पूरे देश में एक जैसी टैक्स प्रणाली होगीः अरुण जेटली

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लोक सभा में जीएसटी पर चर्चा

केंद्रीय वित्त मंत्री, कॉर्पोरेट कार्य मंत्री तथा रक्षा मंत्री श्री अरुण जेटली ने लोक सभा में 29 मार्च को जीएसटी से संबंधित चार विधेयक प्रस्तुत किए। दिन भर सारगर्भित चर्चा के दौरान सांसदों ने जीएसटी से जुड़े मुद्दों पर गंभीर चर्चा की। विधेयक प्रस्तुत करते समय और चर्चा के बाद श्री जेटली ने जीएसटी की कई महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डाला। यहां प्रस्तुत है उनके द्वारा कही गई बातों का सारांश—

वित्त मंत्री, कॉर्पोरेट कार्य मंत्री तथा रक्षा मंत्री श्री अरुण जेटली ने विधेयकों पर विचार किए जाने के प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए लोक सभा में 29 मार्च को कहा कि केन्द्रीय माल और सेवा कर विधेयक, 2017, एकीकृत माल और सेवा कर विधेयक, 2017, माल और सेवा कर (राज्यों को प्रतिकर) विधेयक, 2017 और संघ राज्य क्षेत्र माल और सेवा कर विधेयक, 2017 महत्वपूर्ण चार विधेयक हैं जिनको संयुक्त रूप से इसलिए लिया जा रहा है कि इनका सब्जैक्ट मैटर और संदर्भ एक जैसे हैं। संविधान के 101 वें संशोधन से पूर्व इस देश में जो अप्रत्यक्ष कर प्रणाली थी, वह प्रणाली आज भी चली आ रही है और इस वर्ष 15 सितम्बर तक चलेगी, उसके तहत कुछ टैक्सेज केन्द्र को लगाने का अधिकार था, कुछ टैक्सेज राज्यों को लगाने का अधिकार था। परन्तु इन विधेयकों का उद्देश्य है कि जितने भी गुड्स और सर्विसेज हैं, पूरे देश के अंदर उनका आवागमन हो पाएगा। पूरे देश में एक जैसी टैक्स प्रणाली होगी तथा एक असैसी का इंटरफेस केवल एक असैसिंग अथारिटी के साथ होगा और उसमें से जो टैक्स निकलेगा, वह केन्द्र और राज्य आपस में बांट लेंगे। यह व्यवस्था पहले की व्यवस्था से थोड़ा भिन्न है। यह भिन्न इसलिए है कि हम विधि द्वारा केन्द्र और राज्य दोनों के लिए एक साथ एक क्षेत्राधिकार सृजित कर रहे हैं और इस प्रक्रिया में हम अप्रत्यक्ष कर प्रशासन की जिम्मेदारी एक ऐसी प्रथम संघीय संस्था को सौंप रहे हैं जिसकी स्थापना भारत द्वारा की गई है और जिसमें केन्द्र और राज्य दोनों प्रतिभागी होंगे। इस संबंध में माल और सेवा कर परिषद ने सर्वसम्मति से पांच कानूनों के संबंध में अपनी सिफारिश भेजी है, जिसमें चार संसद के सामने आएंगे और एक हर राज्य की विधान सभा और दो यूनियन टेरिटरिज, जिनमें विधान सभाएं हैं, उनके सामने आएगा। पहला कानून है, संेट्रेल जीएसटी लॉ जिसके अंतर्गत गुड्स एंड सर्विसेज के ऊपर जो टैक्स लगेगा उसे इंटीग्रेट करना, कर की ऊपरी सीमा तय करना, टैक्स को इकट्ठा करना आदि सम्मिलित है।

दूसरा कानून एसजीएसटी लॉ है, जो केन्द्र के सामने नहीं आएगा बल्कि 31 विधान सभाओं के सामने जाएगा, जो सेंट्रल लॉ का एक प्रकार से मिरर इमेज होगा कि हर राज्य में जीएसटी किस प्रकार से लगेगा। तीसरा कानून इंटीग्रेटिड जीएसटी है, जो एक राज्य से दूसरे राज्य में, एक यूनियम टेरिटरी से दूसरी टेरिटरी में अगर कोई ट्रांजेक्शन होता है, तो उस संबंध में जो इंटर स्टेट ट्रेड के ऊपर टैक्स लगता है, वह उसका संचालन करेगा। चौथा कानून यूनियन टेरिटरी जीएसटी लॉ है जो एक प्रकार से सीजीएसटी लॉ है, क्योंकि यह उसके प्रावधानों को इनकारपोरेट कर लेता है और उन्हें यूनियन टेरिटरीज के ऊपर लागू करता है। पांचवां और अंतिम कानून उस व्यवस्था से संबंधित है जिसके अंतर्गत उस राज्य को मुआवजा प्रदान करने का उपबंध किया गया है, जिसे इसमें घाटा होता है। ऐसे राज्यों को मुआवजा प्रदान करने के लिए मुआवजा उपकर का प्रावधान किया गया है जिसमें लग्जरी आइटम्स पर 28 प्रतिशत से अधिक की कराधान राशि सम्मिलित होगी। इसके अतिरिक्त माल और सेवा कर परिषद भारत की ऐसी प्रथम संघीय संस्था है जिसमें अप्रत्यक्ष करों के परिप्रेक्ष्य में केन्द्र और राज्यों की संप्रभुता एक साथ संग्रहीत की गई है। अतः भारत की पहली संघीय संस्था स्थापित करने के लिए हम सभी के लिए यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि यह संघीय संस्था कार्य करे। इसलिए मुझे उम्मीद है कि हम उस संबंध में नाजुक संतुलन को बनाए रखने के लिए कटिबद्ध हैं। इन्हीं कुछ शब्दों के साथ मैं इस विधि को सदन के विचारार्थ संस्तुति करता हूं।

वित्त मंत्री, कॉर्पोरेट कार्य मंत्री तथा रक्षा मंत्री (श्री अरुण जेटली) ने चर्चा का उत्तर देते हुए कहा कि एक बार यह विधेयक अधिनियम बन जाये और लागू हो जाये तो भारत की कर प्रणाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। हमारी वर्तमान प्रणाली में अनेक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर हैं तथा अनेक कर निर्धारण अधिकारी हैं। आज आर्थिक गतिविधियां बदल रही हैं, क्योंकि प्रकृति से ऐसे अनेक कर मिल रहे हैं। यद्यपि, 1947 में हम एक राष्ट्र बन गए, भारत में अनेक आर्थिक क्षेत्र रहे हैं। प्रत्येक राज्य की अपनी कर और कर दरें रही हैं जिसके कारण बहुत से आर्थिक स्रोत गुम हो गए हैं। देश में वस्तु और सेवाओं का निर्बाध प्रवाह नहीं है। जीएसटी का उद्देश्य एक कर लगाना है जिसके द्वारा एक करदाता को एक अधिकारी के साथ केवल एक इंटरफेस हो। इसको अधिक सक्षम कर बनाना चाहिए, जिसका उल्लंघन करना आसान न हो ताकि इसका अनुपालन ज्यादा से ज्यादा किया जा सके। भारत के संविधान द्वारा केन्द्रीय सूची, राज्य सूची और संवर्धित सूची के माध्यम से केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। यदि केन्द्र इसका उपयोग करता है तो उसी शक्ति काम करती है। शक्तियों के बंटवारे में कोई ग्रे क्षेत्र नहीं था।

वास्तव में, जीएसटी का विचार ग्रे क्षेत्र दिया। ग्रे क्षेत्र यह है कि आपके पास एक कर है जिसे केन्द्र और राज्यों के द्वारा सम्मिलित रूप से लगाया जाएगा। यह एक कर होगा। केन्द्र और राज्य अपने सभी करों को उस एक कर में मिला देंगे। एक कर में केन्द्र और राज्यों की शक्ति बनी रहेगी। केन्द्र और राज्यों के बीच में संप्रभुता साझा की जाती है। हमने भारत का पहला संघीय निर्णय लेने वाला प्राधिकरण बनाया है। पूलकृत संप्रभुता के द्वारा केन्द्र और राज्य मिलकर निर्णय करेंगे कि कर दर क्या हों, कानून कैसा हो और इनको लागू कैसे किया जाए। आज, हमारे यहां करों के ऊपर कर हैं, जिससे वस्तुएं महंगी हो गयी हैं। यदि एक बार इनको हटा दिया जाए तो वस्तुएं सस्ती हो जायेंगी। कानून बनाने और दरें लागू करने की सिफारिश परिषद् करेगी। इस अधिनियम के अंतर्गत जीएसटी परिषद् कर की दरों के निर्धारण की सिफारिश करेगी। जीएसटी परिषद् को आदर्श विधि की बाबत सिफारिश करने की शक्ति अनुच्छेद 279(क) से प्राप्त हुई है। इस बारे में संसदीय नियंत्रण होगा। वार्षिक वित्तीय विवरणों और वित्त विधेयक में शामिल हुए कर की दरों पर राज्य विधायिका का नियंत्रण होगा। सामान्यतः इन सिफारिशों को माना जाना चाहिए और यदि ये नहीं मानी जाती हैं, तो इन्हें पुनर्विचार हेतु वापस भेजा जायेगा। इस प्रकार अनुच्छेद 246(क) और अनुच्छेद 279(क) को उनकी सामंजस्यता के साथ पढ़ा जाये। अतः अनुच्छेद 265 जिस विधि के प्राधिकार की बात करता है, वह प्राधिकार अनुच्छेद 246(क) के तहत बने कानून को प्राप्त है, जिसे संसद और राज्य विधायिकायें जीएसटी परिषद् की सिफारिशों पर अनुमोदित करेंगी। इस तरह अनुच्छेद 265 के अनुरूप इसे विधि का प्राधिकार है। सरकार ने राज्यों को क्षतिपूर्ति के लिये कराधान फार्मूला के स्थान पर उपकर का फार्मूला अपनाया है। यदि सरकार ने कराधान का फार्मूला अपनाया होता, तो करों के जरिये क्षतिपूर्ति के वित्तपोषण के लिये कुल कर प्रभाव अस्वाभाविक रूप से बहुत अधिक होता। केन्द्र सरकार को क्षतिपूर्ति के वित्त पोषण को 50,000 करोड़ रुपये जुटाने के लिये 1.72 लाख करोड़ रुपये का कर लगाना पड़ता। इस फार्मूला में उपभोक्ताओं पर कोई अतिरिक्त कर बोझ नहीं पड़ेगा। यह अस्थायी रूप से 5 वर्षों के लिये है, ताकि संबंधित क्षतिपूर्ति के भुगतान के लिये इसका प्रयोग किया जाएगा। कुछेक माननीयों ने यह प्रश्न उठाया है कि यह धन विधेयक क्यों है। यह विधेयक केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विधि, सेवा कर विधि, मूल्यवर्धित कर विधि तथा अनेक अन्य कराधन विधियों के स्थान पर लाया गया है।

यह इन सबों की एक समेकित विधि है। संविधान की धारा 110 के अंतर्गत अगर किसी विधेयक द्वारा कराधान का आरोपन होता है तो वह धन विधेयक है। कुछ सदस्यों को मुनाफा अर्जन रोधी खंड के विचार पर कुछ आपत्ति थी। मुनाफा अर्जन रोधी खंड वही है जिसमें यह प्रावधान किया गया है कि कोई भी व्यक्ति कराधान के कारण अनुचित रूप से समृद्ध नहीं हो सकता। अतः यदि किसी व्यक्ति को कर में छूट मिलती है उसे उपभोक्ता तक पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए। इस विधेयक में यही मुनाफा अर्जन रोधी खंड है। मोइली साहब ने जो तर्क दिया, वह बिल्कुल सही तर्क था कि रियल स्टेट में भी कर चोरी होती है। अतः रियल स्टेट को भी जीएसटी में लाने का प्रयास करना चाहिए। जैसाकि मैंने कहा कि यह फेडरल बॉडी है और इसमें राज्यों को साथ लेकर चलना है तो राज्यों को इस बात की आशंका थी कि अगर इसमें रियल स्टेट आ गया तो राज्यों को स्टाम्प डयूटी कलेक्शन वगैरह पर इसका असर पड़ेगा। तत्पश्चात्, मुख्य आर्थिक सलाहकार ने एक पत्र तैयार किया जिसमें यह लिखा गया राज्य स्टाम्प डयूटी और अन्य राजस्व जिसे वे इस माध्यम से प्राप्त करते हैं, अपने पास रख सकते हैं। दिल्ली के वित्त मंत्री ने परिषद के समक्ष एक विस्तृत प्रस्तुति पेश की जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि रियल स्टेट को भी शामिल किया जाए। उनकी बात एवं उनके अभ्यावेदन सुनने के पश्चात् परिषद ने निर्णय किया। ‘जीएसटी को लागू होने दीजिए। पहले ही वर्ष हम इस बात पर विचार करेंगे कि रीयल स्टेट को इसके अंदर लायें अथवा नहीं।’ यही स्थिति पेट्रोलियम उत्पादों एवं सेवन/खपत किये जाने वाले अल्कोहल की है।

राज्यों का कहना था हमारा इसमें बड़ा रिवेन्यू है और हम पेट्रोलियम उत्पाद तथा अल्कोहल पर सहमत नहीं हो सकते। चर्चा के बाद हमने राज्यों को राजी किया कि चलिए, हम अल्कोहल को नहीं छूते हैं, लेकिन पेट्रोलियम को जीएसटी के संविधान संशोधन विधेयक में लाने दीजिए। आज पेट्रोलियम संवैधानिक रूप से जीएसटी के अंतर्गत है, परंतु इसकी जीएसटी शून्य दर वाली है।

एक बार जीएसटी का प्रयोग आगे बढ़ जाये, तो परिषद को संविधान में संशोधन के बिना यह अवसर मिलेगा कि पेट्रोलियम उत्पादों के बारे में क्या निर्णय लिया जाये। कई ऐसे विषय हैं जिनको लेकर काउंसिल व राज्यों में शंकाएं थीं। अभी तक जिस तरह से काउंसिल चली है, उसको देखकर मैंने भी यह उपयुक्त समझा है कि जिन-जिन निर्णयों पर आम राय बन जाय, उसी पर हम निर्णय लेते हैं। राजस्व सेवा की समीक्षा थी कि जहां तक आईजीएसटी का प्रश्न है, यह पूर्णतः केंद्र द्वारा शासित है। उन्होंने संविधान को उद्धृत करते हुए बताया तथा यह तथ्य भी है कि यदि दो राज्यों के बीच कोई विवाद हो तो दोनों में से कोई राज्य अधिनिर्णायक नहीं होगा। इस पर विस्तृत चर्चा हुई और आम राय पर हम एक नतीजे पर पहुंचे। यदि आप संविधान के अनुच्छेद 258 को देखें, यदि केन्द्र को कराधान संबंधी कोई कार्य करना है, जो कि आईजीएसटी के अधीन है हम संविधान के अंतर्गत निर्वाह कर सकते हैं। केन्द्र इस शक्ति को किसी एक राज्य को प्रत्यायोजित करने के लिये अधिकृत है।

अनेक क्षेत्रीय राजनीतिक दल जिसमें पश्चिमी बंगाल सरकार भी शामिल है, इस शक्ति को राज्यों के साथ ही बांटने हेतु बहुत सजग है और चाहती है कि यह शक्ति केवल केन्द्र के हाथों में न हो। काउंसिल ने एक वैकल्पिक दृष्टिकोण अपनाया। मैंने भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक के साथ एक बैठक की और उनको संप्रेषित किया कि आपके अधिकार और शक्तियां गैर चुनौतीपूर्ण और अपरिवर्तनीय रहेंगे, परंतु आपकी शक्ति के स्रोत संविधान और अधिनियम में निहित होंगे। यह क्षेत्राधिकार बना रहेगा। अगर आपने कांट्रेक्ट लेबर हायर किया है, लेकिन इसका अर्थ यही नहीं है कि जिसको आप एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट मानते हैं जिनका अभी आप जिक्र कर रहे हैं उन पर टैक्स लगेगा। वे प्रोडक्ट्स अभी भी जीरो रेटेड रह सकते हैं और आप भी इसको इसी दृष्टि से देखिये। मुझे लगता है कि इसमें कोई कन्फ्यूजन नहीं है, क्योंकि ये प्रोड्क्टस जीरो रेटेड में रहने वाले हैं। बहु पंजीकरण से छूट के संबंध में खंड 148 के अंतर्गत एक ओवरराईडिंग शक्ति विद्यमान रखी गई है। केन्द्र सरकार इसके मूल्य निर्धारण नहीं करती, केवल इन दरों को अधिसूचित करती है। महोदया, यह काउंसिल एक स्थायी निकाय होगा और इस स्थाई निकाय में सभी राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे।