भारत के अमृत काल का जाग्रत संकल्प हैं मोदी जी

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डाॅ. रमन सिंह

भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने आज अपने सार्थक जीवन के 71 वर्ष पूरे किये हैं। अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र समाज के लिए समर्पित कर देने वाले मोदी जी वास्तव में भारतीय लोकतंत्र को मिला एक ईश्वरीय उपहार हैं। हर महान व्यक्तित्व की तरह ही मोदी जी के व्यक्तित्व के भी अनेक पहलुओं पर बात की जा सकती है। एक देशभक्त कुशल शासक, एक विजनरी नेता, इमानदार राजनीतिज्ञ, लोकराज को लोकलाज के साथ चलाने वाला प्रधान सेवक,संघ का स्वयंसेवक, प्रचारक, समाजसेवी, साधक …. विश्व भर में आज के भारत का उदात्त और समावेशी चेहरा।

इन सबको समेटते हुए मोदी जी की उपलब्धियों को मैं तीन अलग-अलग तरह से देखता हूं। पहला – उन्होंने राजनीति में जो क्रांति की, जिसके कारण भाजपा को कम से कम बीस वर्ष तक कोई देश के शीर्ष से हिला नहीं सकता। दूसरा – जो उन्होंने विकास और समृद्धि के कार्य किए जिसके लिए शायद अगले पचास वर्ष तक वे याद किए जायें। लेकिन इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण काम जो मोदी जी का, जिसके लिए सदियां स्मरण रखेंगी उन्हें, वह है देश की चेतना को झकझोर कर सनातन भारत को फिर से चैतन्य बना देना। दशकों से पश्चिमी विचारों की जकड़न में रहने के कारण भारत में एक तरह की आत्महीनता आ गयी थी। हम सबने यह मान लिया था कि हमारा कुछ नहीं हो सकता। सवा अरब से अधिक की आबादी को बोझ समझ, उसके नीचे दबे हम लोगों में सकारात्मकता का प्रवाह कर देना, सोए हुए भारत को जगा देना। छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दे कर बड़ा काम कैसे किया जा सकता है, यह भारत को सिखाया है मोदी जी ने।

कल्पना कीजिए, क्या कभी आप किसी प्रधानमंत्री से यह उम्मीद करते थे कि वह लाल क़िला से यह कहेगा कि भारत को स्वच्छ बनाना सबसे बड़ा काम है, या खुले में शौच जाना सबसे बड़ी राष्ट्रीय समस्या है? एक ऐसी समस्या जिसे हम सब अपनी नियति मान कर स्वीकार कर चुके थे, उन्होंने न केवल हमें यह बताया कि यह ग़लत है बल्कि समाधान भी प्रस्तुत किया। आज स्वच्छता भारत का सबसे बड़ा सामाजिक आंदोलन बन चुका है। आज लगभग सारा देश खुले में शौच से मुक्त अगर हुआ है, आज अगर देश का हर नागरिक अगर कहीं भी थूक देने से पहले, कुछ खा कर रैपर सड़क पर फ़ेक देने से पहले इधर-उधर देख लेता है, या उसे ऐसा लगने लगा है कि ऐसा करना सामाजिक और नैतिक अपराध है, तो सवा अरब मस्तिष्क में यह विचार रोप देना कितना बड़ा भगीरथ काम है, यह सोचिए।

 इसी स्वतंत्रता दिवस पर आपने मोदी जी को एक और मंत्र देते हुए सुना होगा, जब उन्होंने कहा कि महिलाओं के विरुद्ध अपमानजनक भाषाओं का उपयोग हमारे देश में आम होना भी एक बड़ी बुराई है। इससे पहले उन्होंने ही कहा था कि लड़कियों से जल्दी घर आने की उम्मीद करने वाला समाज आख़िर अपने बेटों से क्यों नहीं पूछता कि वह बाहर क्यों रहता है देर तक? आज मोदी जी की इन्हीं भावनाओं के कारण, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे आह्वान के कारण यह संभव हुआ है कि देश अपने ‘जेंडर रेशियो’ को लगभग आदर्श स्थिति में लाने जैसा चमत्कार हासिल कर पाया है। ऐसी छोटी-छोटी चीजों से, गंदगी से मुक्ति का, समाजोत्थान का, राष्ट्र प्रथम का मोदी जी का स्वप्न किस तरह साकार हुआ है, इसके बारे में सोच कर हम मोदी जी के व्यक्तित्व का थोडा-बहुत मूल्यांकन कर सकते हैं।

 आप गौर करें, एक तरफ मोदी जी देश को यह चेतावनी देते हैं कि चुनावी लाभ लेने के लिए रेवड़ी बांटना देश को गर्त में ले जाएगा, इसे भी वे एक कुप्रथा की तरह देखते हैं लेकिन जब भी देश को ज़रूरत होती है, वे खजाना खोल देने में रंच मात्र भी देरी नहीं करते। कोरोना के भयावह वैश्विक संकट में 80 करोड़ भारतीयों तक मुफ़्त अनाज पहुंचाना, दो सौ करोड़ कोरोना टीके भारतीयों को लग जाना कितनी बड़ी बात है, यह देखिए। विरोधी हिसाब लगाकर कहते थे कि भारत का सम्पूर्ण कोरोना टीकाकरण कम से कम पंद्रह वर्ष में संभव होगा, जबकि साल डेढ़ साल में न केवल दोनों टीका उपलब्ध करा दिया गया बल्कि अब तो बूस्टर डोज़ तक भी हम पहुंच गए हैं। यह चमत्कार ऐसा है जिसके लिए दुनिया दांतों तले अंगुली दबा रहा है।

एक ऐसा विजनरी नेता जिसने कुछ बन जाने को कभी अपने जीवन का ध्येय नहीं बनाया। हमेशा जिसने कुछ कर जाने को अपने जीवन की सार्थकता समझी हो। गुजरात के वडनगर की अपनी चाय दुकान से झोला उठाए निकल पड़े किशोर नरेंद्र के किशोर मन में तब भी सामान्य मानवीय अभिलाषाओं से अलग वही संघ संकल्प रहा होगा कि मां भारती को उसके पुरा वैभव की पुनर्स्थापना करनी है। भारत को उसके विश्वगुरु के पुराने आसन पर पुनः आसीन करना है। हर भारतीय की आंखों से न केवल आंसू पोंछना है बल्कि उनकी आंखों में सपने भी रोपने हैं, कुछ कर जाने के सपने।

एक बड़े विजन के साथ संवेदनशीलता ही मोदी जी को विशिष्ट बनाता है। जब-जब उनका छत्तीसगढ़ प्रवास हुआ तब-तब यहां भी उन्होंने अपने कृतित्व से इतिहास बनाया। आदिवासी जिला बीजापुर के जांगला में उन्होंने बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर जी के जन्मदिवस पर आयुष्मान योजना की शुरुआत की थी, तब उन्होंने आदिवासी महिला रत्नीबाई जी को अपने हाथों चप्पल पहनाई थी। अपने प्रधानमंत्री को इस तरह जनता-जनार्दन के पांवों में झुकते देखकर तब सारा देश भावविभोर हो गया था। इसी तरह बात चाहे दंतेवाडा के ‘जावांगा’ में दिव्यांग बच्चों के साथ मांदर पर थाप देने का या फिर बकरी बेच कर शौचालय बनाने वाली धमतरी की कुंवर बाई को मंच पर बुला कर उनके पांव छूना के…. हर बार झुक कर मोदी जी का कद विशाल होता गया। हर बार देश अपने इस नेता को और अधिक सम्मान के साथ चाहने लगी।

मोदी यानी एक अपराजेय योद्धा, अनेक राजनीतिक विमर्शों को बदल देने वाले, पहली पूर्ण बहुमत की ग़ैर कांग्रेसी सरकार का लगातार नेतृत्व करने वाले, जिस दल का एकछत्र राज्य पचास वर्षों से रहा हो, उसे लगातार दो बार से मुख्य विपक्ष की हैसियत में भी नहीं रहने देने वाले, भारत को विकसित देशों की क़तार में ला कर खड़ा, अवसरों का देश बना देना,ऐसी दर्जनों नहीं, बल्कि सैकड़ों उपलब्धियों का ज़िक्र एक साथ किया जा सकता है। इसके अलावा मोदी जी की वैश्विक दृष्टि का कायल हुए बिना तो आज शायद ही संसार का कोई देश हो।हाल में मैक्सिको के राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर ने यूएन के सामने अपने एक प्रस्ताव के माध्यम से अपील की कि वर्तमान स्थिति को देखते हुए वैश्विक शांति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पोप फ्रांसिस और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनिया गुटेरेस की तीन सदस्यों की एक कमिटी बनानी चाहिए।मोदीजी की वैश्विक स्वीकार्यता किस तरह बढ़ी है, किस तरह उनके नेतृत्व में भारत आज दुनिया का अगुआ बना है, यह इसका प्रमाण है, ऐसा ही हमने रूस-यूक्रेन युद्ध में भी देखा ही है।

आपदा में अवसर का ऐसे हुंकार करने वाले, आत्महीनता के उलट हममें गौरव का भाव जगाने वाले, पाश्चात्य निर्भरता की विडम्बना को आत्मनिर्भर भारत के स्वाभिमान में बदल देने वाले मोदी जी वास्तव में आज न केवल भारतीय, अपितु वैश्विक आकांक्षाओं के प्रतीक बन चुके हैं। चरैवेति-चरैवेति के उपनिषद वाक्य को अपना जीवन दर्शन बना कर मोदी जी अभी भी उसी ऊर्जा के साथ आज भी भारत के पुरा वैभव की पुनर्स्थापना में रत हैं जैसा उन्होंने 20 वर्ष पहले मुख्यमंत्री के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत कर की थी या उससे पहले एक स्वयंसेवक के रूप में वे देश को अपना जीवन समर्पित करते हुए किया होगा।

स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के इस ‘अमृत काल’ में मोदी जी देश को चैतन्य करने के मिशन में आज भी अहर्निश जुटे हैं। हाल में एक उद्बोधन में जैसा कि मोदी जी ने कहा– ‘अमृत काल का समय सोते हुए सपने देखने का नहीं है, बल्कि जाग्रत संकल्पों को पूरा करने का है। आने वाले 25 वर्ष अत्यंत कठिन परिश्रम, त्याग और ‘तपस्या’ के काल हैं। हमारे समाज ने सैकड़ों वर्षों की गुलामी में जो खोया है उसे वापस पाने के लिए यह 25 साल की अवधि है।’ यह वह विजन है जो अगले पचीस वर्ष के लिए मोदी जी ने हमें दिया है। देश अपने इस नेता के साथ कदमताल करते हुए उनके जाग्रत संकल्पों को निश्चय ही सिद्ध करेगा, यह तय है। शुभकामना।

(लेखक भाजपा के उपाध्यक्ष एवं छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री हैं।)