राष्ट्रवाद, सुशासन और विकास की जीत

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3मार्च 2018 को जैसे–जैसे वोट गिने जा रहे थे, यह स्पष्ट होता जा रहा था कि लोगों ने भाजपा एवं इसके सहयोगी दलों के पक्ष में ऐतिहासिक जनादेश दिया है। सबसे बड़ी खबर त्रिपुरा से आई, जहां 25 वर्षों से अजेय समझा जाने वाला कम्युनिस्टों का गढ़ ढह गया। यह मात्र एक चुनावी जीत नहीं, बल्कि वैचारिक विजय है जिससे इस जनादेश ने राष्ट्रवाद, सुशासन एवं विकास की पताका को उत्तर–पूर्व के आकाश में बुलन्दी से फहरा दिया। लम्बे समय के कम्युनिस्ट शासन में लोग ठगा महसूस कर रहे थे तथा त्रिपुरा की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। नगालैंड में भी एनडीए सरकार बनाने में सफल रहा तथा भाजपा को 12 सीटों पर सफलता प्राप्त हुई। मेघालय में भी कांग्रेस की सीटें भारी संख्या में घटी और साथ ही वह सत्ता से बाहर हो गई। परिणामस्वरूप एनडीए गठबंधन, जिसमें भाजपा भी भागीदार है, की सरकार मेघालय में भी बन गई। ऐसा पहली बार हुआ है कि उत्तर–पूर्व के आठ में से सात राज्यों में भाजपा एवं इसके सहयोगियों की सरकार है। यह वास्तव में भाजपा के कंधों पर एक भारी जिम्मेदारी है जबकि पूरा उत्तर–पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आशा एवं विश्वास से देख रहा है। इस पूरे क्षेत्र को दशकों की उपेक्षा एवं पिछड़ापन से निकालकर विकास के रास्ते पर तेजी से लाना पड़ेगा।

जहां कम्युनिस्टों को त्रिपुरा में जनता ने पूरी तरह से धूल चटाया, वहीं त्रिपुरा एवं नगालैण्ड में कांग्रेस का सफाया हो गया। मेघालय में कांग्रेस की हार हुई और इसकी जगह पर एक नई सरकार ने शपथ ली। आज जब कम्युनिस्ट देश की राजनीति के हाशिये पर पहुंच गये हैं, कांग्रेस भी इनसे पीछे नहीं है। वास्तव में देखा जाए तो राष्ट्रीय हित के खिलाफ बोलने में इन दोनों के बीच कड़ी प्रतियोगिता हो रही है। कांग्रेस ने देश पर लंबे समय तक शासन किया, इसकी सरपरस्ती में कम्युनिस्टों ने भी पिछले दरवाजे से सत्ता का स्वाद चखा है। एक ओर कांग्रेस गैर–जिम्मेदाराना तरीके से सत्ता–केन्द्रित वंशवादी राजनीति चलाती रही, वहीं कम्युनिस्ट बिना किसी जिम्मेदारी के सत्ता–सुख भोगते रहे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस सत्य को बिना स्वीकार किए अब भी ये घमंड में जी रहे हैं तथा देश की आंखों के तारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भी प्रहार करने से नहीं चूकते।

देश की जनता चुनाव–दर–चुनाव इन्हें हार पर हार दिलाकर सबक सिखा रही है। पर शायद ये यह नहीं समझ पा रहे कि इन पर न तो जनता का विश्वास है और न ही इनके पास देश के लिए कोई प्रामाणिक कार्यक्रम। इनके पास केवल नकारात्मक भाजपा–विरोधी और मोदी–विरोधी मुद्दा है, जो न तो उनकी पार्टी न ही देश में कोई सकारात्मक ऊर्जा भर सकती है। कांग्रेस–कम्युनिस्ट की नकारात्मकता का स्वरूप अब एक भस्मासुर की तरह हो चुका है जो स्वयं उनके लिये ही विनाशकारी बनता जा रहा है।

उत्तर–पूर्व की जनता ने ‘सबका–साथ, सबका–विकास’ तथा ‘एक भारत–श्रेष्ठ भारत’ की अवधारणा को पुरजोर समर्थन दिया है। उत्तर–पूर्व के जो राज्य कांग्रेस–कम्युनिस्ट शासन में उपेक्षा का दंश सहते हुए विकास की दौड़ में पीछे रह गये, वहां के लोगों ने इस क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री द्वारा किये जा रहे विशेष प्रयासों को जबरदस्त जनादेश दिया है। प्रधानमंत्री की इस क्षेत्र के लिए ‘अष्ट लक्ष्मी’ की अवधारणा तथा सुशासन एवं विकास के नए युग के प्रारम्भ के लिए उठाए गए ठोस कदमों से जनता अब कदम-से-कदम मिलाकर चल पड़ी है। भाजपा के लिये भारी मतदान कर जनता ने 2013 में 1.54 प्रतिशत मत की तुलना में इस बार भाजपा गठबंधन को 50 प्रतिशत से भी अधिक मत त्रिपुरा में दिया तथा नगालैंड में पार्टी पहली बार 12 सीटें प्राप्त करने के सफल रही। राजनैतिक विश्लेषकों को यह चमत्कार से कम नहीं लग रहा। कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत, निरंतर संघर्ष और बलिदान के साथ–साथ केंद्र सरकार के विकास कार्य से यह चमत्कारिक विजय संभव हुआ है। आज जबकि उत्तर–पूर्व में लोकतंत्र की विजय हुई है और विकास अपने कदम बढ़ा रहा है, इस क्षेत्र में परिवर्तनकारी बदलाव के लिये जनता बधाई की पात्र है।

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