‘राजनीति के अजातशत्रु’–कैलाशपति मिश्र

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    (5 अक्टूबर 1923 – 3 नवंबर 2012)

भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक श्री कैलाशपति मिश्र को बिहार भाजपा का ‘भीष्म पितामह’ कहा जाता है। श्री मिश्र का जन्म बक्सर जिले में दुधारचक गांव में 5 अक्तूबर, 1923 को हुआ था। 1942 के ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन में वे 10वीं के छात्र रहते हुए जेल गए। 1945 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आए, तो फिर अपने राष्ट्र और समाज की सेवा ही उनका ध्येय बन गया।

संघ प्रचारक के रूप में श्री मिश्र ने आरा से सामाजिक जीवन प्रारंभ किया, 1947 से 52 तक पटना में प्रचारक रहे, 1952 से 57 तक पूर्णिया के जिला प्रचारक रहे, फिर संघ के निर्देश पर ही जनसंघ में गए। 1959 में जनसंघ के प्रदेश संगठन मंत्री का दायित्व मिला, तो आपातकाल के बाद चुनावी राजनीति में उतरने के निर्देश का भी पालन किया। विक्रम विधानसभा से चुनाव लड़े, जीते और कर्पूरी ठाकुर की सरकार में वित्त मंत्री भी रहे।

1980 में भारतीय जनता पार्टी की बिहार इकाई के वे पहले प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत हुए, फिर 1983 से 1987 तक निर्वाचित अध्यक्ष रहे। इस बीच श्री मिश्र 1984 से 1990 तक राज्यसभा के भी सदस्य रहे। भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के साथ ही अनेक राज्यों के संगठन मंत्री का दायित्व भी उन्होंने बखूबी निभाया। 7 मई, 2003 से 7 जुलाई, 2004 तक वे गुजरात के राज्यपाल पद पर भी आसीन रहे। इसी दौरान 4 माह के लिए राजस्थान के राज्यपाल का कार्यभार भी उन पर था।

50 वर्ष से अधिक लम्बी चली उनकी राजनीतिक जीवन की यात्रा में न उन पर कोई आरोप लगा और न ही वे किसी विवाद का अंग बने। राजनीति की दलदल में कमल के समान अहंकार, बुराई, द्वेष, लोभ-लालच आदि सामान्य दोषों से भी अछूते रहने वाले श्री कैलाशपति मिश्र अपनी इन्हीं विशिष्टताओं के कारण भारतीय जनता पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं के लिए आज भी आदर्श एवं प्रेरणास्रोत हैं।
श्री कैलाशपति मिश्र एक साहित्यकार भी थे। इनकी लिखी पुस्तकों में ‘पथ के संस्मरण’ (आत्मकथा) और ‘चेतना के स्वर’ (कविता संग्रह) प्रमुख हैं। इनकी मृत्यु 3 नवंबर 2012 को पटना में हुई।