एक बार में तीन तलाक की प्रथा खत्म

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सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय

मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन-तलाक प्रथा से पीड़ित उत्तराखंड की शायरा बानो ने सर्वोच्च न्यायालय से भारतीय संविधान के तहत अपने अधिकार के संरक्षण की गुजारिश की थी। इससे सर्वोच्च न्यायालय के सामने यह मुद्दा आया कि क्या एक ही झटके में तीन बार बोलकर तलाक देने की रवायत मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है? इसके बाद से यह मुद्दा जोर पकड़ने लगा। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषणों में लगातार तीन तलाक का मुद्दा उठाया। गत स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से अपने संबोधन में श्री मोदी ने कहा, “पूरे देश में तीन-तलाक के खिलाफ एक माहौल बना है। मैं इस आंदोलन को चलाने वाली बहनों को, जो तीन-तलाक के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं, हृदय से उनका अभिनदंन करता हूं और मुझे विश्वास है, कि माताओं-बहनों को अधिकार दिलाने में, उनकी इस लड़ाई में देश उनकी पूरी मदद करेगा।”

गत 22 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुसलमानों में 1400 वर्षों से प्रचलित एक बार में तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत के चलन को असंवैधानिक करार देकर निरस्त कर दिया। कोर्ट ने तीन-दो के बहुमत से निर्णय देते हुए कहा कि एक साथ तीन तलाक संविधान में दिए गए बराबरी के अधिकार का हनन है। तलाक-ए-बिद्दत इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे संविधान में दी गई धार्मिक आजादी (अनुच्छेद 25) में संरक्षण नहीं मिल सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने शरीयत कानून 1937 की धारा-2 में एक बार में तीन तलाक को दी गई मान्यता निरस्त कर दी।

इस दूरगामी प्रभाव वाले फैसले का सीधा असर यह होगा कि अब भारत में कोई भी शौहर अपनी बीवी को मनमाने ढंग से तलाक-तलाक-तलाक कह कर नहीं छोड़ पाएगा। मुस्लिम महिलाओं के मन में तलाक को लेकर बैठा भय खत्म होगा।

न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और न्यायमूर्ति यूयू ललित ने बहुमत से फैसला सुनाते हुए एक बार में तीन तलाक को असंवैधानिक और मनमाना ठहराते हुए निरस्त कर दिया, जबकि प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर व न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर ने अल्पमत से फैसला देते हुए कहा कि तलाक-ए-बिद्दत मुस्लिम पर्सनल लॉ का हिस्सा है और इसे संविधान में मिली धार्मिक आजादी (अनुच्छेद 25) में संरक्षण मिलेगा, कोर्ट इसे निरस्त नहीं कर सकता। फैसला देने वाले विभिन्न न्यायाधीशों के बीच मतभिन्नता को देखते हुए बाद में प्रधान न्यायाधीश ने तीन न्यायाधीशों के बहुमत के फैसले को लागू करते हुए तलाक-ए-बिद्दत के प्रचलन को खारिज घोषित किया।

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला ऐतिहासिक है। इससे मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हक मिलेगा। यह महिला सबलीकरण की ओर शक्तिशाली कदम है।
– नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री

यह न्यू इंडिया की ओर कदम है। मुस्लिम महिलाओं के लिए स्वाभिमान और समानता के नए युग की शुरुआत है।
– अमित शाह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष