भारतीय जनसंघ ही क्यों?

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       डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी

गतांक से…

अतः हमने एक मूलभूत प्रश्न उठाया है और यह घोषणा की है कि पाकिस्तान आज जो कुछ कर रहा है वह विभाजन की आधारभूत शर्त को पूर्णतः भंग करता है। इसलिए यह समझाना जाना चाहिए कि विभाजन का आधार नष्ट हो गया। गांधीजी ने भी कहा था कि यदि पाकिस्तान अपने अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान न कर सके तो उसका दायित्व भारत को संभालना चाहिए। हम तुरन्त ही युद्ध घोषणा की बात नहीं कर रहे हैं। हम यह मानते हैं कि हमारी ही सरकार की दुर्बल तथा अस्थिर नीति के कारण ही पाकिस्तान सरकार को बेरोक-टोक आगे बढ़ने का साहस मिला है। अतः हमारी मांग है कि भारत सरकार अपनी पाकिस्तान विषयक नीति में आमूल परिवर्तन करे और पाकिस्तान के विरुद्ध प्रभावी प्रतिबन्ध लगाए। विभाजन के शिकार लाखों व्यक्तियों के मान-सम्मान, जीवन तथा सम्पत्ति की हानि तथा स्त्रियों पर हुए अत्याचार के अतिरिक्त हमारी नपुंसकता और हृदयहीनता ने हमारे राष्ट्रीय सम्मान व प्रतिष्ठा को भारी धक्का पहुंचाया है। यह कोई प्रांत विशेष का प्रश्न नहीं बल्कि यह राष्ट्रीय प्रश्न है और दोनों राज्यों के बीच सुलझाया जाना चाहिए। इस सम्बन्ध में जनमत जाग्रत करना होगा जो समय रहते सही कदम उठाने के लिए सरकार को विवश करे। पाकिस्तान हमारे मुंह पर तमाचे पर तमाचे लगाता जा रहा है, वह फिर हिन्दुओं की सुरक्षा हो अथवा व्यापार और लेन-देन, सीमाओं की अभंगनियता या कश्मीर। दुर्भाग्य का विषय है कि पाकिस्तान की दृष्टि में हमारा मूल्य इतना गिर गया है कि वह मौके-बमौके हमारा अपमान करने का साहस करे और हमारी सरकार कोई भी प्रभावी कदम उठाने में असमर्थ, असहाय दर्शक बनी रहे। इसके साथ ही भारत में पंचमार्गियों की कार्यवाहियां भी बढ़ती जा रही हैं। यदि यही स्थिति बनी रही तो हमारी स्वतंत्रता क्षणभंगुर होगी और हम संकट के गहरे गर्त में गिर जाएंगे।

पुनर्वास

राष्ट्रीय महत्व का अन्य विषय पुनर्वास का है। हम लोगों ने मांग की है कि पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान से आए हुए निर्वासितों के संबंध में अभी तक जो कुछ हुआ है उसकी जांच करने के लिए एक स्वतंत्र आयोग की नियुक्ति की जाय। पश्चिमी पाकिस्तान के निर्वासितों द्वारा वहां छोड़ी हुई सम्पत्ति की क्षतिपूर्ति

दुर्भाग्य का विषय है कि पाकिस्तान की दृष्टि में हमारा मूल्य इतना गिर गया है कि वह मौके-बमौके हमारा अपमान करने का साहस करे और हमारी सरकार कोई भी प्रभावी कदम उठाने में असमर्थ, असहाय दर्शक बनी रहे। इसके साथ ही भारत में पंचमार्गियों की कार्यवाहियां भी बढ़ती जा रही हैं। यदि यही स्थिति बनी रही तो हमारी स्वतंत्रता क्षणभंगुर होगी और हम संकट के गहरे गर्त में गिर जाएंगे

का प्रश्न कुछ दिनों से सरकार के विचाराधीन है। इसके न्यायपूर्ण हल में बहुत विलम्ब हो गया है। इसी प्रकार निर्वासितों को दिए गए ऋण की वापसी का प्रश्न भी भारी कठिनाई उपस्थित कर रहा है। यह भी दुःख का विषय है कि जम्मू और कश्मीर से निर्वासित हजारों बन्धु भारत में रह रहे हों और उन्हें अपने ही प्रदेश में नहीं बसाया गया हो। लगभग पांच हजार हिन्दू तथा सिख महिलाएं पाकिस्तानी आक्रमणकारियों द्वारा अपहृत हैं, किन्तु उनके उद्धार का कोई भी प्रयत्न नहीं किया गया। ये प्रश्न किसी वर्ग विशेष के नहीं, अपितु इनके हल का दायित्व भारत सरकार और भारत की सम्पूर्ण जनता पर है।

भारत की स्वतंत्रता के लिए लाखों देशभक्त, स्त्री और पुरुषों का बलिदान हुआ तथा इसी हेतु वे अमानुषिक अत्याचार के शिकार बने। यदि हम उनके और उनकी सन्तान के साथ न्याय नहीं कर सकते तो हम महान पाप के भागी होंगे, जिसका फल हमें और हमारी सन्तति को भोगना पड़ेगा।

सुसंगठित राष्ट्रजीवन

आज विश्व एक संकट और तनाव की स्थिति से गुजर रहा है। स्वाभाविक ही हम भारत में एकाकी जीवन व्यतीत नहीं कर सकते। किन्तु हमारा विश्वास है कि अपना घर सुधारे बिना, तथा विभाजन से बुरी तरह झकझोरी हुई अपनी सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को ठीक किये बिना, हम अन्तरराष्ट्रीय राजनीति में कोई सहयोग नहीं दे सकते। सुदृढ़ राष्ट्रीयता के आधार पर ही अन्तरराष्ट्रीयता पनपती है। अतः हमें अपने आन्तरिक मोर्चे को सुदृढ़ और सुरक्षित बनाने के लिए प्रयत्न करना होगा। राष्ट्र का बल सेना या शस्त्रों में नहीं, बल्कि उसकी जनता में है। यदि जन संतुष्ट है, संयुक्त है, दृढ़ संकल्प हैं, अथवा राष्ट्रनिर्माण के लिए बलिदान तथा कष्ट सहन करने को तत्पर है, तो विश्व की कोई भी शक्ति ऐसे राष्ट्र को नष्ट नहीं कर सकती। लगभग एक हजार वर्ष के बाद हम स्वतंत्र हुए हैं। राजनीतिक दलों में कैसे भी मतभेद हों, लोगों में कैसी भी आशा और आशंकाएं हों, किन्तु हमें इतिहास का पाठ पढ़ाना होगा तथा फूट का शिकार न बनकर अपने विनाश को रोकना होगा। राष्ट्रीय चरित्र की परीक्षा राष्ट्र के संकटकाल में ही होती है। ऐसे समय में अपने सब आन्तरिक मामलों को भुलाकर संघटित राष्ट्र के नाते, जिनका एकमेव उद्देश्य राष्ट्रनिर्माण और मातृभूमि की अखण्डता की रक्षा है, खड़ा होना सीखना होगा।

विश्वशान्ति की आवश्यकता

यह अन्तरराष्ट्रीय राजनीति का दु:खद विषय है कि विश्व दो शक्तिशाली गुटों में बंट गया है और प्रत्येक यह सोचता है कि जो उसके साथ नहीं है वह उसके शत्रु के साथ होगा। हम समझ नहीं पाते कि हम एक विचारधाराओं के संघर्ष में से गुजर रहे हैं अथवा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शक्ति और सत्ता हथियाने के युग में से। ‘जीओ और जीने दो’ का सिद्धान्त भारत ने अनादिकाल से स्वीकार किया है। सब लोगों के शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए दुनिया काफी बड़ी है। प्रत्येक देश को अधिकार है कि वह अपनी जनता की इच्छा के अनुसार उसके प्रतिनिधियों द्वारा निर्णीत विचारधारा, अर्थनीति और समाजदर्शन का अपने ढंग से विकास करे। कठिनाई तो तब उपस्थित होती है, जब एक देश प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे देश के मामलों में हस्तक्षेप करता है और अपनी बद्धमूल धारणाओं के प्रचार का अथवा अपने प्रभाव के विस्तार का प्रयत्न करता है। हमारे देश के मामलों में हस्तक्षेप के सभी प्रयत्नों का हम विरोध करेंगे। यह संकट और भी गंभीर हो जाता है जबकि यह हस्तक्षेप खुले रूप से न होकर अपने ही देशवासियों की कार्यवाहियों के रूप में होता है। ये लोग एक प्रकार से विदेशियों के एजेंट ही हैं, जो सदैव उनके ही हितों की चिन्ता करते हैं। हमारा जनतंत्र तथा धर्म राज्य पर विश्वास है। किसी भी प्रकार का एकाधिपत्य अभारतीय हैं और इस देश में किसी भी परिस्थिति में सहन नहीं किया जा सकता। हमारी किसी भी देश के प्रति दुर्भावनाएं नहीं हैं और हम मानते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस जैसे भिन्न देशों को भी बहुत से क्षेत्रों में सफलता मिली है।

अपनी परम्पराओं के अनुरूप तथा भविष्य के विकास की भारी संभावनाओं के आधार पर भारत विश्व में शान्ति और सद्भाव का वातावरण निर्माण करने के लिए बहुत कुछ कर सकता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य की एक विकृत कल्पना तथा गंभीर आर्थिक स्थिति भारत की जनशक्ति और प्राकृतिक साधनों के विकास में बाधा बनी हुई है। जब तक भारत अपनी संस्कृति और सभ्यता की सुदृढ़ नींव पर खड़ा होकर बदले हुए युग की आवश्यकताओं के अनुरूप समता, नैतिकता और प्रगति की दीपशिखा लेकर आगे नहीं बढ़ता, तब तक उसका भविष्य प्रकाशमान नहीं होगा। सभी देशवासियों के सहयोग और सद्भाव के बल पर जनसंघ राष्ट्रनिर्माण के इस महान कार्य में सफल हो, यही मेरी कामना है।
।। वन्दे मातरम् ।।

   समाप्त