कर्नाटक में भाजपा को मिला जनादेश

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कर्नाटक चुनाव का जनादेश स्पष्ट था। भाजपा न केवल सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, बल्कि पूर्ण बहुमत से केवल सात ही सीट दूर रही। जनादेश को यदि व्यापकता में देखा जाये तब यह भाजपा के पक्ष में रही, जिसे समाज के लगभग हर वर्ग का समर्थन प्राप्त हुआ। यह स्पष्ट था कि लोगों की इच्छा प्रदेश में भाजपा सरकार देखने की थी और इसी अनुरूप मतदान भी हुए थे। पर परिणामों के गणित में भाजपा केवल कुछ ही सीट दूर रह गई। 224 सीटों की विधानसभा में जिसमें 222 सीटों पर मतदान हुए थे, भाजपा को 104 सीटें प्राप्त हुईं। यह प्रदेश की जन–जन की इच्छा को दर्शाता है। इसलिये यह भाजपा का दायित्व भी था कि इस जनाकांक्षा के अनुसार वह सरकार बनाने का प्रयास करती, जो जनादेश में परिलक्षित हो रही थी। साथ ही, सबसे बड़े दल होने के कारण भाजपा ही एक स्थिर एवं विकासोन्मुखी सरकार जनता को दे सकती थी। इसलिये सरकार बनाने का दावा राज्यपाल को पेश कर भाजपा ने प्रदेश की जनता के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन किया।

कर्नाटक के जनादेश को राजनैतिक पंडित अपने–अपने ढंग से परिभाषित करेंगे, परन्तु इस पर शायद ही कोई दो राय होगी कि यह जनादेश कांग्रेस के विरुद्ध था। कांग्रेस की सीटों में तो भारी कमी आई ही, साथ ही इसके प्रमुख नेता एवं निवर्तमान मुख्यमंत्री अपनी दो सीटों, जहां से वे चुनाव लड़ रहे थे, में से एक पर बुरी तरह पराजित हुए और दूसरी पर किसी तरह से जीत पाये। इतना ही नहीं, इनके मंत्रिमंडल के अधिकतर सदस्यों को जनता ने हार का मुंह दिखा दिया। जनता ने साफतौर पर कांग्रेस को चुनावों में पूरी तरह से नकार दिया। पिछले पांच वर्षों में प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने भ्रष्टाचार एवं कुशासन में नये–नये रिकॉर्ड बनाये और साथ ही अपने राजनैतिक लाभ के लिये समाज में दरार पैदा करने की कोशिश की। सिद्धारमैय्या सरकार न केवल अकर्मण्य एवं भ्रष्ट थी, बल्कि प्रदेश के विकास के लिये उसके पास कोई दृष्टि भी नहीं थी। लोग चुनावों का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, ताकि कांग्रेस को इसके कुशासन की सजा दी जा सके और ऐसा हुआ भी। चुनावों में कांग्रेस को प्रदेश की जनता ने धूल चटा दी।

यह अत्यंत दुर्भाग्यजनक है कि जनादेश का विनम्रतापूर्वक सम्मान कर अपनी हार स्वीकारने की जगह कांग्रेस पुन: पिछले दरवाजे से सरकार में शामिल हो गई। भाजपा को सरकार बनाने से रोकने के लिये इसने जद(एस) को मुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव देकर सरकार बना ली। यद्यपि जद(एस) केवल 37 सीटें प्राप्त कर सकी और कांग्रेस ने इसके विरुद्ध व्यापक प्रचार किया, कांग्रेस नेतृत्व ने सत्ता से चिपके रहने के लिए एक सिद्धांतहीन एवं अवसरवादी गठबंधन का जन्म दिया। जहां मात्र 37 सीटों के साथ जद(एस) मुख्यमंत्री की कुर्सी के साथ सरकार का नेतृत्व कर रही है, कांग्रेस जिसकी चुनावों में बुरी तरह हार हुई; इसे समर्थन देकर मंत्रिमंडल का बड़ा हिस्सा अपने जेब में डालने में सफल हुई है। इस प्रकार के सत्ताकेंद्रित गठबंधन से कांग्रेस की सत्ता की भूख और सिद्धांतहीन राजनैतिक चरित्र एक बार पुन: जनता के समक्ष उजागर हुआ है।

कांग्रेस इस बात पर संतोष कर सकती है कि किसी तरह से इसने एक अवसरवादी गठबंधन बनाकर भाजपा को कर्नाटक में सरकार बनाने से फिलहाल रोक लिया है। परन्तु इसे समझना चाहिए कि लोकतंत्र में जनता ही सबसे बड़ी निर्णायक होती है। वे कांग्रेस की सिद्धांतहीन राजनीति और अवसरवादी चरित्र को देख रहे हैं। प्रदेश की जनता कांग्रेस को एक बार पुन: पाठ पढ़ायेगी और इस बार हार और भी कड़वी होगी। भाजपा कार्यकर्ताओं को जन–जन के पास पहुंचकर इस अवसरवादी–सिद्धांतहीन गठबंधन के पोल खोलने होंगे तथा परफॉरमेंस एवं विकास की राजनीति के प्रति व्यापक जनसमर्थन तैयार करना पड़ेगा। कांग्रेस–जद(एस) गठबंधन प्रदेश को उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाने में सक्षम नहीं है और दो हारे हुए दल मिलकर जनता के लिये विजय दिलाने वाली टीम नहीं बन सकते। यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे सब जानते हैं और इसलिए यह भाजपा कार्यकर्ताओं एवं नेतृत्व का दायित्व है कि प्रदेश को ऐसे अवसरवादी–सिद्धांतहीन गठबंधन से निजात दिलायें। यह समय की मांग है कि हर भाजपा कार्यकर्ता जन–जन तक पहुंचे और आने वाले संघर्षों के लिये जनता का आशीर्वाद प्राप्त करे।

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