‘राज्य और केन्द्र प्रतिद्वंद्वी न होकर प्रतिभागी या सहभागी हैं’

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       राज्यसभा का 250वां सत्र

भारत के संसदीय इतिहास में राज्यसभा की भूमिका की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 18 नवंबर को कहा कि राज्यसभा राज्यों के हितों का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने कहा कि राज्य और केन्द्र प्रतिद्वंद्वी न होकर प्रतिभागी या सहभागी हैं। यह सदन राज्यों के विकास में अपनी भूमिका निभा
रहा है।

श्री मोदी ने उच्च सदन के 250 वें सत्र के अवसर पर ‘‘भारतीय राजनीति में राज्यसभा की भूमिका …आगे का मार्ग” विषय पर हुई विषेष चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि इस सदन ने कई ऐतिहासिक पल देखे हैं और कई बार इतिहास को मोड़ने का भी काम किया है।

उन्होंने राज्यसभा के 200वें सत्र में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा दिए गए संबोधन का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारी द्विसदनीय संसद है। किंतु राज्यसभा को कभी ‘‘गौण” सदन बनाने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। श्री मोदी ने कहा कि हमारे इस दूसरे सदन को ‘‘सपोर्टिव (सहयोगात्मक)’’ सदन बने रहना चाहिए।

श्री मोदी ने कहा कि हमें राष्ट्रीय दृष्टिकोण को सदा केन्द्र में रखना चाहिए, किंतु क्षेत्रीय हितों का संतुलन भी बनाये रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह संतुलन बनाये रखने का काम सबसे अच्छी तरह से राज्यसभा में ही हो सकता है।

उन्होंने कहा कि यह सदन ‘‘चैक एवं बैलेंस” का काम करता है। किंतु ‘‘बैलेंस और ब्लाक (रुकावट)” में अंतर रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें ‘‘रुकावट के बजाय संवाद का रास्ता चुनना चाहिए।”
उन्होंने ‘‘स्थायित्व एवं विविधता” को राज्यसभा की दो विशेषताएं बताया। उन्होंने कहा कि भारत की एकता की जो ताकत है वह सबसे अधिक इसी सदन में प्रतिबिंबित होती है। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति के लिए ‘‘चुनावी अखाड़ा” पार कर पाना संभव नहीं होता है। किंतु इस व्यवस्था के कारण हमें ऐसे महानुभावों के अनुभवों का लाभ मिलता है।

श्री मोदी ने कहा कि इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं बाबा साहेब अंबेडकर हैं। उन्हें किन्हीं कारण से लोकसभा में जाने का अवसर नहीं मिल सका और उन्होंने राज्यसभा में आकर अपना मूल्यवान योगदान दिया। उन्होंने कहा कि यह सदन ‘‘चैक एवं बैलेंस (नियंत्रण एवं संतुलन)’’ का काम करता है। किंतु ‘‘बैलेंस और ब्लाक (रुकावट)’’ में अंतर रखा जाना चाहिए। उन्होंने राज्यसभा सदस्यों को सुझाव दिया कि हमें ‘‘रुकावट के बजाय संवाद का रास्ता चुनना चाहिए।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन जिन लोगों ने योगदान दिया है, वे अभिनंदन के अधिकारी हैं। इस मौके पर प्रधानमंत्री श्री मोदी ने राज्यसभा के सभी सदस्यों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं के बीच यह चर्चा चली थी कि सदन एक हो या दो। किंतु अनुभव बताता है कि संविधान निर्माताओं ने बहुत अच्छी व्यवस्था दी।

श्री मोदी ने कहा कि इस सदन में कई ऐसे लोग थे जिन्होंने कभी शासन व्यवस्था में निरंकुशता नहीं आने दी। उन्होंने राज्यसभा के पहले सभापति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘हमारे विचार, हमारे व्यवहार और हमारी सोच ही दो सदनों वाली हमारी संसद के औचित्य को साबित करेगी।’’
उन्होंने कहा कि हमारे लिए यह सोचने का विषय है कि डा. राधाकृष्णन ने हमसे जो अपेक्षाएं की थीं, क्या हम उन पर सही उतर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने अपने अनुभवों का जिक्र करते हुए कहा कि इस सदन के कारण उन्हें कई चीजों को नये सिरे से देखने का मौका मिला है। उन्होंने तीन तलाक विधेयक का उल्लेख करते हुए कहा कि इस सदन ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक परिपक्व कदम उठाया। इसे लेकर पहले कुछ आशंकाएं जतायी जा रही थीं, किंतु वह गलत साबित हुईं।

श्री मोदी ने जीएसटी और सामान्य वर्ग के गरीब तबके के लोगों को आरक्षण संबंधी विधेयकों को पारित करने के लिए भी उच्च सदन की सराहना की। उन्होंने अनुच्छेद 370 और 35 ए के हटाए जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि उच्च सदन ने इस मामले में भी विधेयक पारित कर देश को दिशा दिखायी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राकांपा और बीजद से हमें सीख लेनी चाहिए, क्योंकि उनके सदस्य कभी आसन के समक्ष नहीं आते। उन्होंने कहा कि इन दोनों दलों से सत्ता पक्ष सहित सभी दलों को सीख लेनी चाहिए कि हम आसन के समक्ष आये बिना भी अपना राजनीतिक विकास कर सकते हैं।