संसद से पारित हुआ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक, 2018

| Published on:

नुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक, 2018 गत 6 अगस्त को लोकसभा में पारित होने के बाद 9 अगस्त को राज्यसभा में भी पारित हो गया। इस मौके पर भाजपानीत केंद्र की राजग सरकार ने कहा कि वह अच्छी नीयत, अच्छी नीति और अच्छी कार्ययोजना के साथ इन वर्गों के हकों के संरक्षण के लिए प्रयासरत है। गौरतलब है कि केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री श्री थावरचंद गहलोत ने 9 अगस्त को राज्यसभा में संशोधन विधेयक, 2018 पेश किया था।

विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए श्री गहलोत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले ही संबोधन में स्पष्ट कर दिया था कि उनकी सरकार गरीबों, पिछड़े लोगों की सरकार होगी। उन्होंने कहा कि पिछले चार साल में हमने वैसा करके भी दिखाया है और इस संबंध में किसी को कोई आशंका नहीं करनी चाहिए।

श्री गहलोत ने कहा कि वह अच्छी नीयत, अच्छी नीति और अच्छी कार्ययोजना के साथ कठोर प्रयास कर इन वर्गों के हकों के संरक्षण के लिए प्रयासरत है। इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। उन्होंने कहा कि विधेयक में विशेष अदालतों की स्थापना का प्रावधान किया गया है।

श्री गहलोत ने कहा कि यह सरकार शुरू से ही इन वर्गों के लोगों के हकों के संरक्षण के लिए प्रयासरत रही है। इस सरकार की शुरू से ही इन वर्गों के प्रति प्रतिबद्धता थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद विधेयक लाए जाने की पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया और कहा कि जिस मंशा से मूल कानून बनाया गया था, उसे बहाल करने के लिए यह विधेयक लाया गया है।

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक की मुख्य बातें

प्राथमिकी दर्ज करने से पहले आरंभिक जांच कराने की जरूरत को समाप्त करने अथवा किसी आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले किसी अधिकारी से मंजूरी लेने और अधिनियम की धारा 18 के प्रावधानों को बहाल करने के लिए धारा 18ए को इसमें शामिल किया गया है।
अधिनियम में शामिल की गई धारा 18ए में यह कहा गया है कि :

1. पीओए अधिनियम के प्रयोजन के लिए –

क. किसी भी व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले आरंभिक जांच कराने की जरूरत नहीं होगी; अथवा

ख. किसी भी ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए, यदि आवश्यक हो, जांच अधिकारी को मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं होगी, जिसके खिलाफ पीओए अधिनियम के तहत कोई अपराध करने का आरोप लगाया गया है और पीओए अधिनियम अथवा फौजदारी प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत उल्लिखित प्रक्रिया के अलावा कोई और प्रक्रिया लागू नहीं होगी।

2. किसी भी अदालत का चाहे कोई भी फैसला अथवा ऑर्डर या निर्देश हो, लेकिन संहिता की धारा 438 का प्रावधान इस अधिनियम के तहत किसी मामले पर लागू नहीं होगा।

पृष्ठभूमि

2018 की फौजदारी अपील संख्या 416 (डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य) में माननीय उच्चतम न्यायालय ने दिनांक 20 मार्च, 2018 को अपने फैसले में पीओए अधिनियम में संशोधन करने का निर्देश दिया है और पीओए अधिनियम के प्रावधानों को हल्का कर दिया है।

माननीय न्यायालय के निर्देश के अनुसार, संबंधित पुलिस उप-अधीक्षक द्वारा सात दिनों के भीतर आरंभिक जांच कराके यह पता लगाया जाएगा कि लगाये गये आरोपों के संबंध में पीओए अधिनियम के तहत कोई मामला बनता है या नहीं और एसएसपी से मंजूरी मिलने के बाद ही उपयुक्त मामलों में गिरफ्तारी की जाएगी। ऐसी स्थिति में प्राथमिकी दर्ज करने में विलंब होगा और पीओए अधिनियम के प्रावधान पर कड़ाई से पालन में बाधा आएगी।

सात दिनों के भीतर आरंभिक जांच कराना भी मुश्किल साबित हो सकता है, क्योंकि पुलिस उप-अधीक्षक अधिकारी आम तौर पर पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं होते है। माननीय न्यायालय के निर्देशों का एक और असर यह होगा कि प्राथमिकी दर्ज करने में विलंब होने से अत्याचार के शिकार लोगों को स्वीकार्य राहत राशि मिलने में भी देरी होगी, क्योंकि यह केवल प्राथमिकी दर्ज होने पर ही स्वीकार्य होती है।

यह मामला अत्यंत संवेदनशील होने के कारण देश में अशांति का माहौल बन गया था। इसके परिणामस्वरूप केन्द्र सरकार द्वारा 02 अप्रैल, 2018 को एक समीक्षा याचिका माननीय न्यायालय में पेश कर अपने ऑर्डर को वापस लेने एवं इसकी समीक्षा करने की गुजारिश की गई थी, लेकिन अब तक कोई राहत नहीं दी गई।

एससी, एसटी अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक पारित होना ऐतिहासिक: नरेन्द्र मोदी

भाजपा संसदीय पार्टी की बैठक में 7 अगस्त को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा से एससी, एसटी अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक पारित होने को ऐतिहासिक बताया और पार्टी नेताओं एवं सांसदों से इन कार्यों को सक्रियता के साथ जनता के बीच रखने को कहा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कई दशकों से समाज के वंचित वर्गों को इसका इंतजार था। संसद ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने संबंधी विधेयक पारित किया है जो देश भर में ओबीसी समुदाय को मजबूत बनायेगा। प्रधानमंत्री ने एससी, एसटी संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित होने को महत्वपूर्ण पहल बताया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अनुसूचित जाति, जनजाति एवं समाज के वंचित वर्गों के समग्र विकास की जरूरत है और उनकी सरकार इस दिशा में काम कर रही है। इन कार्यों में इन वर्गों का सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, राजनीतिक और बौद्धिक सशक्तिकरण शामिल है।
प्रधानमंत्री ने पार्टी नेताओं और सांसदों से सरकार के इन कार्यों को जनता के समक्ष मजबूती से रखने को कहा। उन्होंने सत्र समाप्त होने के बाद पार्टी सांसदों से अपने अपने क्षेत्रों में इन कार्यों को सक्रियता से एवं मुखर होकर पेश करने को कहा।

दलितों का अपमान करना कांग्रेस की परंपरा: अमित शाह

भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह ने कहा कि दलितों का अपमान करने की विपक्षी दल की परंपरा रही है। सिलसिलेवार ट्वीट में श्री शाह ने कहा कि संशोधित बिल के जरिए एससी/एसटी कानून को मजबूत करना और ओबीसी आयोग की स्थापना प्रधानमंत्री की विरासत में है, जबकि दलित नेताओं का अपमान करना, मंडल आयोग की रिपोर्ट का विरोध करना और ओबीसी संस्था को मजबूत बनाने में बाधा डालना कांग्रेस की परंपरा रही है।