भारतीय संदर्भ में विकास की संकल्पना

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डॉ0 शिव शक्ति बक्सी

जनसंघ विचारक पं. दीनदयाल उपाध्याय ने 1958 में अपनी पुस्तक ‘द टू प्लांस : प्रॉमिसेस, परफॉर्मेंसेस एंड प्रॉस्पेक्ट्स’ में पंचवर्षीय योजनाओं पर शंका जाहिर की और कहा कि केंद्रीकृत आर्थिक योजनाएं लोकतंत्र के अनुरूप होनी चाहिए और योजनाओं का मूल सामाजिक अर्थशास्त्र पर आधारित हो। देश के वार्षिक बजट और तत्कालीन योजनाओं के बीच संबंधों जांच–पड़ताल के बाद उनका विचार था कि भारतीय समस्याओं का वास्तविक समाधान पश्चिमी देशों द्वारा विकसित किए गए राजनैतिक और आर्थिक मॉडल में शायद ही संभव हो। उनका विचार था कि देश का नया विकास मॉडल भारतीय वास्तविकता से मेल खाता हो, लेकिन ऐसा न हो सका। नेहरू ने विकास का ऐसा मॉडल विकसित किया, जो भारतीय परम्परा के अनुरूप न होकर पश्चिम द्वारा विकसित किए गए मॉडल से ज्यादा प्रभावित था। विकास का यह मॉडल कई दशकों तक प्रभावी रहा, जिसके कारण देश का वह विकास नहीं हो सका, जिसकी उम्मीद लोगों को थी। देश में गरीबी, अशिक्षा आदि का बोलबाला तो था ही, साथ ही तीव्र विकास के लिए जरूरी बिजली, सड़क और परिवहन जैसी आधारभूत संरचनाओं का समुचित विकास न हो सका। सच तो यह है कि योजना आयोग एक कर्मकांडी सरकारी संस्था बनकर रह गया। अंतत: 2017 में 12वीं पंचवर्षीय योजना का औपचारिक अंत हो गया। इसके स्थान पर नीति आयोग का गठन हुआ।

नीति आयोग का उद्देश्य है कि व्यापक लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु योजनाओं की निर्माण प्रक्रिया भारतीय वास्तविकता के दायरे में हो। नीति आयोग का कार्य तीन वर्षीय कार्य एजेण्डा (टीवाईएए), सप्तवर्षीय रणनीति और 15 वर्षीय दृष्टिपत्र का निर्माण करके देश के लिए वैकल्पिक आर्थिक संकल्पना प्रस्तुत करना है। यह अभी तक चली आ रही पश्चिम के आर्थिक मॉडल से प्रभावित नेहरू की अर्थ संरचना से बिल्कुल अलग है। दरअसल, नीति आयोग वर्ष 2017–18 और 2019–20 की अवधि के लिए नई नीति निर्माण हेतु टीवाईएए डाक्यूमेंट लेकर आया। यह दस्तावेज वर्तमान में प्रक्रियागत सप्तवर्षीय रणनीति और 15 वर्षीय दृष्टिपत्र की एक कड़ी है। व्यापक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु टीवाईएए में एक नई दृष्टि है। दस्तावेज 7 भागों और 24 अध्यायों में विभाजित है। यह वर्तमान संदर्भों में विकास की संकल्पना प्रस्तुत करता है। बेहतर वित्तीय प्रबंधन के साथ–साथ यह कृषि, उद्योग और सेवाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसका उद्देश्य किसानों की आय को दुगुनी करना और उद्योगों और सेवाओं में गुणवत्तापूर्ण रोजगार का निर्माण करना है। इसके साथ ही देश की अर्थव्यवस्था में तीव्र विकास करना भी इसका लक्ष्य है। टीवाईएए का ध्यान ग्रामीण भारत में आमूलचूल परिवर्तन लाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के विकास पर भी है। साथ ही नई रणनीति का निर्माण कर शहरी विकास पर भी काफी जोर दिया गया है। दस्तावेज में देश के विकास को बढ़ावा देने वाले अन्य कई महत्वपूर्ण बिन्दु भी हैं, जैसे–परिवहन, डिजिटल कनेक्टिविटी, पब्लिक–प्राइवेट पार्टनरशिप, ऊर्जा, विज्ञान व तकनीक और उद्यमशीलता। समावेशी समाज के निर्माण में टीवाईएए स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल विकास के महत्व को स्वीकार करता है। यह कर–प्रणाली, प्रतिस्पर्धा, कानून के शासन के साथ–साथ न्यायपालिका व पुलिस में व्यापक सुधार तथा कानून व व्यवस्था व अन्य अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करता है। टीवाईएए व्यापक स्थायी विकास की बात तो करता ही है, साथ ही यह पर्यावरण, वन और जल–प्रबंधन जैसे संवेदनशील मुद्दों की अनदेखी नहीं करता।

2022–23 तक किसानों की आय दुगुनी करना टीवाईएए का प्रमुख लक्ष्य है और इसकी प्राप्ति हेतु विस्तृत रणनीति और योजनाएं तैयार की जा रही हैं। यह बात जानते हुए भी भारत की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है, फिर भी कृषि को शायद ही कभी प्राथमिकता दी गई। अभी तक कृषि के विकास हेतु समुचित रणनीति और व्यावहारिक नीतियों का अभाव था। यद्यपि कृषि राज्य का विषय है, परन्तु वर्तमान अनुमान के अनुसार लगभग 45.7 प्रतिशत लोग का जीवन इस पर निर्भर है, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि केन्द्र सरकार केन्द्रीय योजनाओं के द्वारा इस क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाये। कृषि उत्पाद के आवागमन एवं विपणन जैसे अनेक विषयों जो विभिन्न राज्यों के सीमाओं से बंधे नहीं हैं, उसमें प्रभावी तालमेल एवं समायोजन की आवश्यकता रहती है। किसान अपने उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त करें, इसके लिये भी आवश्यक है वर्तमान कृषि विपणन व्यवस्था एवं सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम सटीक मूल्य की व्यवस्था में व्यापक सुधार हो। जहां न्यूनतम खरीद मूल्य की व्यवस्था में व्यापक सुधार हो। जहां न्यूनतम खरीद मूल्य केवल कुछ उत्पादों एवं सीमित भौगोलिक क्षेत्र में लागू होता है, वहीं कृषि विपणन व्यवस्था नीतिगत दोषों, बड़ी संख्या में बिचौलियों की मौजूदगी, कमजोर आधारभूत संरचना, एकीकरण तथा अधिकृत मंडियों की कमी का मार झेल रहा है। टीवाईएए ने ठीक ही कृषि उत्पाद विपणन समिति कानून तथा आवश्यक वस्तु कानून में सुधार पर जोर दिया है, साथ ही व्यवस्था को ठीक करने में ई–नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) की भूमिका को स्वीकार किया है। इन पहलों से देश में एक नई कृषि परितंत्र के निर्माण में सहायता मिलेगी।

कृषि विकास के ठहराव के संदर्भ में द्वितीय हरित क्रांति की जहां चर्चा होती है, वहीं उत्पादकता बढ़ाना एक बड़ी चुनौती है। एक ओर जहां भारत अनाज उत्पादन में आत्म–निर्भर दिखता है वहीं कई मायनों में विश्व स्तर की उत्पादकता प्राप्त करने का लक्ष्य अभी भी प्राप्त करना बाकी है। स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी तक केवल 40 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि पर दूसरी फसल लगाई जाती है और कुछ राज्यों में तो यह दर भाग 25 प्रतिशत ही है। टीवाईएए सिंचाई, तकनीक, बीज तथा फल, सब्जी, दूध अण्डा, मुर्गी पालन तथा मत्स्य पालन जैसे उच्च मूल्य उत्पादों की तरफ किसानों को मोड़कर उत्पादकता में वृद्धि पर जोर देती है। एक प्रभावी सिंचाई तंत्र विकसित करने में एक्सीलेरेटेड इरीगेशन बेनिफिट्स प्रोग्राम, हर खेत को पानी, पर ड्रॉप मोर क्रॉप तथा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत वाटरशेड विकास कार्यक्रम प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। टीवाईएए में एक व्यावसायिक, उत्साहवर्धक, बाजारोन्मुख, वैिश्वक प्रतिस्पर्धा में टिक सकने वाली कृषि अनुसंधान के लिए आधार तैयार करने की बात की गई है। बागवानी, दूध उत्पादन, मुर्गीपालन जैसी गतिविधियों से नििश्चत रूप से किसानों की आय में गुणात्मक वृद्धि होगी। परम्परागत तरीके की जोत–काश्तकारी, जमीन के पट्टे के रखरखाव की समस्या के निदान पर बल तथा कृषि के लिए पट्टे पर जमीन उपलब्ध करने के नवीन प्रस्ताव से कृषि क्षेत्र में उन्नत तरीके तथा तकनीक के उपयोग का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

तेजी से बदलते वैिश्वक परिदृश्य में टीवाईएए ने अनेक नीतिगत पहलों से विभिन्न क्षेत्रों को जोड़कर एक व्यापक योजना में बुनने का प्रयत्न किया है। गरीबी को इसके हर रूप में समाप्त करने के भारतीय लक्ष्य को प्राप्त करने में यह दस्तावेज केवल कृषि ही नहीं, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को एक नया आयाम दे रहा है। यह स्वीकार करना पड़ेगा कि कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तनों के बिना आने वाले दो–तीन वर्षों में आठ प्रतिशत से अधिक का विकास दर प्राप्त करना आसान नहीं होगा और जबकि टीवाईएए ने इस सच्चाई को स्वीकारा है तब इसमें कोई शंका नहीं होनी चाहिए कि अब देश के पास एक वैकल्पिक आर्थिक दृष्टि तथा आवश्यक नीतिगत ढांचा है। योजना के प्रति पूर्व के दृष्टिकोण से असहमत होते हुए पं0 दीनदयाल उपाध्याय का मत था कि केवल विकेंद्रित कृषि–उद्योग ग्रामीण समाज के भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हो सकती है। अब भी यह देखना बाकी है कि टीवाईएए, सप्तवर्षीय रणनीति एवं पंद्रह–वर्षीय दृष्टिपत्र एक दूसरे से कितने जुड़े साबित होते हैं तथा तीनों दस्तावेज देश के सामने कृषि को प्रमुखता देते हुए किस प्रकार की समग्र दृष्टि प्रस्तुत करते हैं। यदि ऐसा होता है तब इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय अर्थव्यवस्था अपने बड़े लक्ष्यों को प्रभावी कार्यान्वयन से प्राप्त कर सकेगी। इससे भारतीय विकास की नई अवधारणा को गढ़ने तथा वास्तविकता के धरातल से जुड़ी पहलों की तरफ कदम बढ़ाने के लिए नीति आयोग के योगदान को सराहा जाएगा।

                                                                                                                                (लेखक भाजपा पत्रिकाएं व प्रकाशन विभाग के राष्ट्रीय प्रमुख हैं)