सुशासन की अवधारणा को फलीभूत करनेवाले एक युगद्रष्टा का अवसान

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अटलजी की स्मृति में शोक प्रस्ताव पारित

भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में पहले दिन 8 सितंबर को पूर्व प्रधानमंत्री एवं पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष श्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर शोक प्रस्ताव पारित किया गया। यह प्रस्ताव भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री श्री मुरलीधर राव ने रखा। इस शोक प्रस्ताव में कहा गया है कि भाजपा यह संकल्प लेती है कि वह अटलजी के दिखाए मार्ग पर सतत चलती रहेगी तथा देश में सुशासन और विकास की राजनीति को मजबूती के साथ आगे बढ़ायेगी। हम यहां शोक प्रस्ताव का पूरा पाठ प्रकाशित कर रहे हैं:

भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष और राष्ट्र के सर्वप्रिय नेता श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर गहरा शोक प्रकट करती है। अटल जी के निधन से हम सभी ने इस देश में मूल्यनिष्ठ राजनीति के आधार पर सुशासन की अवधारणा को फलीभूत करनेवाले एक युगद्रष्टा को खोया है।

स्वाधीन भारत के राजनीतिक इतिहास में अटलजी ने अपनी निष्ठा और अपने आदर्शवादी सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए परिश्रम की पराकाष्ठा तक जाकर एक ऐसा विश्वसनीय राजनीतिक विकल्प खड़ा किया, जो राजनीति के माध्यम से जन आकांक्षाओं की पूर्ति में सफल सिद्ध हुआ है। अटल जी की राजनीति की इस विकास यात्रा में संघर्षों की एक लंबी शृंखला है। इस यात्रा को देखें तो पार्टी के उदयकाल में उन्हें कई मोर्चों पर एक साथ संघर्ष करना पड़ा। ऐसा देखने को मिलता है कि अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में उन्होंने संघर्ष भरे अनेक दौर का सामना किया। राजनीतिक अस्पृश्यता, संसाधनों का अभाव, संगठन खड़ा करने और उसका विस्तार करने में आयी अनगिनत बाधाएं, लेकिन इन सबसे जूझते हुए उन्होंने पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पार्टी को एक विशिष्ट पहचान दी। साइकल पर सवार होकर पार्टी की सदस्यता करने हेतु प्रवास और यात्रा से लेकर पार्टी के लिए चंदा इकट्ठा करने तक, संगठन कार्य से जुड़ा ऐसा एक भी काम नहीं होगा जो अटलजी ने नहीं किया हो। अटलजी एक ही समय बौद्धिक और सांगठनिक, दोनों ही कार्यों को निर्बाध रूप से सहज भाव में करने वाले विरले नेताओं में से एक थे ।

अटल जी का व्यक्तित्व बहु-आयामी था। एक प्रखर विचारक, प्रतिभाशाली कवि, सिद्धहस्त लेखक और पत्रकार, ओजस्वी वक्ता और श्रेष्ठ सांसद होते हुए अटलजी जनप्रिय नेता एवं दूरदर्शी तथा शासन के सफल नेतृत्वकर्ता भी बने। अटलजी ने राजनीति में विचारधारा के महत्व को और अधिक मजबूत करने का कार्य किया। प्रधानमंत्री के नाते उन्होंने लोकहितों के प्रति निष्ठा और संवेदनशीलता का परिचय दिया तथा विपक्ष में रहते हुए एक आदर्श विपक्षी नेता का उदाहरण भी बने। संसद में और संसद के बाहर भी उन्होंने अपनी कार्यशैली से राजनीति की गरिमा को बढ़ाया और लोकतंत्र के प्रति विश्वास को मज़बूत किया| देश में गठबंधन-राजनीति की सफलता उन्होंने स्थापित की और ‘गठबंधन धर्म’ को निभाते हुए एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया|

सरकार में रहते हुए अटलजी ने जो कार्य किये हैं, उसके अनेक उल्लेखनीय आयाम हैं। विदेशमंत्री के नाते उन्होंने भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का महत्व और मर्यादाएं, दोनों का एहसास रखा और हमारी सामरिक स्थिति को लेकर उन्होंने विश्व की नजर में एक संतुलन की स्थिति पैदा करने का कार्य किया। भारत और इजरायल के साथ पारस्परिक सम्बन्धों का शिलान्यास अटलजी के कार्यकाल में ही हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर उन्होंने सभी देशवासियों को राष्ट्रीय गौरव और पहचान की अनुभूति दी! जय जवान-जय किसान को जय विज्ञान से जोड़ते हुए उन्होंने आधुनिक सोच का उदाहरण दिया|

शासन की नीतियों में अटल जी का ज्ञानवृत्त अत्यंत बहुआयामी था। वे राजनीति, अर्थनीति, वैश्विक नीति और लोकनीति की गहरी समझ रखने वाले नेता थे। आर्थिक उदारीकरण और निजीकरण के विषय में भी उन्होंने जनहित को सर्वोपरि रखते हुए संतुलन की दृष्टि प्रस्तुत की। उनके कार्यकाल में आर्थिक जवाबदेही को लेकर महत्वपूर्ण क़ानून लागू हुआ, परिणामत: देश के आर्थिक विकास को गति मिली। देश में महामार्गों तथा टेलीकम्यूनिकेशन के महाजाल निर्माण करने में उनकी दूरदृष्टि का बड़ा योगदान रहा है। सुविख्यात सुवर्ण चतुष्कोण और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जैसी कई विकास योजनाएं उनकी दूरगामी सोच की परिचायक हैं। नदियों को जोड़ने की बात हो या फिर प्रवासी भारतीयों को अपने देश से जोड़ने की दिशा में उठाये कदम हों, अटल जी ने कई विषयों में विकास और सहभागिता के सूत्रों पर नई पहल की थी। उनके कार्यकाल में प्रारम्भ सर्व-शिक्षा अभियान के कारण स्कूलों के दाख़िलों बढ़ोतरी दर्ज की गयी थी और शिक्षा का संख्यात्मक विस्तार तथा गुणात्मक विकास हो पाया था।

देश के प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ मधुर सम्बन्धों के लिए भारत के राष्ट्रीय हितों को केंद्र में रखते हुए ऐसे अनेक महत्वपूर्ण प्रयास किए, जो सफल रहे। साथ ही उन्होंने अडिग रहते हुए भारत की सुरक्षा-दृष्टि से महत्वपूर्ण परमाणु परीक्षण का ऐतिहासिक कार्य भी सफलतापूर्वक करके दिखाया।

अटलजी ने न केवल राजनीति को, बल्कि समूचे शासनतंत्र को ही सार्थक दिशा में आगे बढ़ाया। उन्होंने समाज कल्याण मंत्रालय को सामाजिक न्याय मंत्रालय का नाम देकर एक नयी सोच का सृजन किया। स्वतंत्र रूप में जनजाति कल्याण मंत्रालय बनाने की पहल भी उनकी ही थी। देश के उपेक्षित पूर्वोत्तर भारत के लिए अलग से ‘डोनर’ मंत्रालय की स्थापना भी उनकी ही सोच का परिणाम था। देश के जनजाति बहुल और पहाड़ी क्षेत्रों के विकास को गति देनेवाले तीन नए राज्य — छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड — के बिना किसी विवाद के निर्माण का श्रेय भी अटलजी का ही है। अटल जी की सबको जोड़कर चलने की राजनीति के कारण ही यह तीनों राज्य बग़ैर कोई विवाद या हिंसा के बन पाए।

जब हम अटल जी के संघर्षों को याद करते हैं तो आपातकाल के खिलाफ संघर्ष में उनके योगदान को नहीं भुलाया जा सकता। अटलजी ने आपातकाल में लोकतंत्र को बचाने के लिए लम्बी अवधि का कारावास स्वीकार किया। विपक्ष में रहते जिस अटल जी ने हमेशा लोकतंत्र के प्रहरी की भूमिका ही निभायी, उन्ही अटलजी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकतांत्रिक सुधारों के लिए अनेक प्रयास किए। भारतीय संविधान के क्रियान्वयन की समीक्षा, राज्यसभा चुनाव में पारदर्शिता लाना और केंद्र तथा राज्यों के मंत्रिमंडलों की सदस्य संख्या पर नियंत्रण, यह तीन महत्वपूर्ण सुधार अटलजी की सिद्धांतवादी सोच और कर्मठ कार्यशैली के उदाहरण हैं।

अटलजी के निधन से सभी प्रदेशों ने एक शासन की नीतियों को समझाने वाला एक सच्चा मार्गदर्शक खोया है। उन्होंने शासन के नेतृत्वकर्ता और पार्टी नेता, दोनों भूमिकाओं को न केवल कुशलतापूर्वक निभाया, बल्कि कुछ आदर्श भी स्थापित किए। उनके कार्य आज भी राष्ट्रीय राजनीति और शासन की कार्यपद्धति पर अपनी अमिट छाप की तरह हैं ।

भारतीय जनता पार्टी की यह राष्ट्रीय कार्यसमिति दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी जी के प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए संकल्प करती हैं कि हम सभी उनके दिखाए मार्ग पर अथक चलते रहेंगे और देश में सुशासन और विकास की राजनीति को मजबूती के साथ आगे बढ़ाएंगे।