एकात्म मानववाद: समाज के सर्वांगीण विकास की कुंजी

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स वर्ष ‘एकात्म मानववाद’ के 60 वर्ष पूरे हो रहे हैं, जिसे पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने 4 जून, 1964 को प्रस्तुत किया था। यह परिवर्तनकारी विचारधारा सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत ढांचा प्रदान करती है, जो व्यक्तिगत कल्याण और सामूहिक समृद्धि के बीच महत्वपूर्ण संतुलन बनाने पर ध्यान केंद्रित करती है। यह भारत के प्राचीन दर्शन, एक समग्र दृष्टिकोण का समर्थन करती है, जो शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा और परमात्मा का पोषण करती है, जबकि कई पश्चिमी विचारधाराएं भौतिक सफलता को प्राथमिकता देती हैं।

दीनदयाल जी ने इस सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए सामाजिक विकास की तुलना उचित पोषण से की, जो जीवन के सभी पहलुओं के आपसी संबंध को उजागर करती है। यह एक अंतर्दृष्टि है जिसे आधुनिक विज्ञान अब मान्यता देता है।

एकात्म मानववाद, जो एकता, सांस्कृतिक अखंडता और समग्र कल्याण जैसे मूल मूल्यों में दृढ़ता से निहित है, भारत को समावेशी और सतत विकास की ओर मार्गदर्शित करता है। यह विचारधारा व्यक्तियों और समुदायों की सुरक्षा और कल्याण को प्राथमिकता देती है, एक सांस्कृतिक रूप से विविध राष्ट्र में सामाजिक-आर्थिक विभाजन को पाटने की मार्गदर्शक शक्ति बनती है।

एकात्म मानववाद, जो एकता, सांस्कृतिक अखंडता और समग्र कल्याण जैसे मूल मूल्यों में दृढ़ता से निहित है, भारत को समावेशी और सतत विकास की ओर मार्गदर्शित करता है। यह विचारधारा व्यक्तियों और समुदायों की सुरक्षा और कल्याण को प्राथमिकता देती है, एक सांस्कृतिक रूप से विविध राष्ट्र में सामाजिक-आर्थिक विभाजन को पाटने की मार्गदर्शक शक्ति बनती है

दीनदयाल जी ने समाज को एक जीवित जीव के रूप में कल्पित किया, जो उपजाऊ मिट्टी में पनपने वाले वृक्ष के समान है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि समाज की वृद्धि और जीवन-शक्ति, भूमि और उसके लोगों के साथ के पोषण संबंध पर निर्भर करती है। यह संबंध मानव और उनके पर्यावरण के बीच सामंजस्य पर जोर देता है और यह सुझाव देता है कि सच्चा विकास केवल आर्थिक विकास से नहीं, बल्कि समाज के सभी स्तरों की भलाई से उत्पन्न होता है, जिसे प्रकृति, संस्कृति और समुदाय के संबंधों द्वारा बनाए रखा जाता है।

5 जून, 1964 को दीनदयाल जी ने ‘व्यक्ति और समाज’ शीर्षक से एक परिवर्तनकारी व्याख्यान दिया, जिसमें उन्होंने व्यक्ति और सामूहिकता के बीच के संबंध की गहरी समझ व्यक्त की। उन्होंने जोर देकर कहा कि व्यक्ति और समाज दोनों आवश्यक तत्वों से मिलकर बनते हैं— शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा। यह समग्र दृष्टिकोण मानव अस्तित्व के बहुआयामी स्वभाव को पहचानने और इसके व्यापक सामाजिक ढांचे के साथ संप्रेषित करने की महत्ता को उजागर करता है।

अपने समाज की खोज में दीनदयाल जी ने तर्क किया कि एक समृद्ध समुदाय अंतर संबंधित घटकों पर आधारित होता है, जिसमें लोग, सामूहिक इच्छा या संकल्प, शासन प्रणालियां और प्रचलित संस्कृति शामिल हैं। उन्होंने कहा कि ये तत्त्व एक साथ मिलकर एक जीवंत और स्थायी समाज बनाते हैं।

उनका दृष्टिकोण सैद्धांतिक ढांचों से परे था। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहां सबसे गरीब व्यक्तियों को दान के निष्क्रिय प्राप्तकर्ताओं के रूप में नहीं रखा गया। इसके बजाय, उन्होंने अन्त्योदय जैसे संरचित पहलों का समर्थन किया, जो आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सशक्त बनाते हैं। आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने और संसाधनों और अवसरों तक पहुंच प्रदान करके ये पहल हाशिए पर रहने वाले लोगों को समाज में सार्थक योगदान देने और गरीबी के चक्र को तोड़ने में सक्षम बनाती हैं।

दीनदयाल जी का दृष्टिकोण एक ऐसे समाज के निर्माण पर जोर देता है जो गरिमा, सशक्तीकरण और सतत विकास को महत्व देता है। एकात्म मानववाद की पहचान की गई प्रमुख समाजिक आवश्यकताओं में नवजात देखभाल, उचित आवास, स्वास्थ्य सुरक्षा, और आजीविका के लिए शिक्षा और कौशल विकास शामिल हैं।

दीनदयाल जी ने बल दिया कि समाज पर सदस्यों की देखभाल करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, जो एकात्म मानववाद के केंद्र में स्थित सामाजिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को दर्शाता है। ये सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं, जो भारत को समावेशी विकास की ओर मार्गदर्शित करता हैं और सभी नागरिकों की विविध आवश्यकताओं को संबोधित करता है।

दीनदयाल जी ने पूंजीवाद और साम्यवाद जैसी विचारधाराओं की भी जांच की, इन्हें संघर्ष से प्रभावित सीमित दृष्टिकोणों के उत्पाद के रूप में देखा। उन्होंने बल दिया कि विश्व स्तर पर भिन्न विचारधाराओं के बीच संघर्ष को भारत की एकीकृत सांस्कृतिक विरासत के संदर्भ में समझा जाना चाहिए, जो विविध दृष्टिकोणों के बीच समझ और एकता को बढ़ावा देती है।

आर्थिक दृष्टिकोण से दीनदयाल जी ने संसाधनों की प्रचुरता को पहचानने पर जोर दिया, न कि कमी पर और कहा कि वित्तीय प्रभाव को मानव संबंधों पर हावी नहीं होना चाहिए। उन्होंने एक आदर्श समाज में दंड के लिए मध्यम दृष्टिकोण का समर्थन किया, जो एकीकृत जीवन के लक्षण है, जो उनके दया और आपसी संबंध वाले समुदाय के दृष्टिकोण को दर्शाता है।

25 अप्रैल, 1965 को, एकात्म मानववाद दर्शन की ‘युगानुकूल अर्थ-रचना’ से प्रेरित होकर, उन्होंने एक आर्थिक ढांचा प्रस्तावित किया जो सतत और मानवीय संसाधन उपयोग को प्राथमिकता देता है। उन्होंने विभिन्न प्रकार के आर्थिक स्वामित्व कि पहचान की जैसे निजी उद्यम, सार्वजनिक कंपनियां, सहकारी समितियां, और छोटे व्यवसाय और इनके संभावित योगदानों को सामाजिक कल्याण में उजागर किया।
पूंजीवाद प्रबंधन और धन पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि साम्यवाद श्रम पर जोर देता है। दीनदयाल जी ने सफल उद्योगों के लिए आवश्यक ‘7 M’s’ का परिचय दिया— लोग (Men), सामग्री (Material), मोटरपॉवर (Motor Power), मशीन (Machine), विपणन (Marketing), धन (Money) और प्रबंधन (Management)। एकात्म मानववाद इन तत्त्वों को एकीकृत करता है ताकि सभी की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों, व्यक्तिगत और सामाजिक विकास को बढ़ावा मिले।

दीनदयाल जी ने एकात्म मानववाद के अंतर्गत छह आर्थिक सिद्धांतों का उल्लेख किया, जिन पर ध्यान केंद्रित किया गया है:

1. न्यूनतम आवश्यकताएं और आश्वासन: यह सुनिश्चित करना कि हर व्यक्ति की बुनियादी आवश्यकताएं पूरी हों।
2. न्यूनतम से परे समृद्धि: सामूहिक प्रयासों के माध्यम से व्यक्तिगत और राष्ट्रीय समृद्धि को बढ़ाना।
3. स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति और स्वयंसेवा: वरिष्ठ पेशेवरों को स्वैच्छिक रूप से सेवानिवृत्त होने और

पूंजीवाद प्रबंधन और धन पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि साम्यवाद श्रम पर जोर देता है। दीनदयाल जी ने सफल उद्योगों के लिए आवश्यक ‘7 M’s’ का परिचय दिया— लोग (Men), सामग्री (Material), मोटरपॉवर (Motor Power), मशीन (Machine), विपणन (Marketing), धन (Money) और प्रबंधन (Management)। एकात्म मानववाद इन तत्त्वों को एकीकृत करता है ताकि सभी की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों, व्यक्तिगत और सामाजिक विकास को बढ़ावा मिले

सामाजिक योगदान में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना।
4. उत्पादकों के लिए अनुकूल तकनीक: उत्पादकों के लिए व्यावहारिक अनुप्रयोगों के माध्यम से लाभकारी तकनीक को सुविधाजनक बनाना।
5. सांस्कृतिक संरक्षण: राज्य की सांस्कृतिक जीवन और मूल्यों को संरक्षित करना।
6. उद्यम स्वामित्व का समन्वय: सरकारी और सामाजिक सहयोग के माध्यम से विभिन्न प्रकार के उद्यम स्वामित्व को समन्वयित करना।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के दृष्टिकोण के अनुसार नरेन्द्र मोदी सरकार ने अंत्योदय के मार्ग को अपनाया है, जिसे ‘सब का साथ, सबका विकास’ के विचार में समाहित किया गया है। यह दृष्टिकोण समावेशी विकास की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्र के विकास यात्रा में कोई पीछे न रहे।

स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी पहलों का लक्ष्य केवल आर्थिक प्रगति पर ध्यान केंद्रित करना नहीं है, ये व्यक्तियों को सशक्त बनाते हैं; उनके कौशल को बढ़ाते हैं और उद्यमिता को बढ़ावा देते हैं। स्किल इंडिया कार्यबल को तेजी से बदलते नौकरी बाजार में सफल होने के लिए आवश्यक क्षमताओं से लैस करता है, नवाचार और आत्मनिर्भरता की संस्कृति को बढ़ावा देता है। वहीं, मेक इन इंडिया स्थानीय निर्माण को प्रोत्साहित करता है और वैश्विक व्यवसायों को निवेश करने के लिए आमंत्रित करता है, जिससे रोजगार पैदा होते हैं और देशभर में आर्थिक गतिविधि बढ़ती है।

ये पहलें 21वीं सदी में भारत की विशाल संभावनाओं एवं दृढ़ संकल्पना को दर्शाती हैं। कौशल विकास और उद्यमिता को प्राथमिकता देकर, सरकार एक उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रही है, जहां हर नागरिक राष्ट्र की प्रगति में योगदान दे सके और लाभान्वित हो सके।

जब भारत वैश्विक मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है, यह समग्र दृष्टिकोण न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है, बल्कि समाज के ताने-बाने को भी मजबूत करता है, एकता और साझा उद्देश्य की भावना को बढ़ावा देता है।

सरकार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर कई योजनाएं लॉन्च की हैं, जो हाशिए पर रहने वाले लोगों के उत्थान के लिए उनके दृष्टिकोण के साथ मेल खाती हैं। कार्यक्रम जैसे:

•पंडित दीनदयाल उपाध्याय उन्नत कृषि शिक्षा योजना (PDDUUKSY)
• दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (DDU-GKY)
• पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय कल्याण कोष (PDUNWFS)

ये पहलें विशेष रूप से युवा और महिलाओं को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए गांवों के विकास और गरीबों, किसानों और हाशिए पर रह रहे समुदायों के लाभ को बढ़ाने के लिए रणनीतिक रूप से डिजाइन की गई हैं। इन समूहों को प्राथमिकता देकर, सरकार एक अधिक समान समाज बनाने का लक्ष्य रखती है, जहां हर किसी को फलने-फूलने का अवसर मिले।

मुद्रा, जन-धन, उज्ज्वला, और स्वच्छ भारत अभियान जैसे कार्यक्रम देश भर में जीवन स्तर को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मुद्रा छोटे व्यवसायों के लिए वित्तीय सहायता तक पहुंच की सुविधा प्रदान करती है, उद्यमिता और आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है, विशेषकर महिलाओं के लिए। जन-धन योजना ने वित्तीय समावेशन में क्रांति लाई है, लाखों लोगों को बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच प्रदान की है और बचत को बढ़ावा दिया है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिरता में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।

उज्ज्वला ने परिवारों के लिए स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन की सुनिश्चितता प्रदान करके जीवन को बदल

मुद्रा, जन-धन, उज्जवला, और स्वच्छ भारत अभियान जैसे कार्यक्रम देश भर में जीवन स्तर को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मुद्रा छोटे व्यवसायों के लिए वित्तीय सहायता तक पहुंच की सुविधा प्रदान करती है, उद्यमिता और आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है, विशेषकर महिलाओं के लिए। जन-धन योजना ने वित्तीय समावेशन में क्रांति लाई है, लाखों लोगों को बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच प्रदान की है और बचत को बढ़ावा दिया है

दिया है, पारंपरिक खाना पकाने के तरीकों से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को कम किया है। इसी तरह, स्वच्छ भारत अभियान ने स्वच्छता और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में उल्लेखनीय प्रगति की है, जिससे साफ-सुथरे रहने के वातावरण और बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों की प्राप्ति हुई है।

2024 में इन पहलों ने भारत में जीवन-यापन की सुविधा को महत्वपूर्ण रूप से सुधार दिया है, जिससे दैनिक जीवन अधिक आरामदायक और सुरक्षित बन गया है। सस्ते आवास और आवश्यक चिकित्सा उपचार तक बेहतर पहुंच के साथ नागरिक स्वस्थ, अधिक उत्पादक जीवन जी सकते हैं। इन कार्यक्रमों का सामूहिक प्रभाव न केवल व्यक्तिगत भलाई को बढ़ावा देता है, बल्कि सामुदायिकत़ा की भावना को भी मजबूत करता है, जिससे सभी के लिए उज्ज्वल और समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है।

जैसे ही भारत, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के दृष्टिगत नेतृत्व में आगे बढ़ रहा है, नागरिकों को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करना सुनिश्चित करता है कि हर कोई राष्ट्र की विकास कथा में भाग ले सके। उनके निरंतर प्रयास एक बेहतर भारत बनाने के लिए उस विश्वास को मजबूत करते हैं जिससे सभी के लिए एक उज्ज्वल और समृद्ध जीवन संभव है। हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सशक्त करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने वाली पहलों के माध्यम से पीएम मोदी एक ऐसा भविष्य बनाने की नींव रख रहे हैं, जहां हर नागरिक फल-फूल सके।

जैसे-जैसे भारत व्यापक विकास की ओर बढ़ता है, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का एकात्म मानववाद का सिद्धांत समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय बना हुआ है। यह दृष्टिकोण केवल आर्थिक प्रगति से परे समाज के सभी क्षेत्रों को ऊंचा उठाने का लक्ष्य रखता है, साथ ही सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान करता है। अन्त्योदय यह सुनिश्चित करता है कि हाशिए पर रहने वाले समुदाय पीछे न रह जाएं।

जैसे आजकल हम माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के तीसरे कार्यकाल के लगभग 100 दिन पूर्ण होने का जश्न मना रहे हैं, ऐसे में एकात्म मानववाद के सिद्धांत नीतियों को प्राथमिक रूप से मानव कल्याण हेतु समझना चाहिए। अन्त्योदय पर ध्यान केंद्रित करके हम उन लक्ष्यों के साथ मेल खाते हैं जो हाशिए पर रह रहे लोगों को उठाने के लिए भारत की आवश्यकताओं को दर्शाते हैं।

इन विचारों को नीति निर्माण में एकीकृत करना सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है और यह हमें एक अधिक समान समाज की ओर ले जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी जी की इन मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता न केवल दीनदयाल जी की विरासत को सम्मानित करती है, बल्कि समृद्ध और एकजुट भारत की मजबूत नींव रखती है, जहां हर व्यक्ति को फलने-फूलने का अवसर मिलता है।

 (लेखक भारत सरकार के पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री हैं)