आचार्य विनोबा भावे

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   (11 सितंबर 1895 – 15 नवम्बर 1982)

           शत-शत नमन!

श्रीविनोबा भावे एक महान् समाज सुधारक, लेखक एवं ‘भूदान यज्ञ’ आन्दोलन के संस्थापक थे। वे विद्वान एवं विचारशील व्यक्ति थे। उन्होंने वेद, वेदांत, गीता, रामायण, क़ुरआन, बाइबिल आदि अनेक धार्मिक ग्रंथों का गंभीर अध्ययन-मनन किया।

विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को गाहोदे, गुजरात में हुआ था। विनोबा भावे का मूल नाम विनायक नरहरि भावे था। एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में जन्मे विनोबा ने ‘गांधी आश्रम’ में शामिल होने के लिए 1916 में हाई स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। गांधी जी के उपदेशों ने भावे को भारतीय ग्रामीण जीवन के सुधार के लिए एक तपस्वी के रूप में जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया।
विनायक की बुद्धि अत्यंत प्रखर थी। हाई स्कूल परीक्षा में गणित में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए। बड़ौदा में ग्रेजुएशन करने के दौरान ही विनायक का मन वैरागी बनने के लिए अति आतुर हो उठा। 1916 में मात्र 21 वर्ष की आयु में गृहत्याग कर दिया और काशी नगरी में वैदिक पंडितों के सान्निध्य में शास्त्रों के अध्ययन में जुट गए।

बहुआयामी व्यक्तित्व

अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के विनोबा जल्द ही हाफ़िज़-ए-क़ुरआन बन गए। मराठी, संस्कृत, हिंदी, गुजराती, बंगला, अंग्रेज़ी, फ्रेंच भाषाओं में तो वह पहले ही पारंगत हो चुके थे। विभिन्न भाषाओं के तकरीबन पचास हजार पद्य विनोबा को कंठस्थ थे। समस्त अर्जित ज्ञान को अपनी ज़िंदगी में लागू करने का उन्होंने अप्रतिम एवं अथक प्रयास किया।

विनोबा भावे एक महान् विचारक, लेखक और विद्वान थे। वे एक बहुभाषी व्यक्ति थे। वह एक उत्कृष्ट वक्ता और समाज सुधारक भी थे। विनोबा भावे ने गीता, क़ुरआन, बाइबल जैसे धर्म ग्रंथों के अनुवाद के साथ ही इन पर अपने विचार प्रस्तुत किए। वे भागवत गीता से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। वे कहते थे कि गीता उनके जीवन की हर एक सांस में है। उन्होंने गीता को मराठी भाषा में अनुवादित भी किया।

भूदान आन्दोलन

‘भूदान आंदोलन’ का विचार 1951 में जन्मा, जब वे आन्ध्र प्रदेश के गांवों में भ्रमण कर रहे थे। उन्होंने भूमिहीन लोगों के लिए ज़मीन मुहैया कराने एक ज़मींदार ने एक एकड़ ज़मीन देने का प्रस्ताव किया। इसके बाद वह गांव-गांव घूमकर भूमिहीन लोगों के लिए भूमि का दान करने की अपील करने लगे इस दान को गांधीजी के अहिंसा के सिद्धान्त से संबंधित कार्य बताया। आचार्य भावे ने लोगों को ‘ग्रामदान’ के लिए प्रोत्साहित किया, जिसमें ग्रामीण लोग अपनी भूमि को एक साथ मिलाकर सहकारी प्रणाली के अंतर्गत पुनर्गठित करते।

आपके भूदान आन्दोलन से प्रेरित होकर हरदोई जनपद के सर्वोदय आश्रम टडियांवा द्वारा उत्तर प्रदेश के 25 जनपदों में श्री रमेश भाई के नेतृत्व में ऊसर भूमि सुधार कार्यक्रम सफलतापूर्वक चलाया गया। भावे ने 1975 में पूरे वर्ष भर मौन व्रत रखा। 1979 के एक आमरण अनशन के परिणामस्वरूप सरकार ने समूचे भारत में गो-हत्या पर निषेध लगाने हेतु क़ानून पारित करने का आश्वासन दिया। विनोबा भावे का जीवन-दर्शन ‘भूदान यज्ञ’ (1953) नामक एक पुस्तक में संगृहीत एवं प्रकाशित किया गया है।

विनोबा को 1958 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1983 में मरणोपरांत सम्मानित किया।

वृद्धावस्था में विनोबा जी ने अन्न-जल त्याग दिया। आचार्य विनोबा ने कहा कि ‘मृत्यु का दिवस विषाद का दिवस नहीं अपितु उत्सव का दिवस’ है। अन्न जल त्यागने के कारण एक सप्ताह के अन्दर ही 15 नवम्बर 1982, वर्धा, महाराष्ट्र में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये।

आचार्य विनोबा भावे के विचार

जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती।

ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहां न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा।

स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम अपने आप कर लेता है।

विचारकों को जो चीज़ आज स्पष्ट दिखती है, दुनिया उस पर कल अमल करती है।

केवल अंग्रेज़ी सीखने में जितना श्रम करना पड़ता है उतने श्रम में भारत की सभी भाषाएं सीखी जा सकती हैं।

कलियुग में रहना है या सतयुग में यह तुम स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है।