कांग्रेस ने खोया अवसर

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भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह ने जैसे ही राष्ट्रपति पद के लिये बिहार के राज्यपाल श्री रामनाथ कोविंद का नाम प्रत्याशी के रूप में घोषित किया, हर ओर इस निर्णय का स्वागत होने लगा। संपूर्ण एनडीए के साथ–साथ, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस, जदयू, बीजद तथा अन्नाद्रमुक ने अब तक इस घोषणा का समर्थन किया है। जिस प्रकार का समर्थन श्री रामनाथ कोविंद को मिल रहा है, कुछ दिन पहले तक उसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। अधिकतर विश्लेषक अब तक राष्ट्रपति चुनाव में कड़े मुकाबले की उम्मीद कर रहे थे। इस प्रकार का समर्थन आम सहमति बनाने के व्यापक बातचीत का परिणाम है, जिसमें लगभग हर राजनैतिक दल से भाजपा नेतृत्व ने संपर्क किया। वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में राजग ने लगभग आम सहमति बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है। राष्ट्रपति पद की गरिमा एवं इससे जुड़े प्रतिष्ठा के अनुरूप इस बात का संतोष किया जा सकता है कि अनेक राजनैतिक दलों ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देश के इस सबसे बड़े पद के लिये सर्वाधिक उपयुक्त प्रत्याशी के समर्थन में देर नहीं की।

जहां एक ओर इस पद के लिये आम सहमति बनने की प्रक्रिया अपेक्षित परिणाम दे रही थी, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने श्री रामनाथ कोविंद को समर्थन देने के स्थान पर राष्ट्रपति पद के लिये चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। जो कांग्रेस अभी तक दूसरे नामों को मीडिया में उछालती रही, उसे अब रामनाथ कोविंद के सामने एक दलित प्रत्याशी की घोषणा करने को बाध्य होना पड़ा। इसके पहले कांग्रेस ने दलित प्रत्याशी के विषय में कभी सोचा तक नहीं था, पर जब एक दलित प्रत्याशी की घोषणा हुई तब उनके सामने एक दलित प्रत्याशी को खड़ा करने की योजना बनाई गई। लेकिन तब तक कांग्रेस के लिये बहुत देर हो चुकी थी। कांग्रेस जो कम्युनिस्ट एवं अपने अन्य सहयोगियों के साथ बहुत पहले ही एनडीए प्रत्याशी के खिलाफ सभी दलों को गोलबंद करने में लगी थी, सफलता प्राप्त नहीं कर पाई, क्योंकि उसने इस पद को राजनैतिक चश्में से देखते हुए चुनाव के राजनीतिकरण करने का प्रयास किया। यही कारण था कि वे एनडीए से बाहर के भी राजनैतिक दलों का समर्थन नहीं जुटा पाये। इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस तथा इसके सहयोगियों के बीच का अंतर्विरोध भी कई बार उजागर हुआ। वास्तव में कांग्रेस को अपनी इच्छा के विरूद्ध मायावती जैसों के दबाव में ऐसे प्रत्याशी को आगे करना पड़ा, जिसके बारे पहले कभी इसने सोचा तक नहीं था। अब कांग्रेस अपने सहयोगियों के साथ केवल नाम के लिये एक ऐसे चुनावी मैदान में है, जिसमें वह पहले ही हार चुकी है। श्री रामनाथ कोविंद का समर्थन कर कांग्रेस देश में एक अच्छा संदेश भेज सकती थी, परन्तु अब ऐसा लगता है कि उसने इस अवसर को खो दिया है।

राष्ट्रपति पद के लिये व्यापक सहमति बनाने के लिये प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह बधाई के पात्र हैं। जिस प्रकार से कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्रियों ने व्यापक सहमति बनाने की प्रक्रिया का संचालन किया, उससे देश का लोकतंत्र अपने वास्तविक अर्थों में सुदृढ़ हुआ है। यह केवल कांग्रेस एवं कम्युनिस्टों की जिद थी जिस कारण इस गरिमापूर्ण पद के लिये आज चुनाव हो रहे हैं। कांग्रेस को समझना चाहिए कि विपक्ष के रूप में उसे एक रचनात्मक भूमिका का निर्वहन करना है। बार–बार बाधा उत्पन्न कर न तो वह कुछ अपना भला कर रही है न ही यह देश के व्यापक लोकतांत्रिक हित में है। राष्ट्रपति का पद दलगत राजनीति से ऊपर होना चाहिए और जब भी अवसर मिले व्यापक सहमति बनाने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित कर मजबूत करना चाहिये, लेकिन कांंग्रेस से रचनात्मक भूमिका की अपेक्षा करना भी अपने आप में एक भूल होगी। क्योंकि अंधविरोध इसमें इतनी जड़ें जमा चुकी हैं कि यह ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ तक का विरोध करने से नहीं चूकती। योग जिसे आज पूरा विश्व भारत के एक उपहार के रूप में स्वीकार कर रहा है, जब कांग्रेस उसका भी राजनीतिकरण कर सकती है तब भला वह राष्ट्रपति चुनाव को कैसे छोड़ सकती है। फिर भी जिस प्रकार की व्यापक सहमति बनाने की प्रक्रिया चली तथा अनेक राजनैतिक दलों ने दलगल राजनीति से ऊपर उठकर समर्थन दिया, उससे राष्ट्रपति पद के लिये बहुत ही व्यापक समर्थन संभव हुआ है तथा कांग्रेस एवं उसके सहयोगी दल अलग–थलग पड़कर केवल प्रतीकात्मक चुनाव लड़ रहे हैं।

                                                                                                                                                                                                                                 shivshakti@kamalsandesh.org