साहनी जी हर किसी को अपना बना लेते थे

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श्री केदारनाथ साहनी का जन्म 24 अक्टूबर, 1926 को रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) के थट्टा गांव में हुआ था। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे। उन्होंने भारतीय जनसंघ एवं भाजपा के अनेक महत्वपूर्ण दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया। साहनी जी ने सिक्किम और गोवा के राज्यपाल पद को भी सुशोभित किया। 3 अक्टूबर, 2012 को साहनी जी का देहावसान हो गया। हम उनकी स्मृति में डॉ. मुकर्जी स्मृति न्यास द्वारा प्रकाशित ‘अपने साहनी जी’ पुस्तक का प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लिखा गया आमुख यहां प्रकाशित कर रहे हैं-

 – नरेन्द्र मोदी
प्रधानमंत्री

स्वर्गीय श्री केदारनाथ साहनी से सदैव ही मेरे अत्यंत निकट संबंध रहे। मुझे सदा-सर्वदा ही उनका सहयोग, स्नेह और आशीष मिलता रहा। उनका बहुआयामी व्यक्तित्व, सौम्य स्वभाव और मृदुभाषी व्यवहार ऐसा था जो किसी अपरिचित व्यक्ति को भी अपना बना लेता था।

संघ परिवार के लगभग प्रत्येक कार्यक्रम में भारतीय वेशभूषा में, मितभाषी और मृदुभाषी मंद मुस्कान बिखेरता और ठीक समय पर पहुंचने वाला उनका सौम्य चेहरा मुझे सदा प्रेरणा देता रहा है। वे सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन के विरले आदर्श पुरुष थे।

श्री साहनी जी के व्यक्तित्व में एक राष्ट्रवादी चिंतन था। राष्ट्रप्रेम और समरसता की ऊर्जा को दूसरों तक पहुंचाना उनका एकमात्र लक्ष्य था। उनका जीवन इतनी विविधताओं से भरा हुआ था कि उनके व्यक्तित्व के जादू से प्रभावित हुए बिना कोई रह नहीं पाता था।

1996 के दौरान वे दिल्ली भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष थे और मैं पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव था। तब कई बार साहनी जी से मिलने का, बातचीत करने का और उनके साथ चर्चा में शामिल होने का मौका मिला।

महासचिव के तौर पर दिल्ली आने से पहले जब मुझ पर गुजरात में पार्टी के प्रचार की जिम्मेदारी थी, तब भी हमें साहनी जी के सामाजिक और सार्वजनिक जीवन से जुड़ी खबरें मिलती रहती थीं। राजनीति में इतने ऊंचे आदर्श स्थापित करने वाली शख्सियतें कम ही होती हैं। साहनी जी, अत्यंत कुशल

विचारधारा और अनुशासन से किसी भी तरह का समझौता किए बगैर, साहनी जी अपने काम से कार्यकर्ताओं को प्रेरणा देते थे, उनका मार्गदर्शन करते थे। कार्यकर्ताओं को उनके आचरण और मर्यादा के संदर्भ में स्पष्ट और दो टूक बात करने में भी वे झिझकते नहीं थे

संगठनकर्ता थे।

साहनी जी के लिए अनुशासन सदैव सर्वोपरि था। 1976 में दिल्ली नगर निगम चुनाव के वक्त स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन के तौर पर उन्होंने इस बात की परवाह किए बिना कि पार्टी अल्पमत में है, पार्टी लाइन से बाहर जाने वाले पार्षदों को निलंबित कर दिया था। वे नियमों के साथ कभी कोई समझौता नहीं करते थे।

अलग-अलग इकाइयों में उन्हें जो भी दायित्व मिला, उन सभी जगहों पर उन्होंने बहुत कड़े अनुशासन का परिचय दिया। वे अलोकप्रिय होने का जोखिम उठाकर भी कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते थे।

समय की पाबंदी को लेकर भी साहनी जी हमेशा गंभीर रहे। निमंत्रण पत्र पर कार्यक्रम का जो वक्त लिखा होता, वे उसी समय पहुंचते थे। कई बार तैयारी पूरी ना होने की वजह से आयोजकों को शर्मिंदगी भी उठानी पड़ती थी और कई बार खुद साहनी जी को भी लंबा इंतजार करना पड़ता था, क्योंकि बाकी लोग भी देर से ही आते थे।

साहनी जी, दिल्ली महानगर परिषद में मुख्य कार्यकारी पार्षद के पद रहे, उन्होंने दिल्ली बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष का पद भी संभाला। दिल्ली नगर निगम का पूर्व सदस्य होने के बावजूद उन्होंने सरकार से कभी पेंशन नहीं ली। वे कहते थे कि उन्होंने जो कुछ किया, वह समाज सेवा के अपने दायित्व के लिए किया, उसकी पेंशन क्या लेना? आज के दौर में इस तरह की बात करने वाले कम ही लोग मिलेंगे।
विचारधारा और अनुशासन से किसी भी तरह का समझौता किए बगैर, वे अपने काम से कार्यकर्ताओं को प्रेरणा देते थे, उनका मार्गदर्शन करते थे। कार्यकर्ताओं को उनके आचरण और मर्यादा के संदर्भ में स्पष्ट और दो टूक बात करने में भी वे झिझकते नहीं थे।

एक बार साहनी जी को बहुत इमरजेंसी में पार्टी की कार का निजी इस्तेमाल करना पड़ा था। जब काम खत्म हुआ तो, उन्होंने पार्टी के अकाउंट में कार का किराया जमा कराया। वे कहते थे कि सार्वजनिक धन की एक-एक पाई के लिए नेता जवाबदेह हैं और इसलिए इस धन का निजी कार्य के लिए उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

साहनी जी का बाह्य व्यक्तित्व कठोर था, लेकिन मन बहुत कोमल और संवेदनशील था। इंसानियत और ईमानदारी की जो मिसालें स्वर्गीय साहनी जी समाज को देकर गए हैं, वैसी अब कम ही मिलती हैं।
90 के दशक में जिस वक्त आतंकवाद की वजह से हजारों की तादाद में लोग कश्मीर से दिल्ली आ रहे थे, तब साहनी जी ने उनकी मदद के लिए दिन-रात एक कर दिया। उनके रहने-खाने और दवाइयों तक का इंतजाम किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुशासित सिपाही की तरह वे किसी भी कार्य को आगे बढ़कर, खुद करने में संकोच नहीं करते थे।

पार्टी के लिए धन संग्रह करने की उनकी क्षमता भी प्रशंसा करने योग्य थी। अपने संबंधों का उपयोग वे पार्टी के लिए धन इकट्ठा करने के लिए तो करते ही थे, लेकिन साथ ही इन संबंधों के जरिए वे गरीबों की भी उतनी मदद करते रहते थे। इसलिए जब गरीब और बेसहारा परिवारों को आर्थिक सहायता देने के लिए ‘चौपाल’ नाम की संस्था शुरू की गई, तो साहनी जी ने उसके संरक्षक होने का दायित्व सहर्ष संभाला।

कार्यकर्ताओं की समस्या, उनकी वेदना और संकट की घड़ी में केदार नाथ साहनी जी खुद जिम्मेदारी लेकर मदद के लिए आगे आते थे।

2009 की बात होगी जब पार्टी की एक महिला कार्यकर्ता के लिए वे भगवान बनकर आए। उस महिला के बेटे को कैंसर था और इलाज के लिए काफी पैसों की आवश्यकता थी। साहनी जी ने बिना उस महिला को बताए ही इलाज की सारी रकम का इंतजाम कर दिया।

इसी तरह एक बार एक गरीब कार्यकर्ता की किडनी फेल हो जाने पर साहनी जी ने पार्टी के एक पदाधिकारी को अलग से जिम्मेदारी सौंप दी थी कि उस कार्यकर्ता को इलाज और पैसे की कमी ना आए। जब तक वो कार्यकर्ता जीवित रहा, साहनी जी खुद भी उसकी आर्थिक मदद करते रहे और दूसरों से भी करवाते रहे।

साहनी जी के व्यक्तित्व की ये विशेषताएं संघ प्रचारक के तौर पर उनके काम में भी हमेशा दिखाई दीं। मुश्किल हालात का वे डटकर मुकाबला करते थे। 1947 में बंटवारे से पहले उन्हें संघ प्रचारक के तौर पर जम्मू-कश्मीर भेजा गया था। उन्होंने कश्मीर पर पाकिस्तान की कबाइली फौज के आक्रमण को झेला और कश्मीर के भारत में विलय के साक्षी भी बने। इस दौरान साहनी जी ने बहुत से लोगों को

साहनी जी का बाह्य व्यक्तित्व कठोर था, लेकिन मन बहुत कोमल और संवेदनशील था। इंसानियत और ईमानदारी की जो मिसालें स्वर्गीय साहनी जी समाज को देकर गए हैं, वैसी अब कम ही मिलती हैं

सुरक्षित जगहों पर पहुंचाकर उनकी जान भी बचाई।

जब देश में आपातकाल लगा तो उन्होंने वेश बदलकर सरकार को चकमा दिया और विदेश चले गए और वहीं से तत्कालीन सरकार की नीतियों के खिलाफ जमकर प्रचार किया।

विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से भी केदारनाथ साहनी जी के बड़े आत्मीय संबंध थे। इनके अलावा समाज के दूसरे तबकों जैसे डॉक्टर इंजीनियर, वकील, शिक्षाविद् और अन्य प्रभावी लोगों से उनका संवाद निरंतर चलता रहता था। समाज में सभी के साथ संपर्क रखने में वे बहुत कुशल थे और साथ ही संबंधों को निभाने को लेकर भी बहुत संवेदनशील रहते थे।

जब मुझे गुजरात का मुख्यमंत्री बने कुछ ही महीने हुए थे तब साहनी जी को गोवा के राज्यपाल के तौर पर नियुक्त किया गया था। उस दौरान भी मुझे उनके सियासी अनुभव का लाभ मिला। उनकी सामाजिक समन्वय और समभाव की दृष्टि भी बहुत अधिक प्रशंसनीय थी। गोवा में राज्यपाल रहते उन्होंने राजभवन में कई वर्षों से बंद पड़े पुराने चर्च को खुलवा कर साप्ताहिक प्रार्थना शुरू करवाई थी। इसे लोग आज भी याद करते हैं।

आज स्वच्छ भारत मिशन केंद्र सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है, लेकिन साहनी जी उन शुरुआती लोगों में से एक थे जिन्होंने दिल्ली को स्वच्छ और सुंदर बनाने का विचार दिया। 1978 में दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद के पद पर रहते हुए उन्होंने कहा था कि जब हम अपने घर को साफ रख सकते हैं तो देश और दिल्ली को क्यों नहीं रख सकते। वे उन्हीं के अथक प्रयासों का परिणाम था कि उस वक्त यमुना की स्थिति को सुधारने के साथ ही दिल्ली को भी हरा-भरा बनाने का कार्य आरंभ हुआ। स्वर्गीय श्री साहनी जी स्वच्छ भारत मिशन में मेरे लिए आज भी एक प्रेरणास्रोत हैं।

पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी की अंत्योदय की भावना को पूरी तरह आत्मसात करते हुए साहनी जी संपूर्ण व्यवस्था को अंत्योदय दर्शन के प्रति सजग करते रहे। मेरे साथ साझा किए हुए उनके अनुभव आज भी अमूल्य हैं।

अस्थमा और दूसरी बीमारियों से परेशान रहने के बावजूद वे अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के बल पर लंबे समय तक काम करते रहे थे। केदारनाथ साहनी जी का इस संसार से विदा लेना मेरे लिए निजी क्षति थी। उनके संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति महसूस करता था कि वे अपने सिद्धांतों के प्रति कितने प्रतिबद्ध थे। वे स्वयं एक संस्था की तरह थे। वे चाहे दिल्ली बीजेपी में रहे हों या फिर केंद्रीय संगठन में, कार्यकर्ता उनके पास निरंतर मार्गदर्शन के लिए जाते रहते थे। उनका बहुआयामी व्यक्तित्व देश की भावी युवा पीढ़ी को सदैव ही एक प्रेरणास्रोत बनकर मार्गदर्शन देता रहेगा।