भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं, बुद्ध दिया है

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शिव प्रकाश

ज जब विश्व वैश्वीकरण के एक ऐसे दौर में है, जब संपूर्ण विश्व में जीवन की समस्याओं का हल हिंसा के माध्यम से ढूंढ़ा जा रहा है। यह दुःखद है कि अनेक देश एवं समाज समूह अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए हिंसा का सहारा ले रहे हैं। इस समय विश्व में शस्त्रों की होड़ लगी है, वर्चस्व स्थापित करने की इस अंधी दौड़ से ऐसा लगता है कि क्या दुनिया नष्ट होने की ओर बढ़ रही है?

भारत प्राचीन काल से ही विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम् (सम्पूर्ण विश्व एक परिवार) के भाव से देखता आया है। भारत में प्राचीन ऋषि परंपरा से अर्वाचीन भारतीय महापुरुषों तक ने इस सत्य की साधना की है। महात्मा बुद्ध से प्रेरणा लेकर महात्मा गांधी, भारतरत्न बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सहित अनेक महापुरुषों ने विश्व शांति एवं विश्व कल्याण के मार्ग को प्रशस्त करने का कार्य किया है।

राजकुमार सिद्धार्थ ने गृह त्याग करने के उपरान्त घोर साधना कर विश्व के कल्याण का मार्ग खोज लिया। बुद्धत्व प्राप्त करने के कारण वह ‘तथागत बुद्ध’ हो गए। संसार दु:खमय है, दु:खों से निवारण के लिए मन की साधना करते हुए धर्ममय जीवन बिताकर दु:खों से मुक्ति संभव है। शील का पालन, सत्य आचरण , करुणा एवं मैत्री जैसे सद्गुणों के पालन की शिक्षा उन्होंने धर्मोंपदेश में अपने शिष्यों को दी। शोषण रहित, भेदभाव मुक्त समाज जीवन उनका आदर्श था।

बाबासाहेब अम्बेडकर ने भगवान बुद्ध को अपना पहला गुरु माना है। वह कहते हैं, “मेरा जीवन तीन गुरुओं और तीन उपास्य दैवतों से बना है। मेरे पहले और श्रेष्ठ गुरु बुद्ध हैं। मेरे दूसरे गुरु कबीर हैं और तीसरे गुरु ज्योतिबा फुले हैं…। मेरे तीन उपास्य दैवत भी हैं। मेरा पहला दैवत ‘विद्या’, दूसरा दैवत ‘स्वाभिमान’ और तीसरा दैवत ‘शील’ (नैतिकता) है।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी, जो कि महाबोधि सोसाइटी के अध्यक्ष भी थे, उन्होंने कहा था कि, “बुद्ध ने शांति का मार्ग दिखाया, यह मृतकों की नहीं, बल्कि जीवितों की शांति है। यह गहन बुद्धिमत्ता और जीवन की वास्तविकताओं की उचित समझ से उत्पन्न हुई शांति है। शांति केवल तभी स्थायी हो सकती है जब वह अन्याय को पराजित करती हुई, मानव के आध्यात्मिक और भौतिक प्रेरणाओं के बीच एक सच्चा सद्भाव स्थापित करती हो।”

20 अप्रैल, 2023 को ग्लोबल बुद्धिस्ट समिट को संबोधित करते हुए नई दिल्ली में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, “हम देखते हैं, आज अपने विचारों, अपनी आस्थाओं को दूसरों पर थोपने की सोच दुनिया के लिए बहुत बड़ा संकट बन रही है। लेकिन, भगवान् बुद्ध ने कहा था– ‘अत्तान मेव पठमन्, पति रूपे निवेसये’, यानी कि, पहले स्वयं सही आचरण करना चाहिए, फिर दूसरे को उपदेश देना चाहिए। बुद्ध सिर्फ इतने पर ही नहीं रुके थे। उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर कहा था- ‘अप्प दीपो भवः’, यानि अपना प्रकाश स्वयं बनो। आज अनेक प्रश्नों का उत्तर भगवान बुद्ध के इस उपदेश में ही समाहित है।” उन्होंने आगे यह भी कहा, “भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिए हैं। जहां बुद्ध की करुणा हो, वहां संघर्ष नहीं समन्वय होता है, अशांति नहीं शांति होती है।”

भारत की समृद्ध बौद्धिक विरासत के साथ भारत का भगवान बुद्ध से रिश्ता सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं है, बल्कि समकालीन महत्व का भी है। आज भारत स्वयं ही नहीं बल्कि विश्व भर में भगवान बुद्ध की शिक्षा के लिए अधिक समझ और संवेदनशीलता के प्रोत्साहन के लिए प्रयास कर रहा है।

समस्त विश्व में आज का मानव वर्तमान परिवेश में रक्षक की जगह भक्षक न बन जाये, इसके लिए बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों पर विचार करने की आवश्यकता है। जिससे व्यक्ति के आचरण, बुद्धि व विचार में परिवर्तन हो सके, क्योंकि समाज में एकता एवं समानता, मैत्री, न्याय एवं विश्व बंधुत्व का भाव उत्पन्न हो सके। अष्टांग योग में उन्होंने यही धर्मोपदेश किया है।

शांति और सद्भाव का मार्ग दुर्गम हो सकता है परंतु असाध्य नहीं। इस प्रकार 21वीं शताब्दी के भविष्य के लिये संघर्ष निवारण हेतु बौद्ध दर्शन को वैकल्पिक तंत्र के रूप में प्रयोग में लाने की आवश्यकता है।
पूरे विश्व में आज राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर भगवान बुद्ध का दृष्टिकोण अब अधिक जरूरी है। भगवान बुद्ध के उपदेश सार्वभौमिक व सर्वकालिक हैं एवं वह सभी के लिए हितकारी हैं और विश्व स्तर पर पनप रहे भोगवादी विचारों के कारण उत्पन्न समस्याओं जैसे– ईर्ष्या-द्वेष, शोषण, भ्रष्टाचार, आतंकवाद आदि को समाप्त कर एक समरस, सम्पन्न, लोक मंगलकारी समाज बनाने के उद्देश्य को पूर्ण कर सकते हैं। करुणा, मैत्री और शांति भगवान बुद्ध के विचारों का मूल हैं और वास्तव में एक अधिक टिकाऊ और न्यायसंगत दुनिया के लिए एक व्यवहारिक आचार संहिता के रूप में अनूदित किए जा सकते हैं। समन्वय, सहिष्णु, शांति युक्त कल्याण कारक समाज निर्माण के लिए महात्मा बुद्ध के विचार आज भी प्रासंगिक हैं।

लेखक भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री (संगठन) हैं