अविश्वास प्रस्ताव की तुच्छता

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अरुण जेटली

अविश्वास प्रस्ताव एक गंभीर विषय है। यह कोई गंभीरता से न लेने वाला अवसर नहीं है। बहस में शामिल होने वाले मुख्य प्रतिभागियों में आमतौर पर वरिष्ठ नेतागण शामिल थे। ऐसे नेताओं से राजनीति का स्तर बढ़ाने की उम्मीद की जाती है। यदि कोई प्रतिभागी जो एक राष्ट्रीय पार्टी का अध्यक्ष है और प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद रखता है, तो उसका एक-एक शब्द मूल्यवान होना चाहिए तथा उनके तथ्यों में विश्वसनीयता होनी चाहिए। बहस को महत्वहीन नहीं बनाना चाहिए। वो, जिनकी इच्छा प्रधानमंत्री बनने की है, वो कभी भी अज्ञानता, झूठ और कलाबाजी का मिश्रण नहीं नहीं करते हैं।

अफसोस की बात है कि कांग्रेस अध्यक्ष ने एक महान अवसर खो दिया है। यदि यह 2019 चुनाव के लिए उनकी सर्वश्रेष्ठ बहस थी तो फिर भगवान ही उनकी पार्टी की सहायता करे। उनकी समझ न केवल बुनियादी मुद्दों तक ही सीमित है, बल्कि प्रोटोकॉल से संबंधित जानकारी के मामले में भी उनकी जानकारी सीमित है किसी को कभी भी सरकार के मुखिया (प्रधानमंत्री) के साथ हुई बातचीत को गलत नहीं ठहराना चाहिए। राहुल गांधी ने अपने भाषण में फ्रांस के राष्ट्रपति मैंक्रोन का जिक्र कर अपनी विश्वसनीयता कम की है। यहीं नहीं, उन्होंने विश्व भर में एक भारतीय राजनेता की छवि को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया है। उन्हें पता ही नहीं था कि यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन मंत्री ने गोपनीयता की संधि पर हस्ताक्षर किए थे। वह अब डॉ. मनमोहन सिंह को शर्मिंदा करना चाहते हैं, जो इस संधि के गवाह हैं। राहुल ने बार-बार ये दर्शाया है कि वे तथ्यों से अनजान हैं। लेकिन वित्तीय विवरणों के ब्योरे पर जोर देने के लिए, जो अप्रत्यक्ष रूप से विमान पर सामरिक उपकरणों के ब्योरे को शामिल करता है, राष्ट्रीय हित को चोट पहुंचाना है। लागत बताने का मतलब होता है कि विमान में मौजूद हथियारों की भी जानकारी देना।

क्या उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि यूपीए सरकार ने जीएसटी संशोधन का प्रस्ताव रखा था और पेट्रोलियम पदार्थों को इसमें शामिल नहीं किया था? यह एनडीए सरकार है जो जीएसटी परिषद की सहमति के बाद जीएसटी लेकर आई। जब वह एनपीए के रूप में खातों की घोषणा और लोन के छूट की तुलना करते हैं, तो तब ऐसा लगता है उन्हें सार्वजनिक मुद्दों के बारे में जानकारी नहीं है।’ ऐसा कोई मंत्री नहीं है, जो या तो संविधान बदलना चाहता है या संवैधानिक रूप से भारत के संविधान को बदलने का हकदार है। उन्होंने कहा कि आखिरी भारतीय राजनेता जो संविधान को बदलने की शक्ति चाहती थी, वे राहुल की दादी (इंदिरा गांधी) थी और वो भी असफल रहीं।

विभ्रम किसी व्यक्ति को क्षणिक सुख दे सकता है। इसलिए, शर्मनाक प्रदर्शन के बाद यह विभ्रम होना कि वह भविष्य का चुनाव जीत चुके हैं या यह विभ्रम होना कि वह मार्क एंटनी के अवतार हैं जिसकी मित्रों और शत्रुओं द्वारा समान रूप से प्रशंसा की जा रही है, उन्हें स्व-संतोष दे सकता है, लेकिन गंभीर पर्यवेक्षकों के लिए यह महज आत्म प्रशंसा से ज्यादा नहीं है।’’ यहां तक कि राजवंशों में भी कई उत्तराधिकारी आपको अपने पूर्ववर्तियों के गुणों की याद दिलाते देते हैं। कल ही मैंने पंडितजी के दो पुराने भाषणों को दोबारा पढ़ा – ‘ट्रेस्ट विद डेस्टिनी’ और ‘लाइट लाइव्स से बाहर चला गया’।
(लेखक भारत सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं)