जीएसटी : एक क्रांतिकारी पहल

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माल एवं सेवाकर (गुड्स एण्ड सर्विसेज टैक्स– जीएसटी) के लागू होने से भारतीय अर्थव्यवस्था की पूरी तस्वीर बदलने वाली है। ‘एक राष्ट्र, एक कर’ के घोष वाक्य के साथ शुरू हुआ यह अब तक का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार है, जिसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ना निश्चित है। यह बहुत ही कठिन कदम था तथा इसमें इतनी अधिक जटिलताएं थी कि इस पर आम सहमति बनाकर एक कानून में ढालना लगभग असंभव सा प्रतीत होता था। जिस प्रकार से आम सहमति की प्रक्रिया चली और अंतत: सफल हुई उससे सरकार के ‘सहकारी संघवाद’ के सिद्धांतों पर गहरा विश्वास प्रकट होता है। भिन्न–भिन्न प्रकार और यहां तक की विपरीत अपेक्षाओं एवं हितों में सामंजस्य बना पाना इस प्रक्रिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। ‘सबका साथ, सबका विकास’ के सिद्धांतों पर खरे उतरे बिना यह असंभव था, लेकिन यह आश्चर्यजनक रूप से सफल हो पाया जिसमें सभी के लिए लाभ की स्थिति बन पाई है। उपभोक्ताओं को जहां कम कर देना पड़ेगा, राज्य और केन्द्र सरकार को कर के व्यापक आधार से अधिक कर संग्रह में सहायता मिलेगी। व्यापार एवं उद्योग–धंधे करों के जंजाल से बाधामुक्त होकर बड़ी छलांग लगा सकते हैं। ‘इज ऑफ डूविंग बिजनेस’ में व्यापक परिवर्तन से अर्थव्यवस्था सुविधापूर्ण एवं व्यापार के लिए उचित वातावरण तैयार होगा। वास्तव में यह एक ऐसे दौर की शुरूआत है, जिसमें सबके लिये लाभ ही लाभ है और भारतीय अर्थव्यवस्था जितनी बड़ी होगी उतनी ही सुविधापूर्ण भी बन गई है। आने वाले दिनों में जीएसटी से हर क्षेत्र में व्यापक बदलाव होना तय है।

जीएसटी देश में अभूतपूर्व राजनैतिक आम सहमति के लिये भी जानी जायेगी। विभिन्न राजनैतिक दलों का दलगत राजनीति से ऊपर उठकर साथ आना जहां राजनैतिक परिपक्वता की निशानी है वहीं एक सुदृढ़ लोकतंत्र की पहचान भी है। इससे यह पता चलता है कि सुशासन एवं विकास पर पूरा भारत एकजुट है, परन्तु जिस प्रकार से कांग्रेस ने अंतिम समय में आचरण किया उससे पुन: यह स्पष्ट होता है कि यह राष्ट्रीय हित के ऊपर अपनी राजनीति करने से परहेज नहीं करती। उद्घाटन समारोह में शामिल होने से इंकार कर कांग्रेस नेतृत्व ने अपने असमंजस की स्थिति को ही उजागर किया है। हालांकि, इसने जीएसटी का समर्थन किया था, पर यह अंदाजा नहीं लगा पाई थी कि सरकार इतने कम समय में इसे सफलतापूर्वक लागू कर पायेगी। अब जबकि कांग्रेस को पूरे जोर–शोर से जीएसटी का समर्थन करना चाहिये था, यह जीएसटी पर असंतोष को हवा देने में लगी हुई है। इस पूरी प्रक्रिया में कांग्रेस का दोहरा चेहरा सामने आया है। परिणामस्वरूप जदयू, जद(सेकुलर), एनसीपी जैसे अनेक राजनैतिक दलों ने कांग्रेस के इस निर्णय का साथ नहीं दिया। एक ओर जहां पूरे देश में जीएसटी के लागू होने पर उत्सव का माहौल था, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस अलग–थलग पड़ी हुई थी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जीएसटी को ठीक ही ‘गुड एण्ड सिंपल टैक्स’ की संज्ञा दी है। इससे न केवल देश के गरीबों पर कर भार का वजन कम हुआ है, बल्कि एक ऐसे सरल व्यवस्था की रचना हुई है जिसमें करदाता खुशी–खुशी देश के विकास में अपना योगदान कर पायेंगे। यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय ग्लोबल एजेंसी ‘मूडी’ ने इसका पुरजोर समर्थन करते हुए कहा कि इससे भारत की छवि सकारात्मक बनेगी, विकास दर बढ़ेगी, उत्पादकता बढ़ेगी तथा आसान कर भुगतान व्यवस्था से सरकार अधिक कर भी प्राप्त कर पायेगी। कॉन्फेडेरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) ने भरोसा जताया है कि इससे व्यापार में तेजी आयेगी तथा उद्योग–धंधे बढ़ेंगे। इससे हर ओर एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण हुआ है तथा देश के अंदर एवं बाहर लोगों का भारी समर्थन मिल रहा है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस प्रक्रिया से जुड़े हर किसी की भूरि–भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि इससे निर्यात की स्पर्धात्मकता बढ़ेगी तथा घरेलू उद्योगों को आयातों से स्पर्धा करने में मजबूती मिलेगी। बाजार ने भी इसका स्वागत अच्छे संकेतों से किया है और इसके प्रभावी क्रियान्वयन से पुन: यह बात सिद्ध हुई है कि यदि नेतृत्व में कड़े और निर्णयात्मक कदम उठाने की राजनैतिक इच्छाशक्ति हो तो भारत भी बड़े और परिवर्तनकारी निर्णय ले सकता है।

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