समाचार पत्रों नें भाजपा की जीत को ऐतिहासिक बताया

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संपादकीय टिप्पणी

उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड सहित हाल ही में संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की भारी जीत को राष्ट्रीय समाचार–पत्रों ने अपनी संपादकीय टिप्पणी में ऐतिहािसक बताया और इस जीत के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह की रणनीति को उल्लेखनीय बताया। हम यहां समाचार–पत्रों के प्रमुख अंंश प्रकाशित कर रहे हैं –

नवभारत टाइम्स 

पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से कई चीजें साफ हुई हैं। बीजेपी की जीत दरअसल एक विजन की जीत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता के सामने भारत के विकास का एक ठोस विजन पेश किया है, जिसे लोगों ने एक बार फिर खुलकर समर्थन दिया है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी देश के विकास और जनता की खुशहाली के लिए अपना अलग नजरिया लेकर आए। वे जनता को सपने दिखाने और उसमें उम्मीद जगाने में सफल रहे। यही वजह है कि उन्हें जनता ने देश का नेतृत्व सौंप दिया। उसके बाद से अब तक के कार्यकाल में वे अपने उस नजरिए के अनुरूप ही कार्य करते रहे हैं। लोगों को उनकी मंशा पर संदेह नहीं है।

राष्ट्रीय सहारा

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम यह बताने को काफी हैं कि केसरिया रंग गहरा होता जा रहा है. उत्तर प्रदेश को छोड़कर बाकी चार राज्यों पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर की बात करें तो जनादेश कई बहसों और मसलों को विस्तार देता दिखता है। भाजपा की उत्तर प्रदेश में प्रचंड जीत का असर पड़ोसी उत्तराखंड में भले ठसक के साथ परिलक्षित होता हो। लेकिन बाकी सूबों में परिणाम इस तरफ भी इशारा करते हैं कि वहां के रग-रग में बस जाने के लिए भाजपा को काफी कुछ ठोस करना होगा। हां, उत्तर पूर्व में आहिस्ता-आहिस्ता पग बढ़ाने और पार्टी की पैठ को गहरे तक पहुंचाने में चुनावी रणनीतिकार जरूर सफल हुए हैं। इन इलाकों में पार्टी की ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ और ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ एक मायने में कारगर जरूर हुई है। यह इस दृष्टि से भी बेहद अहम है कि 2012 तक वहां भाजपा शून्य थी।

दैनिक जागरण

यदि पांच में से दो राज्यों में जीत के बाद भी केसरिया रंग और चटख दिख रहा तो इसका कारण यही है कि राजनीतिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण राज्य में भाजपा ने विपक्षी दलों को चारों खाने चित्त कर दिया। यह प्रचंड जीत है और इसका श्रेय जाता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को और इस लोकप्रियता पर आधारित अमित शाह की रणनीति को। इस जीत का केवल यही मतलब नहीं कि भाजपा के आगे उसके विरोधी दल फीके पड़ गए। इस जीत का एक बड़ा मतलब यह भी है कि मोदी के लिए अगला लोकसभा चुनाव भी आसान हो गया और राज्यसभा में विपक्ष की बाधा पार करना भी। अच्छा होगा कि कम से कम अब विपक्षी दल राज्यसभा में अपने बहुमत का इस्तेमाल करके यह प्रदर्शित करना छोड़ें कि देश की जनता ने 2014 में गलती कर दी थी और उसे ठीक करने का काम उसके पास है। विपक्ष जब जरूरी हो तो सरकार का विरोध करे, लेकिन अपनी नकारात्मकता छोड़े। नि:संदेह उसे हार स्वीकार करना भी आना चाहिए।

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रबल जीत के साथ मणिपुर में एक बड़े दल के रूप में भाजपा का उभार मोदी की लोकप्रियता पर मुहर लगाने के साथ ही यह भी बताता है कि बतौर प्रधानमंत्री उनके सामने जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने की चुनौती और बढ़ गई है। मोदी के प्रति जनता के भरोसे की बड़ी वजह विकास की चाह पूरी होने की उम्मीद है।

दैनिक  ट्रिब्युन 

इन चुनावों में मोहर मोदी की छवि पर लगी है क्योंकि उ.प्र. व उत्तराखंड में भाजपा ने मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं उतारा। इस मायने में इन परिणामों को मोदी की लोकप्रियता में धनात्मक वृद्धि के रूप में देखा जाना चाहिए। वैसे भी उ.प्र. में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी व कांग्रेस के गठबंधन और मायावती की सोशल इंजीनियरिंग को भेद पाना आसान नहीं था। अमित शाह की नई सोशल इंजीनियरिंग आखिरकार मायावती की रणनीति पर भारी पड़ी। जिसके बाबत भाजपा की दलील है कि यह जातिवादी राजनीति की पराजय है।

मोदी का राजनीतिक कद भी इन चुनाव परिणामों से मजबूत हुआ है। उनकी राष्ट्रीय नेता की छवि सशक्त हुई है, जिसे भाजपा आजादी के बाद के सबसे बड़े नेता के रूप में प्रचारित करने लगी है। एक बात तय है कि उ.प्र. का विशाल जनादेश पार्टी को बड़ी जिम्मेदारी का एहसास भी करा गया है। साथ ही वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को इन परिणामों का लाभ मिलेगा। उ.प्र. को दिल्ली की सत्ता का रास्ता कहते हैं क्योंकि इस बड़े राज्य से सबसे ज्यादा सांसद चुने जाते हैं, जो भाजपा के लिये राहत की बात हो सकती है। साथ ही कांग्रेस के लिये चिंता की बात है कि वह लगातार जारी पराभव को कैसे रोके।