सहकारिता से होकर निकलेगा किसानों की उन्नति का रास्ता

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राजकुमार चाहर

किसान कल्याण और गरीब उत्थान, बिना सहकारिता के सोचा ही नहीं जा सकता। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में जब सहकारिता आंदोलन को सबसे अधिक जरूरत थी, तब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 75 साल पुरानी मांग को पूरा करते हुए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया और आज के हमारे लौहपुरुष गृह मंत्री श्री अमित शाह को इस मंत्रालय की कमान दी। देश में सहकारिता आंदोलन को मज़बूत करने एवं सहकारी समितियों के लिए ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ की प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने हेतु गठित सहकारिता मंत्रालय का मूल मंत्र है ‘सहकार से समृद्धि’।

सहकारिता आंदोलन भारत के ग्रामीण समाज की प्रगति करेगा और एक नई सामाजिक पूंजी की अवधारणा भी खड़ी करेगा। भारत की जनता के स्वभाव में सहकारिता घुल मिल गई है, ये कोई उधार लिया विचार नहीं है। भारत में सहकारिता आंदोलन कभी भी अप्रासंगिक नहीं हो सकता। देश के विकास में सहकारिता मंत्रालय मोदीजी के मार्गदर्शन और शाहजी के नेतृत्व मे बहुत महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। हर गांव को कॉ-ऑपरेटिव के साथ जोड़कर, सहकार से समृद्धि के मंत्र साथ हर गांव को समृद्ध बनाना और उसके बाद देश को समृद्ध बनाना, यही सहकार की भूमिका होती है जिसके लिए रात-दिन मोदीजी कार्यरत है।

भारत के संस्कारों में सहकारिता है

1904 से अब तक सहकारिता ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। श्री अमित शाह 25 साल तक सहकारिता आंदोलन से जुड़े रहे हैं। देश पर जब-जब कोई विपदा आई है, सहकारिता आंदोलनों ने देश को बाहर निकाला है। कॉपरेटिव बैंक बिना मुनाफे की चिंता किए लोगों के लिए काम करते हैं क्योंकि, भारत के संस्कारों में सहकारिता है। आज देश में लगभग 91% गांव ऐसे हैं जहां छोटी-बड़ी कोई न कोई सहकारी संस्था काम करती है। दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं होगा जिसके 91% गांव में सहकारिता उपस्थित हो। देश के लगभग 36 लाख परिवार किसी न किसी रूप में सहकारिता से सीधे जुड़े हुए हैं। सहकारिता

सहकारिता आंदोलन भारत के ग्रामीण समाज की प्रगति करेगा और एक नई सामाजिक पूंजी की अवधारणा भी खड़ी करेगा। भारत की जनता के स्वभाव में सहकारिता घुल मिल गई है, ये कोई उधार लिया विचार नहीं है। भारत में सहकारिता आंदोलन कभी भी अप्रासंगिक नहीं हो सकता

गरीबों, किसानों और पिछड़ों के विकास के लिए है। सहकारिता मंत्रालय कॉ-ऑपरेटिव संस्थाओं को मजबूत करने, उन्हें आगे बढ़ाने, उन्हें आधुनिक बनाने, उन्हें पारदर्शी बनाने, उन्हें प्रतिस्पर्धा में टिके रखने के लिए ही बनाया गया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने ‘सहकार से समृद्धि’ का मंत्र दिया है

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘सहकार से समृद्धि’ का मंत्र दिया है। प्रधानमंत्रीजी के नेतृत्व में सहकारिता क्षेत्र भी देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपना अहम योगदान दे रहा है। सहकारिता आंदोलन के प्रणेता रहे माधव राव गोडबोले, बैकुंठ भाई मेहता, त्रिभुवन दास पटेल, विठ्ठलराव विखे पाटील, यशवंत राव चौहान, धनजय राव गाडगिल, लक्ष्मण रावजी जैसे महानुभावों का स्मरण करते हुए सहकारी संस्थाओं के योगदान को भी हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। आज अमित भाई के नेतृत्व में सहकारिता मंत्रालय के माध्यम से देश के विकास की गति को नई दिशा और दशा देने का कार्य लगातार तेजी के साथ हो रहा है। इफको ने हरित क्रांति को एक नई दिशा देने का काम किया। उसी प्रकार अमूल व लिज्जत सहकारिता के दो आयाम हैं। अमूल ने वह करके दिखाया जो बड़े-बड़े कॉर्पोरेट नहीं कर सके।

सरदार पटेल की दूरदर्शिता को धरातल पर चरितार्थ कर रहे हैं प्रधानमंत्री

अमूल का उदय लौहपुरुष सरदार पटेल की दूरदर्शिता के कारण संभव हुआ। 1946 में जब अंग्रेजों ने यह फैसला किया कि किसानों को अपना सारा दूध एक प्राइवेट कंपनी को देना होगा, तब इसके खिलाफ एक आंदोलन की शुरुआत हुई। आज अमूल हम सबके सामने है। 2020-21 में अमूल का टर्नओवर 53 हजार करोड़ रुपये को पार कर गया है। इससे लगभग 36 लाख किसान जुड़े हैं। इसने विशेष तौर पर महिलाओं का सशक्तीकरण का काम किया है। पटेलजी की सहकारिता के क्षेत्र में जो दूरदर्शिता थी, उसको मोदीजी व अमित शाहजी जमीन पर ले जाकर चरितार्थ करने का अविस्मरणीय कार्य कर रहे हैं, जिससे देश आने वाले समय में सहकारिता के माध्यम से भी अनेक एतिहासिक आयाम करने का भी कार्य करेगा। अमूल से जहां देश के करोड़ों किसान जुड़े हुए हैं तो लिज्जत पापड़ से महिलाओं को रोजगार मिला है। अमूल और लिज्जत आज सफल हैं तो इसमें महिलाओं का सबसे बड़ा योगदान है, उनकी सबसे बड़ी साझेदारी है।

1967 में 57 कोऑपरेटिव के साथ एक सोसाइटी बनाई गई इफ्को आज 36,000 से भी ज्यादा कोआपरेटिव को साथ लेकर चल रही है। लगभग 5.5 करोड़ किसान को इसका लाभ मिल रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं एक बड़ी कंपनी कुछ भी कमाती है तो वह इसके मालिक को जाती है लेकिन इफ्को जो भी आय अर्जित करती है, उसकी पाई-पाई लगभग 5.5 करोड़ किसान को जायेगी, इसी को तो कोऑपरेटिव कहते हैं। आज इफ्को देश के लिए लगभग-लगभग उर्वरकों की पूरी जिम्मेदारी उठाती है। आज हम उर्वरक के मामले में आत्मनिर्भर बन रहे है और भविष्य मे हमें उर्वरकों का भी आयात नहीं करना पड़ेगा। उसी प्रकार क्रिपको 9 हज़ार 500 समितियों का बना हुआ ये संगठन एक साल में लगभग 2,000 करोड़ रुपये से अधिक लाभांश दे रही है। आज मोदीजी सहकारिता के माध्यम से छोटे किसानों को सशक्त बना रहे हैं।

आज देश में 8 लाख 55 हज़ार से ज्यादा रजिस्टर्ड समितियां हैं। 8.5 लाख से ज्यादा क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी हैं। लोन न देनेवाली सहकारी समितियों की संख्या 60 लाख से अधिक है। राष्ट्रीय सहकारिता समिति 17 से अधिक हैं। राज्य स्तरीय सहकारी बैंकों की संख्या 33 हैं और जिला स्तरीय सहकारी बैंकों की संख्या 363 हैं। लगभग 95 हजार में से 63 हजार पैक्स काम कर रहे हैं। एक तरह से देखें तो हर दसवें गांव में एक पैक्स है, यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। पैक्स किसानों के कल्याण का एक सशक्त माध्यम है, इसलिए पैक्स को मजबूत करना मोदी सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता है। आज देश में कृषि ऋण का 29 प्रतिशत वितरण सहकारिता बैंकों के माध्यम से किया जाता है, 35 प्रतिशत उर्वरक वितरण इनके माध्यम से हो रहा है, 30 प्रतिशत सहकारी संस्थाएं उर्वरक का उत्पादन कर रही हैं, देश की कुल चीनी की लागत का 31 प्रतिशत उत्पादन इन समितियों के माध्यम से हो रहा है। दुग्ध की खरीदी और उत्पादन 20 प्रतिशत, गेहूं की खरीदी 13 प्रतिशत, धन की खरीदी 20 प्रतिशत और मछुआरा के क्षेत्र में भी 21 प्रतिशत कार्य सहकारी समितियां करती हैं। अब वह समय आ गया है कि जब अमित शाहजी के नेतृत्व मे सहकारिता मंत्रालय नए लक्ष्य तय करने के साथ ही साथ इस पर एक मजबूत इमारत खड़ी कर रहा है।

सहकारिता का महत्त्व

• यह उस क्षेत्र को कृषि ऋण और धन प्रदान करता है जहां राज्य तथा निजी क्षेत्र की पहुंच अप्रभावी है।
• यह कृषि क्षेत्र के लिये रणनीतिक इनपुट प्रदान करता है, जिससे उपभोक्ता रियायती दरों पर अपनी

पिछले 9 वर्षों में किसानों की उपज को एमएसपी पर खरीदकर 15 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा दिए गए हैं। सरकार कृषि और किसानों पर हर साल करीब 6.5 लाख करोड़ रुपए खर्च कर रही है। हर साल सरकार हर किसान तक औसतन 50 हजार रुपए पहुंचा रही है

आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
• यह उन गरीबों का एक संगठन है जो सामूहिक रूप से अपनी समस्याओं का समाधान करना चाहते हैं।
• यह वर्ग संघर्षों और सामाजिक दूरियों को कम करता है।
• यह नौकरशाही की बुराइयों और राजनीतिक गुटबाज़ी को कम करता है।
• यह कृषि विकास की बाधाओं को दूर करता है।
• यह लघु और कुटीर उद्योगों के लिये अनुकूल वातावरण तैयार करता है।

सहकारिता एवं किसान कल्याण

आज किसान को एक यूरिया बैग के लिए करीब 270 रुपए चुकाने पड़ रहे हैं। बांग्लादेश में इसकी कीमत 720 रुपए, पाकिस्तान में 800 रुपए और चीन में 2100 रुपए है। पिछले 9 सालों में भाजपा सरकार ने उर्वरक सब्सिडी पर 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए हैं।

पिछले 9 वर्षों में किसानों की उपज को एमएसपी पर खरीदकर 15 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा दिए गए हैं। सरकार कृषि और किसानों पर हर साल करीब 6.5 लाख करोड़ रुपए खर्च कर रही है। हर साल सरकार हर किसान तक औसतन 50 हजार रुपए पहुंचा रही है। भाजपा सरकार में किसानों को अलग-अलग तरह से हर साल 50 हजार रुपए मिलने की गारंटी है। भाजपा सरकार ने फर्टिलाइजर सब्सिडी पर 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए हैं।

मोदीजी सहकारिता को ताकत दे रहे

प्रधानमंत्री मोदीजी के नेतृत्व में आज हमारा देश विकसित और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य पर काम कर रहा है। मोदीजी ने लालकिले से कहा था कि हमारे हर लक्ष्य को हासिल करने के लिए सबका प्रयास आवश्यक है। आज हम दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादक हैं, तो इसका श्रेय डेयरी सहकारी समितियों को और मोदी सरकार को दिया जा सकता है। भारत चीनी के सबसे बड़े उत्पादकों में से है, तो इसका श्रेय भी मोदी सरकार और सहकारी समितियों को जाता है। जब विकसित भारत के लिए बड़े लक्ष्यों की बात आई, तो मोदीजी ने सहकारिता को ताकत देने का फैसला किया। मोदी सरकार ने पहली बार सहकारिता के लिए अलग मंत्रालय बनाया, अलग बजट का प्रावधान किया। आज को-ऑपरेटिव को कार्पोरेट सेक्टर जैसी सुविधाएं मिल रही हैं। सहकारी समितियों की ताकत बढ़ाने के लिए उनके लिए टैक्स की दरों को भी कम किया। सरकार ने सहकारी बैंकों को भी मजबूती दी है।

(लेखक भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)