युवा पीढ़ी के सामर्थ्य का संदेश देता है ‘वीर बाल दिवस’

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साहिबजादों की शहादत को सम्मान देने वाले पहले प्रधानमंत्री हुए नरेन्द्र मोदी जी

तरूण चुघ 

26 दिसंबर, 2022 को जब पहली बार भारत में वीर बाल दिवस के रूप में मनाया गया तो पूरे देश को पता चला कि देश और धर्म की रक्षा के लिए कुर्बानी देने के लिए गुरु गोविंद सिंह जी को कितना बड़ा त्याग करना पड़ा था। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्री गुरु गोबिंद सिंह के पुत्र साहिबजादाें बाबा जोरावर सिंह जी एवं बाबा फतेह सिंह जी की शहादत को चिह्नित करने के लिए ‘वीर बाल दिवस’ की घोषणा की, तो पूरे देश में प्रधानमंत्री मोदीजी के प्रति सम्मान का भाव जगा। ‘वीर बाल दिवस’ पर हम साहिबजादों और माता गुजरी जी और श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के साहस को भी याद करते हैं। साहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह गुरु गोबिंद सिंह जी के चार पुत्र थे।

इतिहास की यह घटना आज भी हमें मर्माहत करती है कि धर्म की रक्षा के लिए चारों साहिबजादों को बलिदान देना पड़ा, जो सर्वोच्च बलिदान के रूप में अंकित हो गई।

वीर बाल दिवस ‘साहिबजादों’ के सम्मान में मनाया जाता है। अंतिम सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के चार पुत्रों में यह तारीख सबसे छोटे साहिबजादे के बलिदान को चिह्नित करने के लिए चुनी गई थी। 26 दिसंबर को छह और नौ साल की उम्र में साहिबज़ादों ज़ोरावर सिंह और फ़तेह सिंह के बलिदान का दिन मनाया गया। प्रधानमंत्री मोदीजी की घोषणा के बाद पहलीबार ‘वीर बाल दिवस’ के सम्मान में ऐतिहासिक कार्यक्रम दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में किया गया। इस ऐतिहासिक तिथि के माध्यम से छोटे बच्चों को साहिबजादों की वीरता की कहानी के बारे में अवगत कराने के साथ ही देश के युवा और बालकों के साहस और सामर्थ्य पर गर्व करने का संदेश दिया गया।

पहला ‘वीर बाल दिवस’ जिस बलिदान को हम पीढ़ियों से याद करते आए हैं, उसे एकजुट होकर नमन करने की एक नई शुरुआत थी। शहीदी सप्ताह और ये ‘वीर बाल दिवस’ सिख परंपरा के लिए भावों से भरे होने के साथ ही अनंत प्रेरणाएं भी जुड़ी हुई हैं। ‘वीर बाल दिवस’ हमें प्रेरित करता है कि शौर्य के सामने आयु मायने नहीं रखती। ‘वीर बाल दिवस’ भारत की पहचान कराते हुए अपने अतीत को जानने और सामर्थ्यवान भविष्य का निर्माण करने की प्रेरणा देता है। भारत की युवा पीढ़ी का सामर्थ्य क्या है? भारत की युवा पीढ़ी ने कैसे अतीत में देश की रक्षा की है? अंधकार से हमारी युवा पीढ़ी ने भारत को कैसे बाहर निकाला है? ‘वीर बाल दिवस’ आने वाले समय के लिए यही उद्घोष करता है।

क्रूरता और खौफ के सामने अकेले होकर भी निडर खड़े गुरु के वीर साहिबजादे न तो किसी धमकी से डरे और न ही किसी के सामने झुके। जोरावर सिंह साहब और फतेह सिंह साहब को दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया। एक ओर नृशंसता ने अपनी सभी सीमाएं तोड़ दीं, तो दूसरी ओर धैर्य, शौर्य, पराक्रम के भी सभी प्रतिमान टूट गए। साहिबजादा अजीत सिंह और साहिबजादा जुझार सिंह ने भी बहादुरी की वो मिसाल कायम की, जो सदियों को प्रेरणा दे रही है। जिस देश की ऐसी विरासत हो, जिसका ऐसा इतिहास हो, उसमें स्वाभिमान और आत्मविश्वास का होना स्वाभाविक है।

आजादी के अमृतकाल में देश को ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’ का प्रधानमंत्री मोदी जी ने वीर बाल दिवस मनाने की शुरुआत की, जिसमें हमारे लिए एक बड़ा संदेश छिपा हुआ है। आज जब भारत के युवा देश को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए निकल पड़े हैं तो 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस की भूमिका और भी अहम हो गई है। सिख गुरु परंपरा केवल आस्था और आध्यात्म की परंपरा नहीं है। ये ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के विचार का भी प्रेरणाश्रोत है।

भारत की भावी पीढ़ी कैसी होगी? यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि वह प्रेरणा किससे ले रही है? साहिबजादों ने जितना त्याग बड़ा बलिदान किया, ऐसा उदाहरण दुनिया के किसी देश में नहीं मिलता है। प्रधानमंत्री मोदीजी के नेतृत्व में अब नया भारत दशकों पूर्व हुई पुरानी भूलों को सुधार रहा है।

किसी भी राष्ट्र की पहचान उसके सिद्धांतों, मूल्यों और आदर्शों से होती है। हमने इतिहास में देखा है जब किसी राष्ट्र के मूल्य बदल जाते हैं, तो कुछ ही समय में उसका भविष्य भी बदल जाता है और ये मूल्य सुरक्षित तब रहते हैं, जब वर्तमान पीढ़ी के सामने अपने अतीत के आदर्श स्पष्ट होते हैं। युवा पीढ़ी को आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रेरणा और आदर्श की आवश्यकता होती है। युवा पीढ़ी को सीखने और प्रेरणा लेने के लिए महान व्यक्तित्व वाले नायकों के इतिहास की जानकारी की जरूरत होती है।

आज़ादी के अमृत काल में देश स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास कर रहा है। हमारे स्वाधीनता सेनानियों के, वीरांगनाओं के, आदिवासी समाज के योगदान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए हम सब काम कर रहे हैं। ‘वीर बाल दिवस’ जैसी ऐतिहासिक तिथि भी इस दिशा में प्रभावी प्रकाश स्तम्भ की भूमिका निभाएगी।

हमें साथ मिलकर वीर बाल दिवस के संदेश को देश के कोने-कोने तक लेकर जाने की आवश्यकता है, ताकि देश के लोग अपने इस त्याग और बलिदान के इतिहास को जानें, लोग अपने पूर्वजों के साहस और शौर्य को जानें। इसी कड़ी में हमारे चारों साहिबजादों के जीवन का संदेश देश के हर बच्चे तक पहुंचें और वे उनसे प्रेरणा लेकर देश के लिए समर्पित नागरिक बनें। हमारे ये आदर्श, प्रेरणा और संदेश समर्थ और विकसित भारत के हमारे लक्ष्य को नई ऊर्जा देंगे। वीर बाल दिवस पर वीर साहिबजादों के चरणों में नमन!

                     (लेखक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री हैं)