते स्वीकार करने पड़े। अन्त में जिन विघटनकारी वृत्तियों को कांग्रेस ने तुष्टीकरण के द्वारा जीतना चाहा था, उन्होंने कल्पनातीत भयंकर रूप धारण किया और उसका परिणाम देश का विभाजन हुआ। उपासना पद्धति को राष्ट्रीयता का आधार बनाने, या मतपरिवर्तित व्यक्तियों अथवा उनके वंशजों द्वारा मजहब के आधार पर देश का सफलतापूर्वक विभाजन कराने की घटना और कहीं नहीं सुनी। जनसंघ का मत है कि विभाजन से जनता को कोई लाभ नहीं हुआ है, न भारत में, न पाकिस्तान में। इससे देश प्रत्येक प्रकार से दुर्बल हुआ है। यही नहीं, जिस समस्या को हल करने के लिए विभाजन स्वीकार किया गया था वही और अधिक भयंकर हो गई है और एक शान्तिपूर्ण हल निकल नहीं पा रहा है। अतः हमारे सामने अखंड भारत कोई अवास्तविक स्वप्न अथवा नारा मात्र नहीं है। यह हमारी श्रद्धा का विषय है और वह लक्ष्य है जो जनता के सहयोग और समझ से प्राप्त होगा ही।
सुव्यवस्थित अर्थ-व्यवस्था
हमारा यह विश्वास है कि भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता की सर्वोच्च परम्परा के अनुरूप जनता के चारित्रिक तथा मानसिक विकास एवं भारत की पूर्ण आर्थिक उन्नति, इन दोनों के समन्वय पर ही देश की भावी उन्नति आधारित है। आर्थिक स्वातन्त्र्य के बिना जो राजनीतिक स्वातन्त्र्य हमने प्राप्त किया है वह निरर्थक होगा। यह एक अत्यन्त दु:खदायी स्थिति है कि भारत जैसा विशाल देश अपने प्रायः असीम प्राकृतिक साधनों तथा कच्चे माल के होते हुए दारिद्र्य, रोग, अविद्या तथा पतन के गर्त में पड़ा रहे। हमारे दल का यह विश्वास है कि देश को हिंसात्मक अशान्ति तथा विग्रह में बिना झोंके हुए भी हमारे लिए यह सम्भव है कि जनता के आर्थिक शोषण और मूक वेदनाओं का अन्त कर हम अपने जीवन को सुव्यवस्थित कर सकें। अतः भूमि और कृषि, छोटे-बड़े और बीच के उद्योगों का संगठित विकास, तथा उत्पादन वृद्धि और उचित वितरण, आदि विभिन्न क्षेत्रों के सम्बन्ध में जनसंघ का दृष्टिकोण यथार्थवादी और प्रगतिशील है। अवसर की सच्ची समानता तब तक सम्भव नहीं जब तक कि जनता के निर्धन तथा पिछड़े हुए वर्गों को उचित शैक्षणिक एवं आर्थिक सुविधायें प्राप्त न हों ताकि उनकी वे भारी कमियां दूर हो सकें जिनसे वे आज त्रस्त हैं।
आध्यात्मिक पुनर्जागरण
हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि केवल आर्थिक विकास न तो मनुष्य के अन्तःकरण को पूर्ण शान्ति दे सकता है और न उसके दृष्टि की पूर्ण प्राप्ति में सहायक होता है। भारत ने उन मनः प्रवृत्तियों को जन्म दिया है जो उन्नति और प्रगति का दावा करने वाले अनेक देशों से भिन्न उसकी अपनी विशेषता है। जीवन में सादगी, सेवा और त्याग का भाव, संतोष तथा निःस्वार्थ, निःस्पृहता का दृष्टिकोण, बन्धुत्व एवं पावित्र्य का भाव, शक्ति और विनम्रता, सहिष्णुता तथा ऐक्य का योग अनादि काल से सुसंस्कृत मानवीय आचार का आदर्श रहा है। हमारा देश अच्छाई तथा बुराई का एक विचित्र सम्मिश्रण है। मानव जीवन के गूढ़तम रहस्यों का उद्घाटन करने वाले सत्य को यहां अति सरल ढंग से उदार हृदय होकर प्रकट किया गया है। इन सत्यों को आचरण में प्रकट करने वाले इक्के-दुक्के उदाहरण अवश्य मिलते हैं, किन्तु इन महान् शिक्षाओं के साथ अधिकांश लोगों के आचरण की संगति कठिनाई अवश्य पहुंचाएगा। प्रश्न केवल यह है कि यदि हम इसी गति से चलते रहे और दशा को अधिकाधिक बिगड़ने दिया तो क्या पीड़ित जनता का धैर्य अटूट बना रहेगा और क्या वे सदा ही इसी प्रकार चुपचाप सहन करते रहेंगे? यदि सरकार द्वारा अपने कर्तव्यपालन में असफल होने पर जनक्षोभ उसके विरोध में एक बार भी भड़क उठा तो हमें बहुत अधिक धन-जन की हानि उठानी पड़ेगी, जो शायद अन्यथा बचाई जा सकती है।
इस योजना के इसी रूप में भी पूर्ण होने के सम्बन्ध में कुछ चेतावनी के शब्द कह देना आवश्यक है। इसको क्रियान्वित करने के लिए बनाई गयी व्यवस्था पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। यह आवश्यक है कि इस उद्देश्य के लिए ऐसे ही लोगों का चुनाव हो जो पूर्ण योग्य हों और जिनमें हृदय की विशालता तथा सेवा का भाव हो। इन गुणों के कारण वे केवल वेतन प्राप्त कर्मचारी न होकर, योजनाबद्ध राष्ट्रीय विकास के नवीन युग को लाने वाले निमित्त होंगे। अतः उनका चुनाव पक्षपात, संरक्षकता अथवा दलगत भावनाओं के अनुसार कदापि नहीं होना चाहिए। किसी भी संगठित योजना की सफलता के लिए सार्वजनीन सहयोग का सच्चा वातावरण आवश्यक है। इतने गाने-बाजे से स्थापित किए गये ‘भारत सेवक समाज’ की प्रगति भी एक दल-निरपेक्ष संगठन के रूप में नहीं हो रही है। इसके अतिरिक्त आज के सत्ताधारियों द्वारा योजना का दुरुपयोग अपने दलीय स्वार्थों के लिए किए जाने की भी बहुत गुंजाइश तथा संभावना है। यदि ऐसा हुआ तो इससे न केवल नितान्त आवश्यक सार्वजनीन सहयोग तथा उत्साह पूर्णतः समाप्त हो जाएगा, वरन् इस योजना को चलाने की सारी व्यवस्था ही दूषित हो जाएगी और इस प्रकार इसकी सफलता के सभी अवसर नष्ट हो जायेंगे। योजना के अनुसार राज्य के द्वारा उठाये गये किसी भी निर्णय, कार्य के ऊपर आदि से अन्त तक कठोर देखरेख रखना आवश्यक होगा। राज्य के द्वारा उठाये गये कुछ कार्यों में अच्छी सफलता मिली है, उदाहरणार्थ सिन्दरी का खाद का कारखाना, चितरंजन लोकोमोटिव फैक्टरी, दामोदर घाटी कारपोरेशन आदि। इसका यह अर्थ कदापि नहीं होता कि सामान की बरबादी और अन्य अनियमितता तथा भूलें जो पहले हो चुकी हैं, फिर भविष्य में भी दोहराई जायें।
क्रमश: