अर्जुन राम मेघवाल
नारी शक्ति वंदन अधिनियम पर लेख
लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी उल्लेखनीय बदलाव के लिए सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय विशेष महत्व रखता है। यह समावेशी बदलाव लाने की सामूहिक भावना को दर्शाता है। आज जब भू-राजनीतिक परिदृश्य अनेक संदर्भों में भारी उथल-पुथल का सामना कर रहा है, तब अभी हाल में लोकतंत्र की गौरवमयी जननी भारत के मुकुट में एक और रत्न जुड़ गया है।
महिलाओं द्वारा राष्ट्र के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए लंबे समय से की जा रही मांग को पूरा करने के लिए मोदी सरकार ने नारी शक्ति वंदन विधेयक को संसद में पारित कराया। केंद्र और राज्य स्तर पर प्रतिनिधि संस्थानों में महिलाओं की उचित भागीदारी निर्धारित करने वाले महिला आरक्षण विधेयक को नारी शक्ति वंदन अधिनियम के रूप में लागू होते हुए देखने के लिए इस देश की महिलाओं ने 27 वर्षों तक लंबा इंतजार किया।
नारी शक्ति आधी आबादी का हिस्सा है। उसकी लोकतांत्रिक प्रतिनिधि संस्थानों में हिस्सेदारी न्यूनतम थी और यह स्थिति प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध थी। बाध्यकारी सामाजिक मान्यताओं ने निर्णय की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी को सीमित कर दिया था तथा समाज द्वारा लिए गए निर्णयों का अनुपालन करने के लिए वह काफी हद तक बाध्य कर दी गई थी। इन चुनौतियों के बीच इस दृष्टिकोण के विरोध में अनेक अपवाद सामने आए। महिलाएं अपने पर थोपी गईं बाध्यकारी वर्जनाओं से बाहर निकलीं।
महिलाओं ने हर क्षेत्र में देश को गौरवान्वित किया है। अब मोदी सरकार ने इस नैतिक कर्तव्य को सम्मानपूर्वक प्राथमिकता दी तथा शीर्ष निर्णयकर्ता के रूप में महिलाओं की भूमिका को मान्यता देकर एक ऐतिहासिक गलती को दुरुस्त करने की दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई। विधायी क्षेत्र में ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ द्वारा प्रस्तावित लैंगिक न्याय महिलाओं के सम्मान को समग्र रूप में बल प्रदान करेगा तथा इससे संतुलित नीति निर्माण के लिए आदर्श परिस्थिति सृजित होगी।
यह एक विडंबना, परंतु सत्य है कि अमेरिका को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महिलाओं को समान मतदान का अधिकार देने में 144 साल लग गए। ब्रिटेन में महिलाओं को मताधिकार उनके द्वारा दशकों तक लड़ाई लड़ने तथा पहले विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों में दिया गया। हमारे पूर्वज दूरदर्शी थे और उन्होंने आजादी के तुरंत बाद महिलाओं के लिए मतदान का अधिकार सुनिश्चित किया।
अब देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष पूरे होने पर भारत ने महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व का अधिकार भी सुनिश्चित किया है। बाबा साहब डा. भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा में 25 नवंबर, 1949 को दिए गए अपने भाषण में यह पूछा था कि आखिर कब तक हम विरोधाभासों का यह जीवन जीते रहेंगे। इस अवसर पर उन्होंने देश को सामाजिक तथा आर्थिक असमानताओं के प्रति आगाह किया था। पिछले नौ वर्षों के दौरान मोदी सरकार द्वारा देश के निर्धन वर्ग के लोगों तथा आम जनता के कल्याण को ध्यान में रखकर लागू की जा रही नीतियों से उन विरोधाभासों को समाप्त किया जा रहा है। यह उल्लेखनीय है कि इस दौरान देश के 13.5 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी से बाहर आए हैं।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम एक व्यक्ति, एक वोट तथा एक मूल्य की भावना को साकार करने की दिशा में उठाया गया एक और कदम है। महिलाओं में मौजूद दृढ़ता, रचनात्मकता, त्याग, ममता, करुणा, दया, समर्पण तथा विश्वास जैसे सहज गुण उन्हें नेतृत्व करने की विशिष्ट क्षमता प्रदान करते हैं।
इसके लिए उन्हें शीर्ष प्रबंधन स्कूलों एवं विश्वविद्यालयों से नेतृत्व पाठ्यक्रम प्रमाणपत्र लेने की आवश्यकता नहीं है। बस आवश्यकता इस बात की होती है कि उन्हें उनका उचित स्थान दिया जाए। ऐसा करने मात्र से ही उनकी क्षमता निर्माण को व्यापक बल मिलेगा और वे दूसरों द्वारा अनुकरण के लिए एक आदर्श माडल भी बनेंगी।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम मोदी सरकार के लिए कोई राजनीतिक कदम नहीं, बल्कि यह विश्वास का प्रतीक है। संसद का विशेष सत्र बुलाना तथा सर्वसम्मति-आधारित निर्णय के लिए सभी राजनीतिक दलों को राजी करना एक कठिन कार्य था। पहले इस नेक काम का विरोध करने वाले कुछ राजनीतिक दलों का इस विधेयक के लिए सहमत होना उनकी इच्छा से नहीं हुआ, बल्कि ऐसा करना उनकी राजनीतिक मजबूरी बन गई थी।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम लागू होने पर लोकसभा एवं विधानसभा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का अनुपात वर्तमान के 15 प्रतिशत से बढ़कर 33 प्रतिशत हो जाएगा। इस प्रकार हमारे देश के लोकतांत्रिक संस्थानों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का प्रतिशत वैश्विक औसत (26.7 प्रतिशत) को पार कर जाएगा तथा दुनिया के कई विकसित राष्ट्रों की तुलना में काफी अधिक होगा। ऐसे उपायों को लागू करने से 21वीं सदी में देश को महिलाओं के नेतृत्व में प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के संदर्भ में राष्ट्र के दृष्टिकोण में एक नया बदलाव आएगा।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम के प्रविधानों को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत पूर्व अपेक्षित संवैधानिक बाध्यता यह है कि महिलाओं के नेतृत्व वाले निर्वाचन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए पहले जनगणना तथा परिसीमन से संबंधित कार्य पूरे किए जाएं। मोदी सरकार संविधान की इस भावना के अनुरूप इस अधिनियम को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। तथापि बदलाव की आहट अभी से पूरे देश में महसूस की जाने लगी है। वर्तमान समाज की पुरुष प्रधान मानसिकता में तेजी से बदलाव आ रहा है। आइए! हम सब मिलकर विकसित भारत के निर्माण के लिए नारी शक्ति नेतृत्व के इस उज्ज्वल युग का स्वागत करें।
[लेखक केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं]