‘स्वच्छ भारत’ मिशन ने कैसे बदली भारत की तस्वीर और बना वैश्विक प्रेरणा

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अरुण जेटली

 

स्वच्छ भारत मिशन के शुभारंभ के बाद ग्रामीण भारत का स्वच्छता कवरेज 39 प्रतिशत से बढ़कर आज 93% प्रतिशत हो गया है।

 

जॉन एफ केनेडी ने जब साल 1961 में यह घोषणा की थी कि इस दशक के अंत में अमेरिका चंद्रमा पर इंसान को भेजेगा, तो उसकी बात का शायद ही किसी ने यकीन किया होगा, लेकिन ऐसा हुआ और वह भी केवल आठ वर्षों के अंतराल में। वहीं, जब खुले में शौच को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में घोषणा कर कहा कि भारत साल 2019 तक खुले में शौच मुक्त देश हो जाएगा, जिसमें बड़ी समस्या उन 60 करोड़ लोगों के व्यवहार को बदलना था, जो खुले शौच जाने को मजबूर थे, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह संभव होगा। लेकिन चार साल बाद आज भारत खुले में शौच से छुटकारा पाने की दहलीज पर खड़ा है।

जब एक मजबूत नेता कभी-कभी एक बड़ा, कठिन, और असंभव प्रतीत होने वाला लक्ष्य रखता है, तो लोग और संस्थान उसकी पूर्ति के लिए अपने बेहतरीन प्रयास करते है। यह उन्हें उनकी सुविधावादी प्रवृत्ति से बाहर रखता है और उन्हें बड़ी सोच और बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। यह उन्हें अपनी कल्पना की सीमाओं को बढ़ाने में भी सहयोगी होता है और इस क्रम में हर व्यक्ति अपने वेतन ग्रेड से अधिक काम करता है, अपनी क्षमताओं से अधिक प्रयास करता है और उम्मीद से बढ़कर फल प्राप्त होता है।

इस लेख को पढ़ने वाले लगभग सभी पाठकों ने कभी भी खुले में शौच नहीं किया होगा। यह बात हमारी कल्पना से परे है कि साल 2014 तक हमारे देश की आधे से ज्यादा जनसंख्या खुले में शौच करने के दंश को झेल रही थी। स्वतंत्रता के 67 साल बाद भी इतनी बड़ी जनसंख्या की अवहेलना बेहद चिंताजनक स्थिति थी। लाखों लोगों की सोच में अमूमन शौचालय को कोई तर्जी नहीं दी जाती थी। महिलाओं को शौचालय की अवश्यकता थी, लेकिन वह अपनी बात को दृढ़ता से रखने में कामयाब नहीं हुई, और इसके बजाय अक्सर घरों में टेलीविजन सेट या मोटरसाइकिल खरीदने के लिए महिलाओं की इस जरूरत का त्याग किया जाता रहा। इस विशालकाय समस्या को वास्तव में कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। जब प्रधानमंत्री मोदी ने देश का नेतृत्व संभाला तो लाल किले के प्राचीर से इस अवहेलना के खिलाफ हुंकार भरी। वह अभी भी विभिन्न सार्वजनिक सभाओं में शौचालयों के बारे में खुलकर बात करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रयास के कारण शौचालय के महत्व और उसकी जरूरत पर चर्चा शुरू हुई, और इस ऐतिहासिक पहल के बाद खुले में शौच के प्रश्न पर न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा की जाने लगी।

वित्त मंत्री के रूप में, मेरे पास विभिन्न महत्वपूर्ण सरकारी कार्यक्रमों और क्षेत्रों के बीच संसाधन आवंटित करने का एक कठिन कार्य है। पिछले प्रशासन के विपरीत, हमारे लिए, देश के व्यापक विकास में स्वच्छता का महत्व काफी सहज था। इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को वास्तविकता बनाने के लिए, हमें इसे पर्याप्त संसाधनों प्रदान करने पड़े और यह कार्यक्रम संसाधनों के अभाव का शिकार नहीं हुआ।

दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, भारत अपने नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। सड़क, बिजली और आवास के लक्ष्य को पूरा करने के साथ ही स्वच्छता हमारे प्रयासों का एक अभिन्न अंग है। स्वच्छता की खराब व्यवस्था के कारण महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा को लेकर चुनौती बनी रहती है और बच्चों को भी विभिन्न बीमारियों से दो—चार होना पड़ता है, जो उनके शारीरिक और पूर्ण विकास में बाधा डालती है। इससे हमारे देश के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और भारत के सबसे बड़े आर्थिक प्रतिस्पर्धी लाभ यानी हमारे जनसांख्यिकीय विभाजन में बाधा आती है।

इसलिए भारत ने 20 अरब डॉलर के बजटीय प्रावधानों के साथ इस लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रतिद्धता को जाहिर किया है। सभी ग्रामीण इलाकों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों और छोटे और भूमिहीन किसानों को शौचालय निर्माण के लिए 12,000 रुपये की वित्तीय सहायता देने का लक्ष्य रखा गया है। इस कार्यक्रम के तहत 8.5 करोड़ ग्रामीण परिवारों को लाभ होगा। प्रधान मंत्री ने इस कार्यक्रम के तहत सफलतापूर्वक बुरे शब्द माने जाने वाले ‘शौचालय और उत्सर्जन’ को भारत के विकास एजेंडे के केंद्र में ला दिया है।

पिछले चार वर्षों में, 50 करोड़ से अधिक लोगों ने खुले में शौच की आदत को छोड़ दिया है। स्वच्छ भारत मिशन के शुभारंभ के बाद आज ग्रामीण भारत का स्वच्छता कवरेज 39% से बढ़कर 93% हो गया है। सामान्य रूप से स्वच्छता और विशेष रूप से शौचालय, अब चर्चा का एक प्रतिबंधित विषय नहीं है। असल में, मीडिया से लेकर आम आदमी तक, अब हर कोई इस कार्यक्रम के बारे में विचार—विमर्श कर रहा है। यह विषय भी हमारी लोकप्रिय संस्कृति का हिस्सा बन चुका है और यहां तक कि बॉलीवुड शौचालयों के महत्व के बारे में बात कर रहा है!

देश के कई हिस्सों में शौचालयों का नाम “इज़ात घर” रखा गया है। हमारी इस पहल का लाभ दिखाना भी शुरू हो गया है, जो स्वच्छता से जुड़े कार्यक्रमों में भारी निवेश के हमारे फैसले को सही साबित कर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि भारत 2019 में खुले में शौच से मुक्ति के लक्ष्य को प्राप्त कर अपने तीन लाख से अधिक नागरिकों की जिंदगी को बचाने में सफल होगा। यूनिसेफ के मुताबिक भारत में स्वच्छता कार्यक्रमों में पिछले वर्ष जो निवेश किया है उसका 400% प्रतिफल प्राप्त हुआ है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने इस सबसे साहसी और महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के लिए प्रधानमंत्री की सराहना की है, जो भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक मोर्चे पर एक मील का पत्थर साबित होगा।

भारत अब खुले में शौच के खिलाफ युद्ध का वैश्विक नेतृत्व कर रहा है। कई देश भारत के अनुभव से सीखना चाहते हैं और अपने देशों में इसी तरह के कार्यक्रमों को लागू करना चाहते हैं। इस साल 29 सितंबर और 2 अक्टूबर के बीच, भारत महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन (एमजीआईएससी) में दुनिया भर से आए करीब 50 से अधिक स्वच्छता प्रतिनिधियों की मेजबानी करेगा। स्वच्छ भारत मिशन की इस अविश्वसनीय यात्रा के माध्यम से भारत के अनुभवों को साझा करने के अलावा, इस सम्मेलन स्वच्छता के विषय पर अन्य देशों के अनुभवों को सीखने-समझने का एक अवसर होगा, जिसके लिए हम प्रतिबद्ध है।

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